सच्चे मन से की गईं सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी
पुरातन समय की बात है कि सृष्टि पर अपना अधिपत्य प्राप्त करने के लिए राजा बलि यज्ञ कर रहे थ्ो। इधर इंद्र को चिंता सता रही थी कि यदि राजा बलि यज्ञ में सफल हो जाते हैं तो कहीं उनके हाथ से स्वर्ग लोक न निकल जाए। इस पर वे जगत के पालनहाल भगवान विष्णु की शरण में गए और प्रार्थना की। वामन देव के रूप में अवतरित भगवान विष्णु तब राजा बलि के पास गए। राजा बलि चूंकि दानवीर थ्ो, इसलिए उन्होंने वामन देव से दान मांगने का अनुरोध किया। इस पर वहां मौजूद दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को सचेत किया कि वह ऐसा न करें, क्योंकि वह अपनी दिव्य दृष्टि से भगवान वामन को पहचान गए थ्ो, लेकिन राजा बलि ने उनकी बात को अनसुना करते हुए वामन देव से दान मांगने को कहा।
इस पर वामन भगवान ने उनसे कहा कि पहले आप इसके लिए संकल्प लो कि जो मैं मांगूगा, वह दोगे। तब राजा बलि ने संकल्प लेने के लिए पात्र उठाया तो उस संकल्प पात्र की नली में शुक्राचार्य भौरा बन कर बैठ गए, ताकि इससे जल न गिरे और राजा बलि संकल्प न ले सकें। इस पर वामन देव ने एक तिनका उठाया और उस पात्र की नली में डाला, इससे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वह पात्र से बाहर आ गए। तब राजा बलि ने संकल्प लिया तो वामन देव ने उनसे तीन पग भूमि मांगी। इस पर राजा बलि ने कहा- महाराज, आप मुझसे राजपाठ और वैभव मांग सकते थ्ो, मात्र पग भूमि ही क्यों मांगी, तब वामन देव ने अपना स्वरूप विराट किया और एक पग में आकाश व दूसरे पग में धरती व पाताल नाप लिया और राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग अब कहां रखूं। इस राजा बलि ने स्वयं को आगे करते हुए कहा कि महाराज तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं। जैसे ही भगवान वामन ने तीसरा पग राजा बलि के सिर पर रखा वे पाताल लोक को चले गए।
स्थानीय मान्यता है कि सीतापुर स्थित बौनाभारी गांव की इस धरती पर यज्ञ का आयोजन किया गया था, जहां भगवान विष्णु वामन रूप में पहुंचे थ्ो, तब राजा बलि ने वामन भगवान को सिर्फ तीन पग भूमि दान में दी थी, यहीं वामन भगवान ने विराट स्वरूप धारण कर राजा बलि को छल लिया था। अब यहां एक मंदिर भी है। मंदिर के पुजारी कृष्णकिशोर तिवारी व संरक्षक नवनीत मिश्र बताते हैं कि पुराण में स्पष्ट रूप से लिखा है कि गोमती नदी के उत्तर में नौ किलोमीटर की दूरी पर वामन भगवान का मंदिर है। यहां वामन भगवान की मूर्ति विराजमान है। उनकी कृपा से ही गांव का नाम बौनाभारी पड़ा। गांव पर भगवान की ऐसी कृपा बरसती है कि पूरा गांव सम्पन्न है। यहां मंदिर के साथ गांव के सारे मकान पक्के हैं। इतिहास में जाने पर पता चलता है कि 1852 में गांव जंगल में तब्दील था। तभी कुछ ग्रामीण यहां रहने को आये। उन्हें जंगल की सफाई करते समय एक पंचवटी वृक्ष के नीचे वामन भगवान की मूर्ति मिली। मूर्ति के पैरों के पास राजा बलि प्रार्थना की मुद्रा में विराजमान थे। यहीं कुछ चावल, तिल व लखौरी की ईंटें भी मिली थीं। साथ ही राजा बलि के हवन कुंड के अवशेष भी मिले थे। इन्हीं ईटो से ग्रामीणों ने मंदिर का निर्माण शुरू किया था। ग्रामीणों के आस्था के चलते आज मंदिर परिसर भव्य स्वरूप ले चुका है।
पंडित स्व. गोकरण प्रसाद मिश्र ने यहां भव्य यज्ञशाला का निर्माण कराया था। परम्परा के अनुसार वामन द्बादशी को हर वर्ष यहां भगवान का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसमें ग्रामीणों के साथ दूरदराज के भी लोग शामिल होते हैं।
’’बुजुर्गों की परंपरा को युवा बढ़ा रहे आगे’’
मंदिर के निर्माण की शुरुआत गांव के बुजुर्ग पंडित गोकरण प्रसाद मिश्र, कौशल प्रसाद मिश्र, प्रेमशंकर, रोहनलाल शुक्ल, बिहारी, बालकेशन अवस्थी समेत अन्य लोगों ने की थी। इसमें अधिकांश बुजुर्ग अब हैं भी नहीं। उनकी परंपरा और सपने को ग्रामीण नरेश शुक्ल, नवनीत मिश्र, सतेंद्र मिश्र, सतीश मौर्य, गुड्डन मिश्र, डॉ. गुजरू, राजू मिश्र, संतोष, छान्नूलाल मिश्र, जगराम समेत अन्य लोग साकार करने में लगे हैं। ग्रामीणों के प्रयास का ही नतीजा है कि वामन भगवान का मंदिर पर्यटन स्थल में घोषित हो चुका है।
इसलिए नहीं करना चाहिए अभिमान
भगवान विष्णु को जब यह लगा कि राजा बलि को दानवीर होने का अभिमान हो गया है तब उन्होंने उनके अभिमान को दूर किया, इसलिए किसी भी मनुष्य को अपनी श्रेष्ठता का अभिमान नहीं करना चाहिए।