अमरनाथ यात्रा करने के लिए बहुत ही संकल्प शक्ति की आवश्यकता होती है। शारीरिक रूप से स्वस्थ्य होना भी अपरिहार्य होता है। यदि आप शारीरिक रूप से कमजोर है, तो यह यात्रा करना मुश्किलों भरा होता है। अमरनाथ हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यह तीर्थस्थल कश्मीर के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 135 सहस्त्रमीटर दूर समुद्रतल से 136०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहां गुफा की लंबाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। गुफा 11 मीटर ऊँची है। भगवान भोलेनाथ ने यहीं माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यहां भगवान भोलनाथ का प्राकृतिक शिवलिंग निर्मित होता है, इसलिए स्वयंभू हिमानी शिवलिग भी कहते हैं।
आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में यहां शिवलिंग के पावन दर्शन होने है। यहां गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है।
श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्यचकित करने वाली बात यही है कि यह शिवलिग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है, जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
आइये, अब जानते हैं, बाबा बफानी की पावन अमर कथा, पूर्व काल की बात हम आपको बताते हैं। पूर्व काल में भगवान भोलेनाथ की अर्धागिनी पार्वती जी ने महादेव जी से पूछा कि हे प्रभु, ऐसा क्यों है कि आप अजर हैं, अमर हैं लेकिन मुझे हर जन्म के बाद नए स्वरूप में आकर, फिर से बरसों तप के बाद आपको प्राप्त करना होता है। जब मुझे आपको पाना ही है तो मेरी तपस्या और इतनी कठिन परीक्षा क्यों? आपके कंठ में पड़ी नरमुंड माला और अमर होने के रहस्य क्या हैं? कृपया मुझे बताएं।
भोलेनाथ देवों के देव महादेव ने पहले तो देवी पार्वती के उन प्रश्नों का उत्तर देना उचित नहीं समझा, परन्तु पत्नी के हठ के चलते कुछ गूढ़ रहस्य उन्हें बताने पड़े। शिव महापुराण में मृत्यु से लेकर अजर-अमर तक के कई प्रसंग हैं, जिनमें एक साधना से जुड़ी अमर कथा बहुत ही रोचक है। भक्त इसे अमरत्व की कथा के रूप में जानते हैं।
पौराणिक गाथा हमे बताती है कि अमरनाथ की गुफा ही उस स्थान पर है, जिस स्थान पर महादेव जी ने पार्वती को अमर होने के गुप्त रहस्य बतलाए थे, इस समय वहां उन दो दिव्य ज्योतियों’के अलावा तीसरा कोई प्राणीमात्र नहीं मौजूद था। न महादेव का नंदी और नहीं उनका नाग, न सिर पर गंगा और न ही गणपति, कार्तिकेय आदि। इनमें से कोई भी वहां पर उस समय मौजूद नहीं था। भगवान शिव और माता पार्वती पूर्ण रूप से एकांत में थे।
इस गुप्त स्थान की तलाश में महादेव ने सबसे पहले अपने वाहन नंदी को छोड़ा, नंदी जिस जगह पर छूटा, उसे ही पहलगाम कहा जाने लगा। वास्तव में अमरनाथ यात्रा यहीं से शुरू होती है। यहां से थोड़ी दूर आगे चलने पर शिवजी ने अपनी जटाओं से चंद्रमा को अलग कर दिया था, जिस जगह पर भगवान भोलनाथ ने ऐसा किया था, वह चंदनवाड़ी कहलाती है। इसके बाद उन्होंने गंगा जी को पंचतरणी में और कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया था, इस तरह इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा।
अमरनाथ यात्रा में पहलगाम के बाद अगला पड़ाव है गणेश टॉप, इस स्थान को लेकर मान्यता यह भी है कि इसी स्थल पर महादेव ने पुत्र प्रिय गणेश को छोड़ा था। इस स्थल को महागुणा का पर्वत भी कहते हैं। इसके बाद महादेव ने जहां पिस्सू नामक कीड़े को त्यागा, वह जगह पिस्सू घाटी है।
इस तरह से महादेव जी ने अपने पीछे जीवनदायिनी पांचों तत्वों को स्वंय से अलग किया था। इसके बाद उन्होंने माता पार्वती संग एक गुफा में प्रवेश किया था। यहां कोई तीसरा प्राणी, यानी कोई व्यक्ति, पशु या पक्षी गुफा के अंदर घुस कथा को न सुन सके, इसलिए उन्होंने चारों ओर अग्नि प्रज्जवलित कर दी थी। फिर महादेव ने अमरत्व के जीवन के गूढ़ रहस्य की कथा बतानी शुरू की।
इस पावन कथा सुनते-सुनते माता पार्वती को नींद आ गई थी, अत: माता पार्वती कथा के दौरान ही सो गईं और महादेव को यह पता नहीं चला, वह सुनाते रहे-सुनाते रहे। यह कथा उस समय वहां मौजूद दो सफेद कबूतर सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे। महादेव को लगा कि पार्वती मुझे सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रही हैं। चूंकि वैसे भी भोले अपने में मग्न थे तो सुनाने के अलावा ध्यान कबूतरों पर नहीं गया था।
दोनों कबूतर सुनते रहे, जब कथा समाप्त होने पर महादेव का ध्यान पार्वती पर गया तो उन्हें पता चला कि वह तो सो रही हैं। तो उन्हें लगा कि कथा सुन कौन रहा था? उनकी दृष्टि तब दो कबूतरों पर पड़ी तो महादेव को क्रोध आ गया। वहीं कबूतर का जोड़ा उनकी शरण में आ गया और बोला कि हे भगवान, हमने आपसे
अमरकथा सुनी है। यदि आप हमें मार देंगे तो यह कथा झूठी हो जाएगी, हमें पथ प्रदान करें। इस पर महादेव ने उन्हें वर दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव व पार्वती के प्रतीक चिह्न् के रूप में निवास करोगे, इसलिए कबूतर का यह जोड़ा अमर हो गया और यह गुफा अमरकथा की साक्षी हो गई। इस प्रकार से इस स्थान का नाम अमरनाथ प्रसिद्ध हो गया। मान्यता यह भी है कि आज भी इन दो कबूतरों के दर्शन भक्तों को होते हैं। पवित्र गुफा में एक ओर माता पार्वती और श्रीगणेश के भी अलग से बर्फ से निर्मित प्रतिरूपों के भी दर्शन किए जा सकते हैं।
हर वर्ष हिम के आलय (हिमालय) में अमरनाथ, कैलाश और मानसरोवर तीर्थस्थलों में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। शिव के प्रिय अधिकमास या आषाढ़ पूर्णिमा से श्रावण मास तक की पूर्णिमा के बीच अमरनाथ की यात्रा भक्तों को खुद से जुड़ रहस्यों के कारण और प्रासंगिक लगती है।
बाबा बर्फानी अमरनाथ यात्रा का संस्मरण
या कुंदेंन्दु तुषार हार धवला या शुभ्रावस्त्रावृत्ता।
या वीणा वर दंड मंडित करा या श्वेत पद्मासना ।।
या ब्राह्माच्युत प्रभर्तिभिदेवै सदा वंदिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा।।
मां सरवस्ती की कृपा से अपनी भोले बाबा अमरनाथ बर्फानी की यात्रा का विृत्तांत लिपिबद्ध किया।
‘ध्यायेत् नित्यम् महेशं रजत गिरि निभं चारू चन्द्रावतंशम् रत्नाकल्पोत् ज्वालागम् परशु मृगवरा भीति हस्तम् प्रसन्नम्।
पद्मनाशं समन्नतात् स्तुतिमामर्गण्ये् व्याघ्रकृति वसानं विश्वाद्यम् विश्ववन्द्यम् निखिल भय हरम् पंच्वक्रम त्रिनेत्रम् ।।
जनश्रुति प्रचलित है कि अमरनाथ की इसी पवित्र गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को ‘अनंतनाग” में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था। इसका नाम बूटा मलिक था, आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं।
अमरनाथ की पवित्र गुफा तक की यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। यानी कि पहलमान और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुंचें, यहां से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। पहलगाम से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते में किसी अनहोनी के लिए सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है।
आज के 4 महीने पहले की जब हम लोगों का विचार आया कि चलो भोलेनाथ बाबा अमरनाथ बर्फानी के दर्शन करें। बेहद दुर्गम मार्ग जहां शिव प्रभु जी बुला सकते हैं सभी भक्त दर्शन पा सकते हैं दक्षिणी कश्मीर के तंग शिखर पर्वत पर विराजमान भगवान अमरनाथ। हिमालय पवर्त श्रंखला का यह हिस्सा समुद्र तल से 13600 फिट से लेकर 14500 फिट तक ऊचा है। यहां दर्शनों का आकर्षण हिम शिवलिंग है। श्रीनगर से 145 किलोमीटर दूर भोलेशंकर की यह पवित्र गुफा 150 फिट ऊंची व 90 फिट लम्बी है। इसकी गहराई का अंदाजा सहज लगाया नहीं जा सकता है। मान्यता है कि शिवखोड़ी में स्थापित गुफा का यह खुला द्वार है।
इसी वर्ष जून 2018 में हम लोग भागवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा के दर्शन करके लौटे, तो जुलाई में अमरनाथ यात्रा तय थी। एक-एक दिन के इंतजार के बाद आखिर वह दिन आ गया, जब हम लोग 4 जुलाई को सुबह अमरनाथ जी के दर्शनों के लिए भोर चार बजे ही अपने घर से रवाना हो गये। यात्रा हमारी हवाई मार्ग से थी सो लखनऊ के चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर सुबह पौने छह बजे ही पहुंच गये। उस दिन लखनऊ का तापमान सुबह तो 34 डिग्री का था, लेकिन पारा 43-44 के पार हर दिन हो जाता था।
तकरीबन सात बजकर दस मिनट की फ्लाइट थी, जो पहले जम्मू में रुकी, फिर तीन मिनट के बाद इतना ही समय लेकर दस बजे सुबह श्रीनगर के अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंच गये। घाटी का यह एयरपोर्ट बेहद आकर्षक है। जितना शांत है, उसके कहीं ज्यादा सुरक्षित। यहां उतरे तो तापमान 3-4 डिग्री सेल्सियस था। हलकी बारिश हो रही थी। एयरपोर्ट के बाहर निकलते ही सर्दी का अहसास हुआ तो सभी ने कुछ गर्म पकड़े पहन लिये। हां लखनऊ से हमारे जत्थे में चार लोग थे। उनमें दो हम दर्शनार्थी व दो लोग मनोज कुमार अवस्थी व सुनील कुमार थे।
इसके साथ ही कैम्प में ओम प्रकाश ऊर्फ ओमी भइया से भी मुलाकात हुई। इन लोगों को भण्डारा बॉलटॉल के रास्ते पहले बेस कैम्प मनीग्राम में कई वर्ष से लंगर (भंडारा) लग रहा था। उसकी व्यवस्था में स्थानीय लोग भी जुड़े थे आैर कुछ वाहन भी तो एक बाहर एम्बुलेंस के रूप में लगा था, जो जरूरत पड़ने पर सेवा के काम में आैर नहीं जरूरी हुआ तो सवारी वाहन के रूप में इस्तेमॉल हो जाता था।
पहले से तय कार्यक्रम के तहत एयरपोर्ट के बाहर वाहन हम लोगों के इंतजार में था। घर से गये थे तो एक लोग भोजन भी साथ ले गये थे, हम लोगों को भोजन से ज्यादा चाय पीने की इच्छा थी सो डल झील के किनारे वह अपने वाहन को ले गया आैर स्थान देखकर रोका। हल्की बारिश में डल लेक का नजारा बेहद सुंदर था। हल्की बारिश के बीच गुलाबी सर्दी में कश्मीरी चाय की चुश्कियां मिजाज को सुकून देने वाली रही। कुछ देर बार यहां से मनिगाम के लिए निकले। डल लेक के किनारे तकरीबन पांच-छह किलोमीटर चले होंगे कि जम्मू पुलिस ने वाहन रोकने का संकेत किया, चालक को बताया कि आगे रास्ता खराब है,अभी रुकना होगा।
चालक के स्थानीय होने के कारण हम लोगों ने रुकने के बजाय अपने वाहन को लौटाना ज्यादा मुनासिब समझा और फिर दूसरे रास्ते से निकले। तो श्रीनगर के ऐतिहासिक स्थल ईदगाह, बख्शी स्टेडियम, विधानभवन के सामने से गुजरने के दौरान वह मस्जिद भी देखी, जहां दहशतगर्दों ने जेएनके पुलिस के डीएसपी अयूब पंडित की हत्या कर दी थी। खैर हम लोग अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में पुलिस की चौकसी कुछ ज्यादा ही थी सो ड्राईवर ने मुख्य मार्ग के बजाय छोटे रास्तों को चुना।
इसी रास्ते का मां खीर भवानी का भी मंदिर पड़ा जहां हर दिन माता का खीर भेंट की जाती है। चौराहा कोई भी पडे़ रास्ते में सुरक्षा का बेहद चौकस इंतजाम था चप्पे-चपपे पर केंद्रीय सैनिक बल सेना के जवान और जम्मू कश्मीर पुलिस तैनात की गई थी जब भी यात्रा होती है तो पड़ोसी मुल्क से गुमराह युवा घात लगाकर कई बार यात्रा का विरोध करते हुए खलल डालने की कोशिश करते हैं ऐसा इसलिए ताकि भोलेनाथ की इस पवित्र यात्रा में व्यवधान पैदाकर भारत सरकार के लिए चुनौती से ज्यादा सुर्खियां हासिल की जा सके लेकिन बाबा बर्फानी के भक्तगण तो सभी प्रकार की बाधाओं को सहने व निबटने को तैयार रहते हैं। तकरीबन ढाई बजे हम लोग मनिगाम बेस कैम्प पहुंच गये थे, जहां लखनऊ का लंगर लगा हुआ था।
अमरनाथ के दर्शन की लालसा लेकर इस गुफा यात्रा के लिए जो कोई भी श्रद्धालु निकलता है। उसके लिए दो रास्ते हैं एक रास्ता जो जम्मू बेस कैंप से पहलगाम होते हुए बाबा बर्फानी के द्वार तक पहुंचता है। यह रास्ता कई दिनों का है और दूसरा रास्ता है बालटाल के रास्ते बाबा बर्फानी के दरवाजे तक जाना अमरनाथ यात्रा में साहसी और हिम्मती लोग बालटाल के रास्ते यात्रा करने की चुनौती स्वीकार करते हैं । बालटाल से पहले सेना का एक बेस कैंप है उसी बेस कैंप में लखनऊ से एक भंडारा आयोजित किया जाता है। जहां पर 7 दिनों तक लगातार भोले के भक्तों को श्रद्धा पूर्वक भोजन चाय इत्यादि का प्रबंध मुक्त किया जाता है साधक अपनी इच्छा से चाहे तो कुछ दान कर दें नहीं तो उनकी शिवा में कोई कमी नहीं होती है। सरकारी स्तर पर इस आयोजन को भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां हजारों की संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं वहीं हर बेस कैंप में सारी सुविधाओं का इंतजाम होता है। मसलन बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सफाई आैर रहने के लिए टेंट। अमरनाथ की यात्रा पर आने वाले की अभिलाषा दर्शन की होती है तो भोलेनाथ भोलेनाथ कहते जाओ आगे-आगे बढ़ते जाओ का जाप चलता रहता है।
मुझे अपना और अपने साथ में आए हुए अपने छोटे भाई समान बहन के पति कमल किशोर अवस्थी का भी ख्याल रखना था। वह भी समय-समय पर बाबा की रोचक कथाओ व यात्रा पूरी करने के लिए इंतजाम में लगे थे। पहली रात इसी बेस कैंप में हम लोगों ने बिताई। मौसम भी अनुकूल नहीं था यहां आने तक रास्ते में कई बार बारिश हुई और रास्ते में कभी जोर की कभी हल्की कभी फुहारे पड़ा, लेकिन गंतव्य को इन्हीं विपरीत मौसम देखते हुए पहली रात बितानी पड़ी सुबह उठे तो लोगों से जानकारी हुई की आज बालटाल के रास्ते कुछ श्रद्धालुओं को अमरनाथ बर्फानी के दर्शन के लिए रवाना किया गया है हम लोगों ने भी अपना अधिकार से सामान इसी बेस कैंप में छोड़कर जरूरी सामान लेकर बालटाल के लिए रवाना हुए ही थे कि फिर से घटा टॉप बादल छाये और जोरों की बारिश होने लगी एक बार अमरनाथ के लिए निकल पड़े कदम फिर भी नहीं रुके भी नहीं बढ़ते ही गए बेस कैंप के नीचे आए तो सुरक्षा में तैनात बलों से मदद मांगी कि वें हमें बालटाल तक ले जाने वाहन का उचित प्रबंध करें सुरक्षाकर्मी भी धर्म परायण थे उनमें एक यूपी के बलिया और दूसरा बिहार का था लिहाजा हम लोगों उन्होंने भी मान रखा और वाहनों को रोकने के प्रयास में लग गया बारिश के बीच एक बड़ी गाड़ी आई जो बालटाल के लिए जा रही थी। उसने वाहन रोका और हम दोनों लोगों को वाहन चालक को बालटॉल तक सुरक्षित ले जाने की नसीहत देकर रवाना कर दिया। मनीगाम से पवित्र गुफा को जाने वाले दूसरा बेस कैम्प बालटाल करीब 63 किलोमीटर था। बालटाल के रास्ते में बारिश भी हो रही थी लिहाजा गति को भी नियंत्रित रखकर वाहन चलाना चुनौतीपूर्ण था, लेकिन वाहन चालक निपुण होने के साथ स्थानीय भी था सो उसे हालात की पूरी जानकारी थी। रास्ते में उसने सवारियां बैठायी कुछ उतारा और फिर तकरीबन दो घंटे के लंबे सफर के बाद हम लोग बालटाल तक आ पहुंचे। बेस कैंप में लोगों की सिक्योरिटी चेक व्यापक का इंतजाम था, सुरक्षा घेरे से गुजरे बगैर कोई भी बेसकैम्प में दाखिल नही हो सकता था। यह शायद वहां अशांति व खतरों से आगाह रहने के लिए ज्यादा रहा होगा। अपने कुछ सामान के साथ हम लोगों ने भी सुरक्षा में सहयोग किया और अपने सारे सामान की स्क्रीनिंग कराई। वहां पहुंचे तो पता लगा कि पवित्र गुफा के रास्ते में मौसम विपरीत होने के कारण यात्रा को स्थगित कर दिया गया है।
बालटाल के बेस कैंप से किसी को भी जाने की इजाजत नहीं थी लिहाजा हम लोगों ने दूसरी यानि पांच जुलाई की रात वहीं बालटाल में बिताने का निर्णय किया इसके लिए रुपये 200 प्रतिदिन के हिसाब से दो छोटे-छोटे बेड लिए गये। टेंट में सोने का यह पहला तजुर्बा था, सो नींद भी नहीं आयी। बेचैनी बाबा बर्फानी के दर्शन करने को लेकर थी और खराब मौसम ने हम लोगों को उहापोह की स्थिति में डाल रखा था। खैर न सबके बाद भी सकारात्मक सोच के साथ आगे के लिए बढ़ने को आतुर थे। पूरी रात सोते-जागते इस उम्मीद के साथ बितायी कि भोर में मौसम बेहतर होगा। इसकी एक वजह भी थी कि पांच को भरे ही यात्रा स्थगित रखी गयी थी, लेकिन बेस कैम्प में मौसम सुधरा था, बर्फीली पहाड़ियों पर चमकर्ती सूर्य की किरणें पर्वतमाला की आभा को स्वर्णमयी बना रही थी। 6 जुलाई का अब भोर होने को था। आमतौर पर मौसम साफ रहे तो यात्रा सुबह साढ़े पांच बजे से खोल दी जाती है। सो सुबह चार बजे से ही हम लोग तैयारी में लग गये। हमारी टेंट उस जगह पर जहां से संदेश प्रसारित होता था आैर जाने के लिए गेट भी था, तो भोर बाबा अमरनाथ बर्फानी के दर्शन के लिए आतुर श्रद्धालुओ की भीड़ जमा हो गयी। इनमें डोली वाले भी थे, जो अपने सवारियों को लेकर यात्रा पर रवाना होने के लिए तैयार थे। देखते ही देखते हजारों की संख्या में लोग जमा हो गये और सभी सेना के उद्घोषणा का इंतजार कर रहे कि यात्रा को हरी झण्डी मिलने का एलान हो।
घड़ी अपनी ही गति में चले जा रही थी। अब एक घण्टे से ज्यादा का वख्त बीत चला और सुबह सूर्य की किरणें अपनी आभा को बिखरेने को तैयार हुई, इसी दौरान ठीक छह बजे एलान हुआ कि बालटाल से यात्रा आज भी स्थगित रहेगी।
बालटॉल में बस गया था मिनी भारत
बालटाल वाले रास्ते से यात्रा रुकी होने के कारण बेस कैंप में प्रतिदिन लोगों का इजाफा हो रहा था यहां भी अमरनाथ की दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लंगर के इंतजाम कर रखे थे तकरीबन बालटाल में 20 लंगर लगाए गए थे कोई दिल्ली से राजस्थान से जयपुर से हरियाणा से उत्तर प्रदेश से। राज्यवार लंगर लगे हुए थे सभी लंगर में आने वाले लोगों के भोजन इत्यादि का प्रबंध करने में जुटे हुए थे हम लोग भी लंगर जाकर प्रसाद के लिए हिस्सा बने और भोजन लेकर अपने कैंप में आ गए यहां सब कुछ अस्थाई था फिर भी बॉलटॉल में एक तरीके से मिनी भारत बस गया था, देश के विभिन्न हिस्सों से लोग दर्शनों की अभिलाषा में डेरा डाले थे। यहां टेंपरेरी इंतजाम होने के कारण दैनिक इस्तेमाल की सुविधाएं भी कामचलाऊ थी।
रात में जैसे-तैसे नींद आई तापमान बेहद कम था। दो-दो रजाई, कबंल होने के बाद भी सर्दी का आगोश में लेने को तैयार थी सो बचाव के लिए बारिश में इस्तेमाल होने वाले जैकेट्स पहन कर ही लोग लेटे थे छह की भोर 4:00 बजे तभी से पालकी वाले घोड़े वाले पैदल भक्तों की कतारें जमा होने लगे हम लोग भी उठे कपड़े पहने इस उत्साह के साथ कि जैसे ही गेट खुलेगा तो हम लोग भी दर्शनों के लिए अपने गंतव्य पर निकल पड़ेंगे। यह यात्रा सेना की सख्त निगरानी में होती है यात्रा शुरू होगी नहीं कब शुरू होगी बंद कर दी जाएगी सब कुछ पहलगाम के एसएसपी व सेना के अधिकारियों की संयुक्त रिपोर्ट पर निर्भर करता है मौसम विपरीत होने के कारण पहले कई दिनों से यात्रा जत्थे रवाना नहीं हो सके थे तो अधिकारी वह स्वयं मार्ग का निरीक्षण करते हैं और संतुष्ट होने पर ही तीर्थ यात्रियों को जाने की अनुमति प्रदान की जाती है। इस मार्ग पर तकरीबन 2 किलोमीटर चलने पर एक और बेस कैंप से लोगों को गुजरना पड़ता है इस बेस कैंप पर रजिस्ट्रेशन की जांच होने के बाद ही यात्रियों की पूरी निगरानी रखी जाती है।
जांच पड़ताल के बाद ही उन्हें आगे के लिए रवाना किया जाता है हम लोगों को भी उम्मीद थी कि यात्रा चलेगी इसलिए फ्रेश हो गए कपड़े पहन कर तैयार हो गए कि स्नान ऊपर ही किया जाएगा लेकिन यात्रा शुरू होने की नौबत ही नहीं आई सेना की ओर से बताया गया की पंचतरणी से लेकर रास्ते में भीषण बारिश और बर्फबारी के चलते यात्रा स्थगित रहेगी सेना की ओर से प्रसारित यह संदेश हम लोगों के लिए दर्शनों की उम्मीदों पर किसी तुषारापात पास से कम ना था लेकिन जब कोई अपने घर से 3000 किलोमीटर दूर बैठा हो तो वह कर भी क्या सकता है सिवाय इसके कि सब कुछ बाबा अमरनाथ बर्फानी की कृपा पर छोड़े और इंतजार करे। इस कैंप में तो कुछ लोग 15 दिनों पहले से आए हुए भी ठहरे थे अपनी अपनी आपबीती बताते और एक दूसरे को हौसला देते हैं हां यह भी बताना जरूरी है कि 5 जुलाई को जब थोड़ा सा मौसम ठीक हुआ था तो यात्रा जाने तो नहीं दिया गया लेकिन ऊपर से कुछ तीर्थयात्री बालटाल बेस कैंप को लौटे जरूरत है और जिस तरह से उन्होंने अपनी स्थिति बताई थी अपनी परेशानियां गिनाए तो वह हर सुनने वाले के लिए रूह कपाने जैसा था सर्दी के मौसम में उनकी आपबीती मानो बर्फबारी उम्मीदों पर कर रही थी।
पहलगाम जिले के एसपी अपने कुछ हमराहों के साथ ऊपर मार्ग के हालात का जायजा लेने गये हैं, उनके आने के बाद आगे के लिए विचार किया जाएगा।
अब बाबा बर्फानी के दर्शनों के लिए हमें तीसरा दिन हो गया था। 8 जुलाई को मेरे वापसी का टिकट था सो बेचैनी आैर बढ़ गयी। बालटॉल के रास्ते भोलेनाथ के दर्शन के लिए नाउम्मीदी सी दिख रही थी।
हां बेसकैम्प में पांच की रात में कानपुर के गुप्ता दम्पत्ति व भोपाल के मिश्रा जी लौटे थे। दोनों को बाबा के दर्शन तो हो गये थे, लेकिन काफी दिक्कत उठानी पड़ी थी सो उन्होंने अपनी आपबीती सुनायी फिर भी धैर्य बंधाया कि दर्शन जरूर होंगे। छह जुलाई की सुबह वह लोग तो अपने गंतव्य जम्मू के लिए रवाना हो गये, और अब हम लोग विचारमग्न थे, कि बिना दर्शन किये लौटे भी तो कैसे, बड़ी मुश्किल से चार वर्ष की कोशिश के बाद तो बाबा बर्फानी के दर पर आना हुआ था। यहीं पर एक गुजरात (अहमदाबाद) से आये भक्त मिले, तो तकरीबन 15 दिनों से डेरा जमाये थे, वह तो वहां 27 जून को ही आ पहुंचे थे, लेकिन अभी बाबा की कृपा नहीं मिल पायी थी। मैने अपने साथ गये बहनोई से विचार किया आैर दर्शनों की उधेडबुन में लग गया। बॉलटाल में अमरनाथ श्राइन बोर्ड के प्रबंधक ट्रस्टी का कार्यालय है, सो यहां के प्रबंधक से मिलकर हमने मदद लेने का निश्चय किया। उनके कार्यालय में दाखिल हो गये। वह भी बेहद सौम्य थे, यहां हमने दर्शन की अभिलाषा तो जतायी, साथ ही खुद की पहचान दी कि पत्रकार हैं। मेरा बातचीत का तरीका उनको प्रभावित कर गया तो
उन्होंने बॉलटाल से सात-आठ किलोमीटर पहले सोनमर्ग एयर स्ट्रिप से निजी हवाई सेवा के लिए बनाये गये एयरपोर्ट के मैनेजर विवेक राणा से बात की। विवेद ने उन्हें मदद करने का आश्वासन देकर भेजने को कहा। परदेश में दस कदम की दूरी भी भारी लगती है सो इन सात किलोमीटर के लिए सवारी वाहन खोजने लगे। वाहन मिला, लेकिन मौके का फायदा उठाने में पीछे न रहा है, हम लोगों से 100-100 रुपये लिए आैर सोनमर्ग ले आया। सुरक्षा के बेहद कड़े इंतजाम थे। मेरा मोबाइल भी यहां काम नहीं कर रहा था। सोनमर्ग पहुंचा तो भोलेनाथ के दर्शनों का संकल्प मेरा और पक्का हो गया। सुबह दस बजे से दो टिकट के इंतजाम में लगा आैर शाम होने को आ गयी। निजी हवाई सेवा के जरिये बाबा के भक्तो को पंचतरणी तक ले जाया जा रहा था। हां 4 व पांच जुलाई को बालटाल वाले रास्ते पर बारिश व लैण्ड स्लाइड होने के कारण कुछ जाने से भी चली गयी थी सो सेना के हेलीकाप्टरों को रेस्क्यू में लगाया गया था, दो बड़े व एक छोटे सेना के हेलीकाफ्टर से ऊपर फंसे लोगों को बालटाल व सोनमर्ग उतारा जा रहा था। तकरीबन शाम के पांच बज गये और कार्यालय में कामकाज भी बंद होने वाला था, इसी बीच एक निजी सेवा के बड़े अधिकारी ने हम लोगों के टिकट बनाने का निर्देश अपने मुलाजिम को दिया तो पूरे दिन से मुरझाया चेहरा जैसे खिल गया हो। इन दो टिकट को हासिल करने के लिए अपने कई सम्पर्को को टटोला जो था।
आखिर वह समय आ गया जब हम दोनों एक ही हेलीकाप्टर में सवार होकर पंचतरणी लैण्ड कर गये। यहां उतरते के बाद जब बाहर निकले तो सीधे एक भण्डारे की ओर मुखाबित हुए। पंचतरणी पवित्र गुफा की ओर जाने का अंतिम ठहराव स्थल था। यहां से शाम तीन बजे के बाद पवित्र गुफा के लिए जाने पर सेना की ओर से रोक रहती है। पंचतरणी से अमरनाथ के लिए सुबह छह बजे से अपराह्न तीन बजे तक की जाने की व्यवस्था है आैर लौटना शाम होने के पहले ही करना होता है।
पंचतरणी में उस दिन शाम के वक्त तापमान 1-2 डिग्री के बीच रहा होगा। जाते ही रहने के स्थान की तलाश की। यात्रा पर आने वालों में यहां रात बिताने वालों की तादाद ज्यादा नहीं रहती है, इसके चलते इंतजाम भी सीमित रहते हैं। सिक्योरिटी फोर्सेज की अपनी व्यवस्था के अलावा लगभग एक हजार लोगों के लिए टेंट लगे होंगे, जो वहीं के लोगोंके द्वारा संचालित हैं। अगर यात्रा में रुकावट आयी तो कीमतें चढ़ते देर नहीं लगती है, कई बार तो मनमानी कीमत को दोगुने तीन गुने पर टेंट मिलते हैं। टेंट में कई बेड होते हैं और हर बेड के हिसाब से किराया। हम दोनों ने भी एक टेंट को अपनी सामर्थ्य से चुना। दो-दो रजाई, नीचे कम्बल बिछे, फिर भी रात तकरीबन दो बजे तापमान गिरकर माइनस में चला गया, ठण्ड के चलते नींद टूटी, तो कुछ और गर्म कपड़ों की जरूरत पड़ी। खैर यहां से पवित्र गुफा की दूरी आठ किलोमीटर है। हमें लौटना भी था तो एक-एक घोड़ा किया गया। हमारी यात्रा तीसरे दिन सुबह छह बजे शुरू हुई। पंचतरणी ने आगे बढ़े तो एक नदी पड़ी। वैसे तो वह सूखी थी, लेकिन पहाड़ की नदियां कब उफनाने लगे पता नहीं चलता तो हमें जल्दी से उसको पार करना पड़ा। तंग व संकरे रास्ते से ऊपर-नीचे चलते यह पिट्ठू घोड़ा से सफर करना भी आसान नहीं है। कुछ घण्टों की यात्रा के बाद संगम टॉप पहुंचे। यहां बॉलटॉल व पहलगाम दोनों ओर से आये यात्रियों का मिलाप से होता है। पूरा बर्फ का पड़ाड है, नीचे नदी बहती है। कुछ लोग यहां ठहरते हैं स्नान करने के लिए।
हम लोग को पंचतरणी से ही स्नान करके आये थे। पंचतरणी में एक बाल्टी गर्म पानी की कीमत 100 रुपये थी। अमरनाथ बाबा के दर्शन की कामना हो तो रुपया गौड़ लगता है। तकरीबन नौ बजे दो किलोमीटर बर्फ के पर्वत पर चलने के बाद हम भी पवित्र गुफा के करीब पहुंच गये। अभी मंजिल 350 सीढ़ी दूर थी। यहां से बाबा बर्फानी के दर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों का एक लम्बा रास्ता है। पहले से थकावट तारी रहती है तो यह सीड़ियां भी पहाड़ से कम नहीं नजर आती है। सामने अभी बर्फानी बाबा के दर्शनों की उम्मीद और बढ़ गयी। दो दिनों से यात्रा स्थगित होने के कारण तीसरे दिन दर्शन करने वालों की संख्या कम थी। भोलेनाथ के पहले विरॉजमान नंदीश्वर के दर्शन किये। उनका आशीर्वाद लेने के बाद फिर आगे बढ़े। आखिर मंजिल मिल गयी थी। बर्फ के लिंग रूप में भोले बाबा विराजमान थे। आंखे दर्शन पाकर निढ़ाल थी। हम उनकी छवि को अंतरमन में उतारने के लिए एकटक निहार रहे थे। पलके ठहरी हुई थी। नयनो से नीर अस्श्रु बनकर बह रहा था। यह खुशी के आंसू थे जो दर्शन मिलने के बाद निकल आये थे। भोले बाबा यहां अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं। वैसे जनश्रुति है कि उन्होंने मां पार्वती को ही अमरकथा सुनायी, लेकिन कुमार कार्तिकेय व भगवान गणेशजी भी वर्फ रूप में प्रकट हुए थे। वह दोनो कबूतर अभी भी विराजे हुए हैं। ऊपर से जलधारा गिर रही है, इसे गंगाजल मानते हैं। शिव परिवार के दर्शन के बाद जब नीचे आ रहे थे, तो लगा कि जैसे थकान गायब हो गयी है। शिवलिंग से निकले अमृत मयी जल का पान किया। नीचे उतरे तो घर की याद आयी। सभी के लिए याद रखकर कुछ न कुछ प्रसाद खरीदा। फिर घोड़ा वाले संगम टॉप कर आ गये, अपनी सवारी से पंचतरणी पहुंचे। काफी इंतजार के बाद सोनमर्ग की फ्लाइट मिली। दर्शन मिलने की खुशी थी, लेकिन चिंता श्रीनगर पहुंचने की। सात जुलाई को जब दर्शन करके लौट रहे थे अपराह्न के तीन-चार बज गये। यहां आये तो पता चला कि घाटी में कुछ अशांति है। दहशतगर्दों ने एक सुरक्षाबल को अगवा कर उनकी जान ले ली थी। इसके चलते घाटी बंद का आह्वान था वाहनों की हड़ताल हो गयी। जैसे तैसे सोनमर्ग एयरपोर्ट से टैक्सी स्टैण्ड तक आये, फिर शाम होते श्रीनगर आ गये। यहां हम लोग एक होटल में ठहरे। रात में भोजन के लिए निकले तो अघोषित कफ्र्यु जैसे हालात थे। श्रीनगर शहर में इंटरनेट सेवा प्रतिबन्धित थी, इसकी वजह से कॉल करने में भी कठिनाई आयी। जैसे-तैसे रात बितायी। सुबह आठ जुलाई की फ्लाइट से लखनऊ लौटना था, आटो बुलाकर एयरपोर्ट के लिए निकले तो हवाई अड्डे से कुछ पहले ही हमारे वाहन को रोक लिया गया। वह कोई आतंकी नहीं थे, फिर भी आठ जुलाई को श्रीनगर की सड़कों पर सन्नाटा तभी टूटता था जब सुरक्षाबल दिखते थे।
अन्यथा एक दहशतगर्द की दूसरी बरसी होने के कारण सभी कुछ अशांति को समेटे खामोसी में था। एयरपोर्ट पर दाखिल होने के बात राहत मिली। फिर ठीक बारह बजकर एक मिनट पर लखनऊ की सरजमी पर थे। अपने वतन लौटने की खुशी का ठिकाना ही न था। इस प्रकार से जब भोलेनाथ की विशेष कृपा होती है, तभी दर्शन देते हैं, अन्यथा वहां जाकर पता चलता है कि दसदस दिन इंतजार के बाद भी अधूरी यात्रा करके लोग लौट रहे थे।
प्रस्तुति- कमल तिवारी