भगवान महादेव ने अर्जुन को जिस स्थान पर पाशुपतास्त्र दिया था। वह आज झारखंड मैं है। उस स्थान पर भगवान भोलेनाथ का किरात मंदिर है जो आज भी श्रद्धालुओं के विश्वास का केंद्र है महादेव का यह मंदिर काफी प्राचीन है और श्रद्धालु अटूट श्रद्धा भाव से यहां दर्शन पूजन के लिए आते हैं। अर्जुन को स्वर्ग लोक में प्रवेश देने से पूर्व पुणे भगवान भोलेनाथ को पसंद करने के लिए कहा गया था।भगवान भोलेनाथ का जब अर्जुन ने भक्ति पूर्वक पूजन अर्चन किया तो उसे भगवान भोलेनाथ शिव शंकर ने अपने दिव्य स्वरुप के दर्शन कराए थे। भगवान भोलेनाथ के उस दिव्य दर्शन का ही प्रभाव था कि जब अर्जुन को स्वर्ग लोक में इसका मौका मिला तो उन्होंने उर्वशी तक के निवेदन को भी अस्वीकार कर दिया था।
भगवान शिव के भक्तों में सत्कर्म का उदय होता है ।जिसका प्रभाव आप अर्जुन के चरित्र में अनुभव कर सकते हैं, क्योंकि भगवान भोलेनाथ शिव शंकर अपने भक्तों के कल्याण के लिए उनके दुर्गुणों और इंद्रियों के प्रति आसक्ति को ही समाप्त करते हैं। भोलेनाथ का भक्त मूल आत्मस्वरूप को भगवान शिव की कृपा से ही जान पाने में सामर्थ वान बनता है।
आगे हम आपको जो संक्षिप्त कथा बताने वाले हैं वह इस ओर ही स्पष्ट तौर पर इंगित करने वाली है।अर्जुनने अपने जीवनकाल में पशुपतास्त्र का प्रयोग नही किया। इसे प्रदान करते समय भगवान शिवने कहा था कि इस अस्त्र में पुरी सृष्टी का विनाश करणे कि क्षमता है। इसे प्रयोग ना करे|।
वनवास के दौरान महर्षि वेदव्यास पांडवों से मिलने आये। तब ये बात हुई कि किस तरह दुर्योधन राजाओं को अपने पक्ष में करता जा रहा है, इसलिए पांडवों को भी अपने बल में वृद्धि करनी चाहिए। तब व्यास जी ने अर्जुन को सलाह दी कि वो देवराज इंद्र से मिलकर देवास्त्र लाये। जब महर्षि व्यास के कहने पर अर्जुन देवराज इंद्र से दिव्यास्त्र लेने चले तो इंद्र वेश बदलकर उनसे मिले। जब इंद्र को अर्जुन की इच्छा पता चली तो उन्होंने कहा कि आजकल मनुष्यों को दिव्यास्त्र और देवास्त्र देने में हम ज्यादा सावधानी बरत रहे हैं क्योंकि पहले मानवों ने इनका दुरुपयोग किया था। तुम पहले महादेव को प्रसन्न करके पाशुपातास्त्र प्राप्त करो फिर इंद्रपुरी के दरवाजे खुल जाएंगे।
यदि कोई सात्विक मनुष्य महादेव को प्रसन्न करने चले तो पहले उसके मन का मल महादेव मल-मल कर निकालते हैं।अर्जुन के साथ भी यही हुआ। पहले तो लंबी तपस्या ने अर्जुन का मन निर्मल किया, फिर महादेव ने किरात अवतार लेकर उसका गर्व नष्ट किया। इसके बाद जब महादेव ने अर्जुन को दर्शन देकर पाशुपातास्त्र दिया तो वो बहुत बदल गया था। ये मान सकते हैं कि ये अस्त्र पाना महादेव की तरफ से इंद्र के लिए संकेत था कि अर्जुन दिव्यास्त्रों का गलत प्रयोग नही करेगा।
महादेव के आशीर्वाद से अर्जुन के मन की इच्छाएं इतनी खत्म हो गई कि इंद्रपुरी में स्वयं उर्वशी के निवेदन को उसने ठुकरा दिया। पाशुपातास्त्र, बृह्मस्त्र जैसे भयानक अस्त्र हर किसी को नही दिए जाते थे, पहले अपनी योग्यता,धैर्य इत्यादि सिद्ध करने होते थे। ये अस्त्र महाविनाश के अस्त्र थे। ये एक deterent थे, इनसे डरकर युद्ध कम होते थे,जैसे आजकल परमाणु हथियार हैं तो खुले युद्ध नही होते। जिस जगह अर्जुन को महादेव ने पाशुपातास्त्र दिया था, उस जगह का किरात मंदिर आज के झारखंड में है।