नेपाल- काठमांडू से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी के ऊपर स्थित है छंगु नारायण का मंदिर। यह विशाल मंदिर चौकोर आंगन में दो मंजिला देवालय के रूप में है। सुंदर चिकनी ईंटों से बना यह प्राचीन मंदिर अपनी शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में प्रवेश के लिए भव्यद्वार बने हैं, जिसके दोनों ओर स्तंभों पर शंख तथा चक्र बने हुए हैं। नेपाल की तराई में स्थित यह मंदिर धार्मिक तीर्थ के अलावा पर्यटन स्थल के रूप में भी लोकप्रिय है।
दो किंवदंतियां
प्राचीन समय में एक ग्वाला हुआ करता था। ये ग्वाला एक बार सुदर्शन नाम के एक ब्राह्मण से एक गाय लेकर आया। ये गाय बहुत अधिक मात्रा में दूध देती थी। एक दिन ग्वाला अपनी गाय को चराने के लिए चंगु गांव में ले गया जहाँ घास चरते-चरते गाय एक पेड़ की छाँव में खड़ी हो गयी। शाम को जब ग्वाला गाय से दूध निकालने गया तब गाय ने बहुत काम दूध दिया।
ऐसा कई दिनों तक चला। गाय चरने के लिए चंगु गाँव जाती फिर कुछ समय के लिए वो पेड़ के नीचे खड़ी हो जाती थी और फिर वापिस आकर वो कम दूध देती। इस वजह से अब ग्वाला बहुत परेशान रहने लग गया। एक दिन जब उस ग्वाले से नहीं रहा गया तब वो उस ब्राह्मण के पास दोबारा पहुंचा और उससे सारी बातें बताई। फिर ग्वाले और ब्राह्मण ने तय किया कि वो छुप कर देखेंगे कि आखिर गाय का दूध रोज़ जा कहाँ रहा है।
अब दोनों ने ठीक ऐसा ही किया और छुप कर देखने लगे लेकिन यहाँ उन्होंने जो देखा वो बेहद चौंकाने वाला था। दरअसल उन्होंने देखा कि एक बालक गाय के पास आया और उसने गाय का सारा दूध पी लिया। इस बात पर दोनों को बहुत गुस्सा आया। तब उन्होंने सोचा कि शायद ये बालक कोई शैतान हो और ये चंपक का पेड़ ही उसका घर हो, ऐसा सोचकर दोनों ने उस चंपक का पेड़ ही काट डाला। लेकिन ये क्या, उन्होंने जैसे ही चंपक का पेड़ काटा उस पेड़ से मानव-रक्त बहने लग गया। तब ग्वाले और ब्राह्मण को ऐसा लगा कि दोनों से किसी की हत्या हो गयी है और यही सोचकर दोनों ज़ोर-ज़ोर से रोने लग गए।
दोनों की ऐसी हालत देखकर भगवान विष्णु वहां अवतरित हुए और उन्होंने कहा कि, “आप दोनों चुप हो जाइये। आपने कोई पाप नहीं किया है। बल्कि आपने तो स्वयं भगवान विष्णु को एक श्राप से मुक्ति दिलवाई है जो उन्हें तब लगा था जब गलती से उन्होंने सुदर्शन के पिता की हत्या कर दी थी।” भगवान विष्णु के मुख से ये बात सुनकर सुदर्शन और उस ग्वाले को यकीन हो गया कि उनसे किसी की हत्या नहीं हुई है। उसके बाद ही दोनों ने उस स्थान को पवित्र स्थान मानकर वहां पूजा करनी शुरू कर दी और कुछ समय बाद वहां एक मंदिर का निर्माण करवाया गया जिसे अब हम चंगु-नारायण मंदिर के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि यही वजह है कि आज भी सुदर्शन नामक ब्राह्मण के वंशज इस मंदिर में पुजारी का काम करते हैं और उस ग्वाले के परिवार वाले इस स्थान की रक्षा करते हैं।
एक और किंवदंती है कि प्रांजल नाम का एक शक्तिशाली योद्धा हुआ करता था (और कहा जाता है कि वह अभी भी जीवित है)। उन्हें पूरे देश में सबसे मजबूत व्यक्ति माना जाता था जब तक कि चंगू ने उन्हें चुनौती नहीं दी और उन्हें हरा दिया। उन्हें श्रद्धांजलि के रूप में, लोगों ने उनके नाम पर एक मंदिर का निर्माण किया।