क्या आप जानते हैं, प्रद्युम्न कौन थे? उनका भगवान श्री कृष्ण के क्या सम्बन्ध था? उनका जन्म कैसे व कब हुआ था? यही बताने के लिए हम भगवान श्री कृष्ण से सम्बन्धित पावन कथा आपको बताने जा रहे हैं। यह पावन कथा आपको यह भी बतायेगी कि प्रद्युम्न और काम देव में क्या सम्बन्ध थे। कामदेव की पत्नी रति ने पुन: कामदेव की प्राप्ति कैसे की? आइये जानते हैं, वह कथा, जिससे आपको इन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो जाएंगे।
भोलेनाथ शंकर ने जब कामदेव भस्म कर दिया था,तब उसकी पत्नी रति अत्यधिक व्याकुल होकर पति वियोग में उन्मत्त हो गई। तब रति व्याकुल होकर इधर-उधर भटकने लगी। महादेव से क्षमा-याचना की, सभी देवताओं से व्याकुल होकर कहा कि तुम्हारे कारण मेरे पति को भस्म होना पड़ा है। भगवान शिव के कोप का भाजन बनना पड़ा है, लेकिन उसको दिलासा देने के अलावा कोई कुछ नहीं कर सकता है। अंतत: उसने भगवान शिव की शरण में जाने निश्चय किया। तब उन्होंने अपने पति की पुनः प्राप्ति के लिये भगवान शंकर और माता पार्वती को तपस्या करके प्रसन्न किया। माता पार्वती जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। माता ने रति से कहा-
जब यदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥
जब पृथ्वी के बड़े भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में श्री कृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा। मेरा यह वचन अन्यथा नहीं होगा॥ और तुझे वह शम्बासुर के यहाँ मिलेगा। इसीलिये रति शम्बासुर के घर मायावती के नाम से दासी का कार्य करने लगी। दूसरी ओर कामदेव रुक्मणी के गर्भ में स्थित हो गये। समय आने पर रुक्मणी ने एक अति सुन्दर बालक को जन्म दिया। उस बालक के सौन्दर्य, शील, सद्गुण आदि सभी भगवान श्री कृष्ण के ही समान थे। जब शम्बासुर को पता चला कि मेरा शत्रु यदुकुल में जन्म ले चुका है, तब वह वेश बदल कर प्रसूतिकागृह से उस दस दिन के शिशु को हर लाया और समुद्र में डाल दिया। समुद्र में उस शिशु को एक मछली निगल गई और उस मछली को एक मगरमच्छ ने निगल लिया। वह मगरमच्छ एक मछुआरे के जाल में आ फँसा जिसे कि मछुआरे ने शम्बासुर की रसोई में भेज दिया। जब उस मगरमच्छ का पेट फाड़ा गया तो उसमें से अति सुन्दर बालक निकला। उसको देख कर शम्बासुर की दासी मायावती के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह उस बालक को पालने लगी। उसी समय देवर्षि नारद मायावती के पास पहुँचे और बोले कि हे मायावती! यह तेरा ही पति कामदेव है। इसने यदुकुल में जन्म लिया है और इसे शम्बासुर समुद्र में डाल आया था। तू इसका यत्न से लालन-पालन कर। इतना कह कर नारद जी वहाँ से चले गये। उस बालक का नाम प्रद्युम्न रखा गया। थोड़े ही काल में प्रद्युम्न युवा हो गया। प्रद्युम्न का रूप लावण्य इतना अद्भुत था कि वे साक्षात् श्री कृष्णचन्द्र ही प्रतीत होते थे। रति उन्हें बड़े भाव और लजीली दृष्टि से देखती थी। तब प्रद्युम्न जी बोले कि तुमने माता जैसा मेरा लालन-पालन किया है फिर तुममें ऐसा परिवर्तन क्यों देख रहा हूँ? तब रति ने कहा कि पुत्र नहीं तुम पति हो मेरे। मिले कन्त शम्बासुर प्रेरे॥ मारौ नाथ शत्रु यह तुम्हरौ। मेटौ दुःख देवन कौ सिगरौ॥ “इतना कह कर मायावती रति ने उन्हें महा विद्या प्रदान किया और धनुष बाण, अस्त्र-शस्त्र आदि सभी विद्याओं में निपुण कर दिया। युद्ध विद्या में प्रवीण हो जाने पर प्रद्युम्न अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित होकर शम्बासुर की सभा में गये। शम्बासुर उन्हें देखकर प्रसन्न हुआ और सभासदों से कहा कि इस बालक को मैंने पाल पोष कर बड़ा किया है। इस पर प्रद्युम्न बोले कि अरे दुष्ट! मैं तेरा बालक नहीं वरन् तेरा वही शत्रु हूँ, जिसको तूने समुद्र में डाल दिया था। अब तू मुझसे युद्ध कर। प्रद्युम्न के इन वचनों को सुनकर शम्बासुर ने अति क्रोधित होकर उन पर अपने बज्र के समान भारी गदा का प्रहार किया। प्रद्युम्न ने उस गदा को अपनी गदा से काट दिया। तब वह असुर अनेक प्रकार की माया रच कर युद्ध करने लगा, लेकिन प्रद्युम्न ने महा विद्या के प्रयोग से उसकी माया को नष्ट कर दिया और अपने तीक्ष्ण तलवार से शम्बासुर का सिर काट कर पृथ्वी पर डाल दिया।
उनके इस पराक्रम को देख कर देवताओ ने उनकी स्तुति कर आकाश से पुष्प वर्षा की। फिर मायावती रति प्रद्युम्न को आकाश मार्ग से द्वारिकापुरी ले आई। गौरवर्ण पत्नी के साथ साँवले प्रद्यम्न जी की शोभा अवर्णनीय थी। वे नव-दम्पति श्री कृष्ण के अन्तःपुर में पहुँचे। रुक्मणी सहित वहाँ की समस्त स्त्रियाँ साक्षात् भगवान श्री कृष्ण के प्रतिरूप प्रद्युम्न को देखकर आश्चर्यचकित रह गये। वे सोचने लगीं कि यह नर श्रेष्ठ किसका पुत्र है? न जाने क्यों इसे देख कर मेरा वात्सल्य उमड़ रहा है। मेरा बालक भी बड़ा होकर इसी के समान होता, लेकिन उसे तो न जाने कौन प्रसूतिकागृह से ही उठा कर ले गया था।
उसी समय भगवान श्री कृष्ण भी अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव तथा भाई बलराम के साथ वहाँ आ पहुँचे। भगवान श्री कृष्ण तो अन्तर्यामी थे, लेकिन उन्हें नर लीला करनी थी, इसलिये वे बालक के विषय में अनजान बने रहे। तब देवर्षि नारद ने वहाँ आकर सभी को प्रद्युम्न की आद्योपान्त कथा सुनाई और वहाँ उपस्थित सभी हर्षित हो गए। यह भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का एक अंश है, वास्तव में भगवान धरती पर अवतरित ही धर्म की स्थापना और जन कल्याण के लिए होते हैं। कामदेव भस्म हो जाने से सृष्टि में एक रिक्तता प्रकट होने लगी थी, जिसकी भरपाई प्रदुम्य के जन्म से हुई और रति को भी उसके पति की प्राप्ति हो सकी।