जगत के पालनहार भगवान विष्णु को तुलसी जी अत्यन्त प्रिय है। तुलसी जी का महत्व हमारे धर्म शास्त्रों में विस्तार किया गया है। पूजा में तुलसी पत्रों का प्रयोग किया जाता है, तुलसी जी का हमारे धर्म में क्या महत्व है?, आज हम इस बारे में आपको संक्षेप में बताने जा रहे हैं। उम्मीद करते हैं कि हमारी प्रदान की गई जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। साथ ही आप तुलसी जी के धार्मिक महत्व को जान व समझ पाएंगे। तुलसी जी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। ०.1 से ०.3 प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है।
‘वैल्थ ऑफ इण्डिया’ के अनुसार इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर और तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग 83 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं-पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग ०.2 प्रतिशत होती है।
शास्त्रों में कहा गया है
त्रिकाल बिनता पुत्र प्रयाश तुलसी यदि।
विशिष्यते कायशुद्धिश्चान्द्रायण शतं बिना॥
तुलसी गन्धमादाय यत्र गच्छन्ति मारुतः।
दिशो दशश्च पूतास्तुर्भूत ग्रामश्चतुर्विधः ॥
भावार्थ- यदि प्रातः, दोपहर और संध्या के समय तुलसी का सेवन किया जाए तो उससे मनुष्य की काया इतनी शुद्ध हो जाती है जितनी अनेक बार चांद्रायण व्रत करने से भी नहीं होती । तुलसी की गंध वायु के साथ जितनी दूर तक जाती है, वहाँ का वातावरण और निवास करने वाले सब प्राणी पवित्र – निर्विकार हो जाते हैं।
तुलसी की अपार महिमा तुलसी की यह महिमा , गुण – गरिमा केवल कल्पना ही नहीं है, भारतीय जनता हजारों वर्षों से इसको प्रत्यक्ष अनुभव करती आई है और इसलिए प्रत्येक देवालय, तीर्थस्थान और सद्गृहस्थों के घरों में तुलसी को स्थान दिया गया है।
पुराणकारों ने तुलसी में समस्त देवताओं का निवास बतलाते हुए यहाँ तक कहा है-
तुलसस्यां सकल देवाः वसन्ति सततं यतः।
अतस्तामचयेल्लोकः सर्वान्देवानसमर्चयन॥
भावार्थ- तुलसी में समस्त देवताओं का निवास सदैव रहता है, इसलिए जो लोग उसकी पूजा करते हैं, उनको अनायास ही सभी देवों की पूजा का लाभ प्राप्त हो जाता है।
तत्रे कस्तुलसी वृक्षस्तिष्ठति द्विज सत्तमा।
यत्रेव त्रिदशा सर्वे ब्रह्मा विष्णु शिवादय ॥
जिस स्थान पर तुलसी का एक पौधा रहता है, वहाँ पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि समस्त देवता निवास करते हैं।
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंङ्गाद्या सरितस्तथा।
वासुदेवादयो देवास्तिष्ठन्ति तुलसी दले॥
भावार्थ- तुलसी पत्रों में पुष्कर आदि तीर्थ , गंगा आदि सरिताएँ और वासुदेव आदि देवों का निवास होता है ।
रोपनात् पालनात् सेकात् दर्शनात्स्पर्शनान्नृणाम् । तुलसी दह्यते पाप बाङ्मनः काय संचितम् ॥
भावार्थ- तुलसी के लगाने एवं रक्षा करने, जल देने, दर्शन करने, स्पर्श करने से मनुष्य के वाणी, मन और काया के समस्त दोष दूर होते हैं।
सर्वोषधि रसेन व पुराह अमृत मन्थने। सर्वसत्वोपकाराय विष्णुना तुलसी कृताः।।
भावार्थ- प्राचीनकाल में अमृत मंथन ‘ के अवसर पर समस्त औषधियों और रसों ( भस्मों ) से पहले विष्णु भगवान ने समस्त प्राणियों के उपकारार्थ तुलसी को उत्पन्न किया।