सृष्टिपालक भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री राम के दो पुत्र थे, लव और कुश। सभी जानते हैं। इनका वर्णन धर्म शास्त्रों में भी है। एक ओर जहां राम चरित मानस व वाल्मिकी रामायण में इन्हीं दो पुत्रों का उल्लेख है, वहीं ऐसे भी साहित्य भी है, जिनमें बताया गया है कि भगवती सीता ने एक पुत्र लव को ही जन्म दिया था, जबकि कुश महर्षि वाल्मीकि द्बारा प्रदत्त या उनके द्बारा निर्मित हैं, वह कुश से बनने के कारण ही कुश कहलाए। आखिर कुश से ही क्यों बने लव के भाई…. इसे लेकर भी एक कथा मिलती है, जिसमें कहा गया है कि माता सीता त्याग के बाद वह महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहती थीं, वहीं पर जब लव का जन्म हुआ था, इनके जन्म होने के उपरान्त एक दिवस भगवती सीता वाल्मिकि आश्रम में महर्षि के पास लव को रखकर पानी भरने के लिए नदी पर जाने लगती है, मध्य रास्ते मे जब माता सीता पहुंचती है, तब वह सोचती हैं कि मैं तो लव को वाल्मिकी जी के पास रख आयी हूं, लेकिन कहीं मुनि समाधीस्थ हो गए, तब लव को कोई जानवर न उठा ले जाए। मन मे जब भाव आया तो तो वह वापस आश्रम आती हैं और वास्तव मे मुनि समाधिस्थ हो गए थ्ो। लव वहीं लेटे हूए खेल रहे थ्ो।
तब माता सीता महर्षि को बिना कुछ कहे लव को गोद में लेकर वापस चली गईं। जब महर्षि की समाधि टूटी तो लव को वहां न पा कर वह बहुत परेशान हो गए। सोचने लगे कि वह भगवती सीता को लव कैसे देंगे। विचार करने के बाद उन्होंने लव समान कुश से एक पुत्र बनाकर वहीं पालने पर रख दिया। महर्षि ने उसे तपोबल से कुश से बनाया था। तभी मईया आती हैं और दूसरे बच्चे को देखती है। इधर मईया के गोद में मुनि लव को देखते हैं। इस पर माता सीता आश्चर्य से पूरी बात पूछती हैं, जिसे जानकर कुश से बने बच्चे को भी मईया लव के समान पुत्र मानकर पालने लगती हैं ।
भगवान वाराह के शरीर से टूट कर गिरे थे उनके रोम, बने कुश
पौराणिक काल की बात है, एक समय असुर हिरण्याक्ष तथा हिरण्यकश्यपु ने सृष्टि में हाहाकार मचाए हुए थ्ो, वे इतने प्रबल थ्ो कि सभी देवता उनसे हार गए थे और सृृष्टि पर उन्होंने अधिपत्य स्थापित कर लिया था। हिरण्याक्ष का वध करने के लिए जगतपालक भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लिया था, जब भगवान वाराह पृथ्वी को रसातल से लेकर सुरक्षित स्थान की ओर आ रहे थे, तब उन्होंने अपने शरीर को कपाया था, उस समय उसके शरीर के कुछ रोम टूट गए थ्ो, वही कुश और काश बने थ्ो।
कुश वाराह रूपी जगतपालक भगवान विष्णु का ही अंश थे और वही भगवान विष्णु त्रेतायुग में श्री राम के रूप में अवतरित हुए थे। महर्षि वाल्मिकी यह बात भलीभांति जानते थ्ो, इसलिए उन्होंने सीता जी के लिए लव की जगह पर जो पुत्र बनाया, वह कुश से बनाया, क्योंकि भगवती सीता और भगवान राम का पुत्र उनके अंश से ही होना चाहिए था और कुश से यह पूर्ति हो रही थी, इसलिए अतत: कुश से ही कुश का निर्माण करना जरुरी था । संयोगवश कुश का निर्माण करते समय महर्षि वाल्मिकी जी कुशासनी पर ही बैठे थे । वाल्मिकी रामायण में यहीं कथा भेद है ?