स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में एक पावन कथा का उल्लेख है, जिसके अनुसार एक समय देवताओं के मन में विचार आया कि आखिर इस जगत में श्रेष्ठ कौन है?, उन्होंने इस बारे में सबसे बारी-बारी पूछा। इसके उत्तर में ही श्रेष्ठता से सम्बन्धित इस पावन कथा का सम्बन्ध है, जो हमें बताता है कि जगतपिता ब्रह्मा के अंहकार को दूर करने के लिए भगवान शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप कहे जाने वाले कालभैरव ने उनके पांचवें सिर को कैसे और क्यों काट दिया था? तत्पश्चात शिव के कहने पर भैरव काशी प्रस्थान किये और जहां ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया।
आइये, अब जानते हैं, स्कंदपुराण की वह पावन कथा, जिस कथा के अनुसार एक समय में देवताओं ने जगतपिता ब्रह्मा जी और जगतपालनकर्ता विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है? तो स्वाभाविक ही उन्होंने अपने को श्रेष्ठ बताया। देवताओं ने वेदशास्त्रों से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, अनादि अंनत और अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं। वेद शास्त्रों से शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्मा ने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कहा। इससे वेद बहुत ही दुखी हुए। इसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र वहां प्रकट हुए।
ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र, तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रूद्र’ रखा है, इसलिए तुम मेरी सेवा में आ जाओ, ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव जी को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। उन दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाख़ून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा जी के पांचवे सर को ही काट दिया। इसके बाद शिव के कहने पर भैरव काशी प्रस्थान किये, जहां ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी। तब रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया था। अब भी ये भगवान शिव की पावन नगरी काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनके दर्शन किये बिना विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।
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मान्यता के अनुसार शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप कहे जाने वाले कालभैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ था। इनकी पूजा से घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता है। काल भैरव के दर्शन मात्र से मनुष्य को नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।
‘काशी कांची चमायाख्यातवयोध्याद्वारवतयपि, मथुराऽवन्तिका चैताः सप्तपुर्योऽत्र मोक्षदाः’;
‘अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका, पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः।’
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