ब्राह्मणों को धरती का देवता माना जाता है। क्या आपने इस विषय पर विचार किया है। आखिर उन्हें क्यों देवता माना जाता है। आइए इस विषय पर इस लेख के माध्यम से आज हम चर्चा करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि ब्राह्मण कितना भी निकृष्ट क्यों ना हो लेकिन उसकी अवहेलना का दंड तो जीव को भुगतना ही पड़ता है। ब्राह्मण होने का अर्थ है धर्म संगत आचरण और और वेद मंत्रों का निरंतर जप तप करना।
सात्विक जीवन अपनाना और दूसरों को भी धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना। गायत्री आदि मंत्रों द्वारा आत्मउत्थान में संलग्न रहना। संपूर्ण विश्व देवताओं के अधीन माना गया है और देवता सदैव ही मंत्रों के अधीन रहते हैं। मंत्रों से उनकी पूजा आराधना की जाती है, तब वे प्रसन्न होते हैं और उन मंत्रों के ज्ञाता, मंत्रों का प्रयोग रहस्य आदि को ब्राह्मण भली तरह से जानते हैं। इस तरह से ब्राह्मण देवताओं के समतुल्य हुए, इसलिए ब्राह्मणों को देवता कहा जाता है।
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ब्राह्मण यानी द्विज किसे कहते हैं आइए इस पर के बारे में भी जानते हैं। जिसका दो बार जन्म होता है उसे द्विज कहते हैं। रामगढ़ का प्रथम जन्म माता के गर्भ से होता है। दूसरी बार यज्ञोपवीत संस्कार उसका दूसरा जन्म माना जाता है। इस क्रम में सर्प, पक्षी,दांत और चंद्रमा भी आते हैं।
दान सुपात्र को ही देना चाहिए
दान सुपात्र को ही देना चाहिए, ऐसा शास्त्रों में भी कहा गया है। वेद आदि स्मृतियों के अनुसार मनुष्यों में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ होता है, क्योंकि ब्राह्मण सदैव गायत्री जप से प्रायश्चित कर्म करते रहते हैं। दान धारण करने की शक्ति वे ही रखते हैं।
ब्राम्हण से ही पूजा-पाठ क्यों कराएं अन्य से क्यों नहीं
ब्राह्मण प्राचीन काल से ही जब तक पूजा-पाठ आराधना उपासना में लगे रहे हैं। धर्मशास्त्र, कर्मकांड आदि के ज्ञाता होने के साथ-साथ इनमें उदारता, सात्विकता त्याग की भावना होती है,जिस कारण यह ईश्वर तत्व के सर्वाधिक निकट रहते हैं और परंपरागत पूजा पाठ करने की मान्यता इन्हें ही काफी है।
ब्राह्मण, गुरु जन, देवता के पास कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए
नीति शास्त्र में कहा गया है कि ब्राह्मण, गुरु जन, देवता के पास कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए, इनके पास जो भी खाली हाथ जाता है उसे खाली हाथ वापस आना होता है। फिर यदि आप किसी से कोई कार्य कराते हैं तो उसका पारिश्रमिक देना आवश्यक होता है।
पूजा पाठ आदि पुण्य कर्म कराने वाले ब्राह्मणों को भी दक्षिणा देना परम आवश्यक होता है, इसके बिना पूजा का पूर्ण फल जीव को प्राप्त नहीं हो सकता है।
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