देवास संग्रहालय की पुरातात्त्विक तीर्थंकर प्रतिमाएँ

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डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर। शासकीय जिला पुरातत्त्व संग्रहालय देवास (मध्यप्रदेश) में अन्य प्रतिमाओं के साथ कुछ पुरातात्त्विक एवं ऐतिहासिक महत्व की तीर्थंकर प्रतिमाएँ भी संग्रहीत हैं। हमने वास्तुविद् देवेन्द्र सिंघई एवं श्री अनुभव जैन के साथ दिनांक 8 फरवरी 2025 को देवास के राज्यकीय संग्रहालय का सर्वेक्षण कर प्रतिमाओं के परिचय व छायाचित्र प्राप्त किये उनमें से पाँच प्रतिमाओं का परिचय इस प्रकार है-

चतुर्मूर्तिका कायोत्सर्ग तीर्थंकर प्रतिमा-  चतुर्मूर्तिका सिद्धासन में कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा बड़ी मनेाहर व पुरातात्त्विक महत्व की है। श्याम पाषाण की यह तीर्थंकर मूर्ति साधारण पादपीठ पर आसीन है। इस नग्न दिगम्बर प्रतिमा के उदर पर त्रिवली रेखांकित है, वक्ष पर सुन्दर कलात्मक श्रीवत्स उकरित है, पादपीठ के समानान्तर दोनों पार्श्वों में चामरधारी अनुचर हैं, उनका उत्सेध मुख्य प्रतिमा के कराग्र तक है। प्रतिमा के कर्ण स्कंधों को स्पर्शित हैं। घुंघराले केश शिल्पित हैं, मस्तक के दोनों ओर अशोक-पत्र लटक रहे हैं, शिरोपरि त्रिछत्र शिल्पित है।
इस प्रतिमा के परिकर में दक्षिण भाग में नीचे एक कायोत्सर्गस्थ जिन-प्रतिमा है, उससे ऊपर पùासनस्थ लघु जिन प्रतिमा और उससे भी ऊपर एक और पùासना लघु जिन प्रतिमा है। इसके वाम भाग के परिकर की स्थिति भिन्न है। पूर्ण आभाूषण भूषित एक बड़ा सा चामरधारी है, ऊपर वितान माध्यधारी देव युगल है। माल्यधारी और चामरधरी देव की स्थिति वर्तमान मुख्य प्रतिमा से विपरीत दिशा की ओर है, इससे ज्ञात होता है कि प्रस्तुत शिलाखण्ड किसी अन्य बड़ी पùासन प्रतिमा के दाहिनी ओर का भाग है।

त्रिमूर्तिका कायोत्सर्ग तीर्थंकर प्रतिमा-  देवास के राज्यकीय संग्रहालय परिसर में खुले स्थान में कुछ अन्य मूर्तियों के समान इस मूर्ति को भी प्रदर्शित किया गया है। इसका पाषाण क्षरित हो जाने से इसकी पूर्ण स्पष्टता नष्ट हो गई है, तथापि उष्णीष आदि सभी अंग दृष्ट हैं। प्रभावल, छत्रत्रय, पार्श्वों में चँवर वाहक अनुगामी, पुष्पवर्षक माल्यधारी देव शिल्पित हैं। इस प्रतिमा के दाहिनी ओर के परिकर में बाह्य भाग में एक के ऊपर एक के क्रम में दो लघु कायोत्सर्गस्थ जिन प्रतिमा हैं। परिकर में बायीं ओर के चामरधारी के निकट एक खड़ी हुई स्त्री-आकृति है, क्षरित होने से उसकी विशेषताएं अदृष्ट हैं। ऊपर में एक शार्दूल शिल्पित है।

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पंचतीर्थीं तीर्थंकर प्रतिमा वितान-  यह प्रतिमा स्वयं में महत्वपूर्ण व कलात्मक है। इसमें स्वतंत्र देवकुलिकाओं में समानान्तर पाँच तीर्थकर प्रतिमाएँ शिल्पित हैं। मध्यस्थ प्रतिमा सभी से कुछ बड़ी है, यह पùासनस्थ है। इसका सुन्दर तोरण है, घुटने देवकुलिका से बाहर हैं, जिससे देवकुलिका ज्यादा चौड़ा स्थान न ले। मध्यस्थ प्रतिमा के दोनों ओर की देवकुलिकाओं में कायोत्सर्गस्थ जिन शिल्पित हैं और उनके बाह्य भाग की एक-एक देवकुलिका में पद्मासस्थ जिन तीर्थंकर हैं। इन बाह्य प्रतिमाओं में बायीं ओर की प्रतिमा का शिर पाँच सर्पफणों से आच्छादित है और दायीं ओर की प्रतिमा का शिर सप्त सर्पफणों से अटोपित है । इससे इनकी पहचान सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ तीर्थंकर के रूप में होती है।
देवास संग्रहालय में इस प्रतिमा के परिचय में इसे- ‘‘द्विभुजी देवांगना’’ लिखा है। समय- 12-13वीं शती ईस्वी और प्राप्ति स्थान- गंधर्वपुरी लिखा है। अब एक बात तो निश्चित है कि यह देवांगना नहीं है, फिर इसे यहाँ ‘द्विभुजी देवांगना’ क्यों लिखा गया है, क्या त्रुटिवश लिख दिया गया है, या कि यह किसी अन्य प्रतिमा का वितान भाग होने के कारण लिखा है। और इसमें पाँच तीर्थंकर स्पष्ट हैं। एक और संभावना यह बनती है कि गंधर्वपुरी में जो स्वतंत्र तीर्थंकरानुगामनी देवी प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं हैं, उनमें से अधिकांश के वितान में पाँच तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं, जहाँ से यह प्राप्त हुई है वहाँ प्राप्ति स्थल में द्विभुज वाली शासन देवी के साथ यह वितान रहा हो, इस कारण इसे ‘द्विभुजी देवांगना’ लिखा गया हो।

खण्डित तीर्थंकर प्रतिमा प्रथम-  श्याम पाषाण में निर्मित परिकर रहित पùासनस्थ इस प्रतिमा का शिर व दोनों भुजाएँ खण्डित और अप्राप्त हैं। पादपीठ पर मध्य में व दोनों छोरों पर श्रीवत्स की तरह पुष्पकलिकाएँ उत्कीर्णित हैं। एक अतिरिक्त पù-पुष्प पादपीठ पर ऊपर की ओर अलग से रेखीकृत है। जो संभवतः तीर्थंकर पùप्रभ का लांछन है। इस प्रतिमा के पादपीठ पर तीन पंक्तियों में अभिलेख है। जिसमें ‘‘श्री संवत् 1221 माघ वदि 5’’ स्पष्ट है।

खण्डित तीर्थंकर प्रतिमा द्वितीय- 
श्याम पाषाण में निर्मित इस प्रतिमा की स्थिति भी लगभग प्रथम प्रतिमा के समान ही है। इसके पादपीठ पर लघु अभिलेख है, जिसमें लिखा है- ‘‘…मु कोकाझाला संमतु 1178’’ ।

और भी अनेक पुरातात्त्विक महत्वपूर्ण प्रतिमाएँ देवास संग्रहालय में संरक्षित हैं।
लेखक-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
22/2, रामगंज, जिन्सी, इन्दौर
मो. 9826091247
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