बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गांव के पार करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। मंदिर लाल बलुआ पत्थर का बना है, जिसमें टेराकोटा का सुंदर कार्य हुआ है। इसकी शक्ति है अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं। प्रजापति ब्रह्मजी ने यह विधान बनाया है कि जो मनुष्य करतोया में जाकर वहां स्नान कर तीन रात्रि उपवास करेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होगा। धर्म शास्त्रों में इस पावन शक्तिपीठ की महिमा का गान विस्तार से किया गया है, यहां तक कहा गया है कि यहां सौ योजन क्ष्ोत्र में मृत्यु की कामना तो मनुष्य तो क्या देवता भी करते है।
भगवती का यह स्वरूप मनुष्य का सर्वदा कल्याण करने वाला है। सच्चे मन-वचन-कर्म से भगवती के दर्शन पूजन का विश्ोष फल प्राप्त होता है और जन्म जन्मान्तर के कष्टों को हरने वाला है।
महाभारत के वनपर्व (85-3) के अन्तर्गत तीर्थयात्राविषयक प्रसंग में यहां के महात्म्य का वर्णन प्राप्त होता है-
करतोयां समासाद्य त्रिरात्रोपोषितो नर:।
अश्वमेधवाप्नोति प्रजापतिकृतो विधि:।।
अर्थात प्रजापति ब्रह्मजी ने यह विधान बनाया है कि जो मनुष्य करतोया में जाकर वहां स्नान कर तीन रात्रि उपवास करेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होगा।
सर्वरूपमयी देवी सर्वं देवीमयं जगत
वैसे तो यह सम्पूर्ण संसार ही देवीमय है, सृष्टि के कण-कण में उन्हीं आद्याशक्ति जगन्मयी जगदम्बा का निवास है, परन्तु कुछ विशष्ट स्थान-दिव्यक्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां देवी चिन्मयरूप से विराजती हैं और उनकी इसी संनिधि के कारण वे स्थान भी चिन्मय हो गये हैं। शक्ति के इन्हीं स्थलों को देवी-उपासना में शक्तिपीठ की संज्ञा दी गयी है। एक पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 51 स्थलों पर गिरे थे।
बँगलादेश जो वस्तुत: भारत के बंगाल प्रान्त का ही पूर्वीभाग है, प्राचीन काल से ही शक्त्युपासना का बृहत्केन्द्र रहा है। इतना ही नहीं, यहां के चटटल शक्तिपीठ के शिव मंदिर की तो तेरहवें ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में मान्यता है। तंत्रग्रन्थों में इस प्रदेश का विशिष्ट महत्व वर्णित है। शक्तिसंगमतंत्र के अनुसार यह क्षेत्र सर्वसिद्घिप्रदायक है-
रत्नाकरं समारभ्य ब्रह्मपुत्रान्तंग शिवे।
बङ्गदेशों मया प्रोक्त: सर्वसिद्घिप्रदर्शक:।।
बँगलादेश में चार शक्तिपीठों की मान्यता है-चटï्टलपीठ, करतोयातटपीठ, विभाषपीठ तथा सुगन्धापीठ। इनमें करतोयातटका विशेष महत्व है। यहां इसी पीठ का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है-
करतोयातट शक्तिपीठ प्राचीन बंगदेश और कामरूप के सम्मिलनस्थलपर 100 योजन विस्तृत शक्तित्रिकोण के अन्तर्गत आता है। यह सिद्घिक्षेत्र है। यहां देवता भी मृत्यु की इच्छा करते हैं फिर अन्य प्राणियों की तो बात ही क्या-
सरतोयां समासाद्य यावच्छिखरवासिनीम।
शतयोजनविस्तीर्णं त्रिकोणं सर्वसिद्घिदम।।
देवा मरणमिच्छन्ति किं पुनर्मानवादय:।।
इस क्षेत्र के घर-घर में देवी का निवास माना जाता है। स्वयं देवी का ही कथन है-
‘सर्वत्र विरला चाहं कामरूपे गृहे गृहे।।’
जिस प्रकार काशी में श्रीमणिकर्तिकातीर्थ है, उसी प्रकार करतोयातट पर भी श्रीमणिकर्णिका मंदिर था, जहाँ भगवान श्रीराम ने शिव-पार्वती के दर्शन किये थे। आनन्दरामायण के यात्राकाण्ड (9-2)-में श्रीराम की तीर्थयात्रा के अन्तर्गत इसका वर्णन प्राप्त होता है-
पश्यन्स्थलानि सम्प्राप्य तप्तां श्रीमणिकर्मिकाम।
करतोयानदीतोये स्नात्वाग्रे न ययौ विभु:।।
भगवान श्रीराम के यज्ञ में अश्व के करतोयातट का ही जाने का वर्णन प्राप्त होता है, जिससे यह ज्ञात होता है कि उस समय भी इसकी प्रतिष्ठïा थी-
ययौ वाजी वायुगत्य शीघं ज्वालामुखीं प्रति।
दोषभीत्या करतोयां तीत्र्वा नैवाग्रतो गत:।।
(आनन्दरामायण, यागकाण्ड 3-35)
करतोयानदी को ‘सदानीरा’ कहा जाता है, श्रावण और भाद्रपदमास में प्राय: नदियों का जल दूषित होकर स्नान के आयोग्य हो जाता है, पर यह तब भी पवित्र बनी रहती है। वायुपुराण के अनुसार यह नदी ऋक्षपर्वत से निकली है और इसका जल मणिसदृश उज्जवल है। इसको ‘ब्रह्मरूपा करोदभवा’ भी कहा गया है।
कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति शिव-पार्वती के पाणिग्रहण के समय शिवजी के हाथ पर डाले गये जल से हुई है, इसीलिए इसकी शिवनिर्माल्यसदृश महत्ता है, इसका लंघन नहीं करना चाहिए। आनन्दरामायण में वर्णन आता है कि प्रभु श्रीराम तीर्थयात्रा करते हुए करतोयातट तक गये थे, पर उसके संघन में दोष जानकर उस पार नहीं गये। इसी करतोया के तट पर देवी सती के वाम तल्प का पतन हुआ था, जिसके कारण यह स्थान शक्तिपीठ बना। यहां देवी सती अपर्णारूप से तथा भगवान शिव वामनभैरव रूप से निवास करते हैं। यहां पहले भैरवरूप शिव के दर्शन कर तब देवी का दर्शन करना चाहिये।
तंत्रचूड़ामणि के पीठनिर्णय-प्रकरण में करतोयातट वर्णन इस प्रकार प्राप्त होता है-
करतोयातटे तल्पं वामे वामनभैरव:।
अपर्णा देवता तत्र ब्रह्मïारूपा कराद्भवा।।
यह स्थान बोंगड़ा जनपद के भवानीपुर नामक ग्राम में स्थित है। मंदिर लाल बलुआ पत्थर का बना है, जिसमें टेराकोटा का सुंदर कार्य है।
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