रुद्राक्ष का हिंदू धर्म विश्ोष महत्व है। रुद्राक्ष धारण करने मात्र से जीव को अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। जानिए क्या फल प्राप्त होते हैं रुद्राक्ष धारण करने के? –
1- जिस घर में रुद्राक्ष की पूजा की जाती है, वहां सदा लक्ष्मी का वास रहता है।
2- रुद्राक्ष का धारण करने वाले व्यक्ति को अकालमृत्यु का भय नहीं होता।
3- रुद्राक्ष कार्य सिद्धि में 4० दिन में प्रभाव दिखाता है।
4- रुद्राक्ष धारी को भूत, प्रेत व प्रेत बाधा नहीं होती।
5- रुद्राक्ष धारण करने से ब्रह्महत्या के महापाप से छुटकारा मिलता है।
6- रुद्राक्ष अनेक शारीरिक व्याधियों का शमन करता है।
7- रुद्राक्ष भोग और मोक्ष दोनों दिलाने में सहायक होता है। इसके अलावा रुद्राक्ष कुंडली जागरण में सहायक होता है।
कैसे पहचाने रुद्राक्ष असली है या नकली
रुद्राक्ष की पहचान इनके आकार और सीधी पड़ी धारियों से होती है। असली रुद्राक्ष गोलाकार होता है। इस पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सीधी खड़ी स्पष्ट धारियां होती हैं, जो इसके एक छोर से दूसरे छोर तक साफ दिखाई देती हैं। इन धारियों के बीच में उभरे हुए रवे या कांटे होते हैं। रुद्राक्ष की इन्हीं धारियों को इसका मुख भी कहा जाता है।
दो तांबे के टुकड़ों के बीच असली रुद्राक्ष रखने से वह घूम जाता है, लेकिन नकली नहीं। असली रुद्राक्ष पानी में डूब जाता है लेकिन नकली नहीं डूबता है।
शास्त्रीय आधार पर श्रेष्ठ रुद्राक्ष के लक्षण भी वर्णित किए गए हैं, जो इस प्रकार है-
1- आमल की फल के समान आकार वाला रुद्राक्ष श्रेष्ठ माना गया है। बदरीफल के समान के आकार वाला रुद्राक्ष मध्यम और चने के मात्रा के समान के आकार वाला रुद्राक्ष अधम माना गया है।
2- जिस रुद्राक्ष में स्वयं छिद्र का निर्माण हुआ हो, वह रुद्राक्ष उत्तम माना गया है, मनुष्यों द्बारा किया गया छिद्र वाला रुद्राक्ष अधम माना गया है।
3- समस्निग्ध, दृढ़, गोल दानों को रेशम के धागे में पिरो कर पहनना चाहिए, जब रुद्राक्ष शरीर में साम्यतापूर्वक अदभुत विलक्ष्ण गुण धारण करे। जैसे कसौटी पर सोने का घर्षण करने से रेखा पड़ जाती है, ठीक वैसे ही कसौटी पर जिस रुद्राक्ष को घिसने स रेखा पड़ जाए, उस उत्तम रुद्राक्ष को शिव भक्तों को धारण करना चाहिए।
हीन रुद्राक्ष के लक्षण-
1- आमले से छोटे अत्यन्त लघु, भग्न या किसी प्रकार से हीन हुए कंटकहीन, कृमि के खाये हुए और छिद्रहीन रुद्राक्ष को मंगल चाहने वालों को धारण नहीं करना चाहिए।
2- कृमि खाए हुए, छिन्न-भिन्न, कंटकों से हीन,व्रणयुक्त, गोलाईहीन, ऐसे दोषों से युक्त रुद्राक्ष को त्याग देना चाहिए।
3- देवी भागवत में भी हीन रुद्राक्ष के लिए कहा गया है कि कृमियों द्बारा खाए हुए, अंगों में छिन्न-भिन्न, कंटकों से रहित, व्रणयुक्त और गोलाकार आकृति से हीन रुद्राक्ष का त्याग करना चाहिए।