भगवान शिव और भगवान विष्णु में कोई भ्ोद नहीं है, जो इन्हें भ्ोद की दृष्टि से देखता या समझता है। वह नरक का गामी होता है। इसमें संशय नहीं है। इसका उल्लेख शिव व विष्णु पुराण में भी विस्तार से मिलता है। श्री राम चरित मानस में भी इसका विश्ोष रूप से उल्लेख किया गया है, चूंकि भगवान विष्णु जगत के पालनहार है और भगवान शंकर संहारकर्ता, इसलिए जब-जब भी भगवान विष्णु लोक कल्याण के लिए धरती पर अवतार लेते हैं, तब-तब भगवान शंकर उनके दर्शन करने जरूर जाते हैं।
चाहे रामावतार हो या कृष्णावतार, इसलिए जब-जब नारायण ने अवतार लिया, तब-तब भगवान शंकर उनके बालरूप के दर्शन के लिए पहुंचे। भगवान विष्णु ने जब श्री राम के रूप में अयोध्या में अवतार लिया, उस समय भगवान शंकर श्रीकाकभुशुण्डि के साथ वृद्ध ज्योतिषी के रूप में अयोध्या पधारे थ्ो। जब भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था, तब भी भगवान शंकर उनके दर्शन करने के लिए पहुंचे थ्ो। वे उनके दर्शनों की लालसा से कैलाश से गोकुल पहुंचे। श्री कृष्णावतार की एक झलक पाने के लिए बाबा भोलेनाथ साधु वेष में गोकुल पहुंचे, शिवजी ने योगी का रूप बनाया था और उनके गण श्रृंगी व भृंगी को उनके शिष्य बन कर गोकुल आए थ्ो।
भगवान शंकर मार्ग में ‘श्रीकृष्ण गोविद हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।’ का सर्कीर्तन करते हुए वे नंदगांव में माता यशोदा के द्बार पर आकर खड़े हो गए। ‘अलख निरंजन’ का उद्घोष कर शिवजी ने आवाज लगाई। यशोदा माता को जब पता चला कि कोई साधु द्बार पर भिक्षा लेने के लिए खड़े हैं। उन्होंने दासी को साधु को फल देने की आज्ञा दी। दासी ने हाथ जोड़कर साधु को भिक्षा लेने व बालकृष्ण को आशीर्वाद देने को कहा। शिवजी ने दासी से कहा कि मेरे गुरू ने मुझसे कहा है कि गोकुल में यशोदा जी के घर परमात्मा प्रकट हुए हैं, इसलिए मैं उनके दर्शन के लिए आया हूं। मुझे लल्ला के दर्शन करने हैं।
दासी ने भीतर जाकर यशोदा माता को सारी बात बताई। यशोदा जी को आश्चर्य हुआ। उन्होंने बाहर झांककर देखा तो एक साधु खड़े हैं। उन्होंने बाघांबर पहना है, गले में सर्प हैं, भव्य जटा हैं, हाथ में त्रिशूल है।
यशोदा माता ने साधु को बारम्बार प्रणाम करते हुए कहा कि हे महाराज, आप महान पुरुष लगते हैं। क्या आपको भिक्षा कम लग रही है? आप मांगिए, मैं आपको वही दूंगी, पर मैं लल्ला को बाहर नहीं लाऊंगी। अनेक मनौतियां मानी हैं, तब जाकर वृद्धावस्था में पुत्र हुआ है। यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है। आपके गले में सर्प है। लल्ला अति कोमल है, वह उसे देखकर डर जाएगा।
तब शंकर भगवान बोले कि हे मैया! मैं कुछ और भिक्षा लेकर क्या करुंगा? मुझे तो लल्ला के दर्शन की भिक्षा चाहिए, केवल एक बार मुझे उनके दर्शन करा दें, फिर मैं चला जाऊंगा।
मैया अब शिव जी बात टाल नहीं सकी और वे डरते-डरते अंदर गईं और लल्ला को गोद में लेकर आईं। तब भगवान शंकर यह छवि देखकर आनंदित हो नाचने लगे। वे मंत्रमुग्ध होकर भगवान श्री कृष्ण को निहारने लगे। दूसरी ओर भगवान विष्णु व उनके अवतार श्री राम, श्री कृष्ण व अन्य ने शिव की पूजा-अर्चना की और उन्हें प्रसन्न किया।