लखनऊ। गायत्री परिवार की ओर से नीलमथा इलाके में चल रही प्रज्ञा पुराण कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को आचार्य प्रणव शुक्ल ने कहा कि जो भी जीव भगवान के प्रति समर्पण भाव रखता है, वह भगवान का प्रिय बन जाता है। ईश्वर सदैव ही उसके भाव को देखते हैं। उसके भाव को देखकर ही उस पर कृपा दृष्टि डालते हैं, इसलिए भगवान के प्रति समर्पण व श्रद्धाभाव रखना चाहिए। सच्चे मन व भाव से ईश्वर का पूजन अर्चन करना चाहिए, तो वह शीघ्र फलदायी होता है। भगवान तो मात्र भाव के भूखे होते हैं।
परोपकार का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि परोपकार ही सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने कहा कि जो दूसरे के हित में जीता-मरता है उसका हर आंसू रामायण व हर कर्म गीता है। वीर सैनिक बार्डर पर हमारी व देश की रक्षा करते है। यह सबसे बड़ा पुण्य है। दूसरे की भलाई करना, लोगों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना व अच्छे काम में सहयोग करना ही सच्चा धर्म है।
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उन्होंने कहा कि भगवान और कहीं नहीं, वह हमारी आत्मा के अंदर विराजमान है। आत्मा स्वरुप देवता बैठे हुए। उसकी पहचान करना चाहिए। मनुष्य को देश, धर्म व संस्कृति के लिए अपना समय, साधन, प्रतिभा व धन लगाते रहना चाहिए।
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कथावाचकं ने गुरु भक्ति का महत्व बताते हुए कहा मन को गुरु भक्ति में लगाकर मोक्ष का द्वार मिल सकता है। अपने मन को बस में करना ही सबसे बड़ी भक्ति है। कथा में संयोजक श्रीमती रत्ना सिंह, आयोजक डा.पीएन सिंह, आरडी सिंह, कालिका प्रसाद तिवारी, डॉ चतुर्वेदी, संजय सिंह, कैप्टन इंदल सिंह माॅजूद रहे। प्रज्ञा पुराण कथा 17 नवम्बर तक शाम 5 बजे से होगी। दिन में यज्ञ एवं संस्कार के आयोजन होंगे।
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