आजादी के बाद से लगातार आम जन के मानस पटल से विस्मृत हो रहा था सनातन ज्ञान, नजरअंदाज हो रही थी गौरवशाली सनातन परम्परा व ज्ञान
आजादी के बाद जिस नए भारत के निर्माण की हुंकारें भरी जाती रहीं, उसमें पुरानी सनातन परम्परा को समाप्त करने का कुचक्र भी शामिल रहा। उस समय जिस नए भारत के निर्माण का दंभ भरा जाता था, उसमें सनातन परम्पराओं को हाशिये में छोड़ दिया गया था, उन्हें नए भारत निर्माण में साथ-साथ चलने की गुजाईश ही नहीं छोड़ी गई थी। योग व आयुर्वेद जैसे वैदिक ज्ञान को हाशिये में डाल दिया गया था। विदेशों में हमारे वैदिक ज्ञान को लेकर रिसर्च हो रहे थे, लेकिन भारत में कुछ खास नहीं। ऐसे में भारतीय जन के मानस पटल से विस्मृत हो रहे इस वैदिक ज्ञान को बाबा राम देव ने जन-जन तक पहुंचाया। विश्व पटल पर इसे गौरान्वित स्थान दिलाया। आयुर्वेदिक औषधियों के महत्व को जन मानस तक पहुंचाया। यह वह ज्ञान है, जो हमारी वैदिक संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। बाबा राम देव ने तो बस आज के दौर में इसका प्रचार-प्रसार किया है…..
बाबा रामदेव, एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसके दुनिया में करोड़ों अनुयायी हैं। वह संत होकर भी उद्योग जगत में पहचान बनाने वाला व्यक्तित्व हैं, तमाम खूबियों के बावजूद प्रशंसा और निदा का केंद्र बनने वाला व्यक्तित्व है, वामपंथियों की निशाने पर रहने वाला और दक्षिणपंथी से सराहा जाने वाला व्यक्तित्व, सदा से ही कांग्रेस व वामपंथियों की आंख की किरकिरी रहा और भाजपा की आंख का तारा माना जाने वाले बाबा रामदेव, बेशक आज किसी पहचान के मोहताज नहीं रहे हैं, उनके प्रशंसक कहते हैं, उन्होंने योग और आयुर्वेद को आज के दौर में सामाजिक रूप से स्वीकार्यता प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई, हालांकि यह कहना अतिशयोक्ति ही है, क्योंकि योग व आयुर्वेद सनातन परम्परा का सदा से ही अभिन्न अंग रहा है, योग महज शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि आत्म उत्थान के लिए हमारे ऋषि-मुनि योग को दैनिक जीवन में अपनाते थे। ऐसा भी नहीं कि केवल हमारे ऋषि-मुनि ही योग और आयुर्वेद को अपने दैनिक जीवन में अपनाते रहे हैं, बल्कि सामान्य जन भी योग और आयुर्वेद के महत्व से पूर्णत: परिचित रहा हैं।
हमारे दैनिक जीवन में जो आहार ग्रहण किया जाता है, उसमें आयुर्वेद से संबंधित सामग्री का प्रयोग दैनिक रूप से होता चला आ रहा है। कुल मिलाकर कहने का आशय मात्र इतना है कि आयुर्वेद और योग हमारे जीवन में हमेशा से रहा है। हां, बस, बाबा रामदेव जी के प्रयास से इतना रहा है कि उन्होंने इसे विश्व पटल पर इसे बृहद रूप में प्रस्तुत कर दिया। जिससे आमजन जो इसके महत्व को नहीं जानते थे, भूल चुके थे या भूलते जा रहे थे, उन्हें भी इसके महत्व से परिचित कराया। योग और आयुर्वेद के बाबा रामदेव जनक नहीं हैं, बल्कि उन्होंने इस प्राचीन विधा को जन जन तक पहुंचाने में मूल्यवान योगदान दिया है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसा नहीं कि बाबा रामदेव से पहले भारत की कम्पनियां आयुर्वेद से संबंधित दवाई नहीं बनाती थी। निसंदेह बनाती थी। उनकी दवाओं की खपत भी होती थी, लेकिन वहीं इस्तेमाल करते थे, जो इनका मूल्य समझते थे, लेकिन बाबा रामदेव के प्रयासों से योग और आयुर्वेद घर-घर तक अब पहुंच रहा है, जो कि अत्यंत सराहनीय प्रयास है, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम होगी। इसी पहलू को लेकर हमारे दक्षिणपंथी विचारधारा को स्वीकार करने वाले उनकी सराहना करते हैं, जो कि गलत भी नहीं है।
वहीं वामपंथी या सो-कॉल्ड सेक्युलर उनका हमेशा से विरोध करते आए हैं, क्योंकि आजादी के बाद जिस भारत के निर्माण सपना उन्होंने संजोया था, उसमें हमारी गौरवशाली परम्परा को वह स्थान नहीं दिया गया था, जो दिया जाना चाहिए था, या यूं कहें भारत की गौरवशाली सनातन परंपरा को समाप्त करने का कुचक्र रचा जाता रहा था और है। सदियों से दबाई जा रही भारत की गौरवशाली परंपरा को आजादी के बाद भी पुन: पनपने से रोका गया। अब जब यह सो-कॉल्ड सेक्युलर या वामपंथी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो अब उनके निशाने पर वे सभी लोग भी हैं, जो सनातन परंपरा के पक्षधर हैं या फिर सनातन परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं या फिर परंपरा के लिए समर्पित होकर राष्ट्र निर्माण के में संलग्न है, ऐसे वामपंथियों की विचारधारा को भारत की जनता पहले ही दरकिनार कर चुकी है, उन्हें हाशिए में ढकेल चुकी है।
अब मात्र वे अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत हैं। इसके लिए तमाम प्रोपेगंडा का सहारा लिया जा रहा है। ये सो-कॉल्ड सेक्युलर बाबा रामदेव का इस बात को लेकर विरोध करते हैं कि वे संत होकर भी कारोबार कैसे कर सकते है? वे संत नहीं व्यवसायी बन गए हैं। वह यह बात भूल जाते हैं कि संत का काम समाज को दिशा देना होता है, यह सदा से होता आया है। समय- काल- परिस्थिति के अनुसार उनकी भूमिकाएं बदलती रहती हैं। मौजूदा समय में आयुर्वेद व योग को जिस तरह से लोग भूलते जा रहे थे।
ऐसे में बाबा रामदेव ने आमजन के मानस पटल से विस्मृत हो रहे योग और आयुर्वेद को जीवंत करने का कार्य किया। उनका लक्ष्य पवित्र प्रतीत होता है। व्यवसाय समय-काल और परिस्थिति के मुताबिक आवश्यकता रहा, ताकि हमारे आयुर्वेद को संगठित रूप से उद्योग का दर्ज़ा देकर विश्व पटल पर प्रस्तुत किया जा सके, जो कि बाबा रामदेव ने किया। लिहाजा सो कॉल्ड सेक्युलर व वामपंथियों का विरोध कहीं ना कहीं कुंठा से ग्रसित नजर आता है, उनका विरोध भारतीय सनातन परंपरा आगे बढ़ने से रोकने का विरोध मात्र बनकर रहता प्रतीत होता है। सनातन परंपरा के लिए संघर्षशील बाबा रामदेव के प्रयासों को को किस तरह से कुचलने का प्रयास किया गया, इसकी बानगी कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में देखी गई थी।