भारत में राजनीति केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधाराओं, धार्मिक भावनाओं और सांस्कृतिक पहचान की भी जंग है। आज जब कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, तब एक बड़ा तबका मानता है कि इसके पतन का मूल कारण इसकी ‘हिंदू विरोधी’ छवि रही है — एक छवि जो दशकों में कांग्रेस के निर्णयों और बयानों से बनी और अब स्थायी रूप ले चुकी है।
🔴 प्रमुख घटनाएँ जो कांग्रेस को ‘हिंदू विरोधी’ सिद्ध करती हैं
शाह बानो केस (1985): तुष्टिकरण की शुरुआत
शाह बानो नामक बुज़ुर्ग मुस्लिम महिला को तलाक के बाद गुज़ारे भत्ते का हक सुप्रीम कोर्ट ने दिया, लेकिन राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर संसद में एक कानून पास किया, जिससे कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी हो गया। यह स्पष्ट संदेश था — “समान नागरिक संहिता नहीं, वोट बैंक ज़रूरी है।”
➡️ लेकिन सवाल उठता है — क्या यही रवैया किसी हिंदू समाज के लिए अपनाया गया होता?
राम जन्मभूमि पर दोहरा रवैया
1986 में बाबरी मस्जिद के ताले खुलवाए — लेकिन उसके बाद के वर्षों में कांग्रेस ने राम मंदिर आंदोलन को हमेशा कट्टरपंथ और “ध्रुवीकरण” कहकर उसकी आलोचना की। न तो मंदिर का खुलकर समर्थन किया और न ही कोई स्पष्ट स्टैंड लिया।
➡️ राम का नाम लेने में कांग्रेस हिचकती रही — जबकि बीजेपी ने राम को जनता के हृदय से जोड़ा।
‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग
2008 में मालेगांव ब्लास्ट के संदर्भ में तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने “हिंदू आतंकवाद” और “भगवा आतंकवाद” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया।
यह शब्दावली सीधे-सीधे पूरे हिंदू समाज को संदेह के दायरे में लाने वाली थी।
➡️ क्या किसी और धर्म के साथ इस तरह की सामूहिक बदनामी स्वीकार्य होती?
हिंदू विरोधी वक्तव्यों की श्रृंखला
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राहुल गांधी का “हिंदू संगठन ज्यादा खतरनाक हैं” कहना।
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दिग्विजय सिंह द्वारा RSS की तुलना आईएसआईएस से करना।
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सोनिया गांधी के करीबी नेताओं का कुंभ को “धार्मिक तमाशा” बताना।
➡️ ये बयान सिर्फ विरोध नहीं थे — ये हिंदू संस्कृति का सार्वजनिक अपमान थे।
हिंदू प्रतीकों से दूरी, अन्य समुदायों से निकटता
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मंदिरों से दूरी, लेकिन चर्च और दरगाहों में नियमित उपस्थिति।
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‘अल्लाह हो अकबर’ के नारे मंच से लगने देना, लेकिन ‘जय श्री राम’ को ‘उकसावे’ का प्रतीक बताना।
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CAA-NRC विरोध में कांग्रेस नेताओं का मंच सांप्रदायिक नारों से भर जाना।
➡️ इस तरह की चयनात्मक सेक्युलरिज़्म से जनता को कांग्रेस की असली सोच समझ आ गई।
🔻 परिणाम: हिन्दू बहुल भारत में राजनीतिक बहिष्कार
आज की राजनीति भावना की राजनीति है। जब जनता को यह लगने लगा कि कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण करती है और हिंदू पहचान को अपमानित करती है — तब जनादेश साफ हो गया:
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कांग्रेस उत्तर भारत से लगभग साफ हो गई।
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राम मंदिर आंदोलन, CAA, और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर कांग्रेस की ‘हिचक’ ने उसकी विश्वसनीयता को खत्म कर दिया।
🔴 कांग्रेस की भूमिका: वक्फ के जरिए मुस्लिम तुष्टिकरण
🔹 1995: वक्फ अधिनियम — कांग्रेस का उपहार
पी. वी. नरसिंह राव सरकार ने 1995 में Waqf Act पारित किया, जिससे वक्फ बोर्ड को असाधारण शक्तियाँ दी गईं।
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ये बोर्ड खुद संपत्तियों को “वक्फ” घोषित कर सकते हैं।
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आम नागरिक की ज़मीन पर भी दावा कर सकते हैं, यदि उसे “वक्फ की ज़मीन” माना जाए।
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अदालतों में इन्हें चुनौती देना अत्यंत कठिन बना दिया गया।
➡️ यह व्यवस्था एक समान नागरिक अधिकारों के सिद्धांत के खिलाफ जाती है।
🔹 2013: कांग्रेस सरकार में संशोधन — और ताकतवर बना वक्फ
यूपीए सरकार ने Waqf Amendment Act, 2013 के ज़रिए वक्फ बोर्ड को और ज़्यादा शक्तिशाली बना दिया:
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वक्फ बोर्ड की मंज़ूरी के बिना कोई ट्रांसफर रद्द।
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विवाद होने पर तुरंत सरकारी ज़मीन पर स्टे।
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ज़मीन का सर्वे “वक्फ इंटरेस्ट” के आधार पर!
➡️ ये नियम किसी अन्य धार्मिक संस्था — खासकर हिंदू मंदिरों के लिए नहीं लागू होते।
⚖️ हिंदू संपत्तियों के साथ दोहरा मापदंड
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हिंदू मंदिरों की संपत्ति पर सरकार का नियंत्रण, राज्य सरकारें इन्हें चलाती हैं, कमाई का बड़ा हिस्सा “सेक्युलर” कार्यों में लगा देती हैं।
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लेकिन वक्फ संपत्ति पूरी तरह मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं के पास, बिना किसी सरकारी नियंत्रण के।
➡️ ये भेदभाव क्या वास्तव में संविधान के “समानता” सिद्धांत के अनुरूप है?
📈 भारत में वक्फ की शक्ति का विस्तार — आंकड़े चौकाने वाले हैं
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भारत में लगभग 6 लाख एकड़ वक्फ ज़मीन, जिसकी कीमत हजारों करोड़ में।
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Waqf Board देश की सबसे बड़ी जमीन मालिक संस्थाओं में से एक है, लेकिन इन संपत्तियों पर पारदर्शिता नहीं है।
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कई बार हिंदू नागरिकों की ज़मीन को वक्फ बता कर उस पर दावा ठोक दिया जाता है — और सरकारें चुप रहती हैं।
🔚 निष्कर्ष:
कांग्रेस के पतन की कई वजहें हो सकती हैं — लेकिन अगर एक बुनियादी, भावनात्मक कारण देखें, तो वह है ‘हिंदू विरोध’ की छवि।
यह छवि किसी अफवाह से नहीं बनी, बल्कि कांग्रेस के अपने बयानों, नीतियों और प्राथमिकताओं से बनी।
भारत की आत्मा राम, कृष्ण, शिव, और गीता में बसती है — और कांग्रेस बार-बार उसी आत्मा को नजरअंदाज करती रही।