चेचक को दैवीय प्रकोप क्यों मानते हैं?

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चेचक के उपचार के लिए वैज्ञानिक और डॉक्टर बहुत आश्वस्त थे। वैज्ञानिक और डॉक्टर अनुसार, चेचक विषाणु जनित रोग है। इसका उपचार औषधियों से हो सकता है, लेकिन वह पूर्णता सफल हुए नहीं है। चेचक एक ऐसी बीमारी है जिसका प्रभावी उपचार नहीं उपलब्ध है। इसे दैवी प्रकोप की दृष्टि से देखा जाता है। भारत में इसे देवी प्रकोप ही माना जाता है।

चेचक रोग शरीर के अंदरूनी भाग से पूरे शरीर में एक साथ प्रकट होता है। ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी व चामुंडा यह 7 माताएं हैं। इनमें चामुंडा का स्वरूप सबसे ज्यादा घातक होता है। 7 स्टेज वाले इस रोग में प्रथम स्टेज देवी ब्राह्मी है। चौथी स्टेज तक कोई खतरा नहीं रहता है।

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रोगी अंधा, लूला, लंगड़ा भी हो जाता

कहने काआशय यह है कि वैष्णवी तक व्यक्ति को जान का खतरा नहीं होता है लेकिन इसके बाद जीवन खतरे में चला जाता है। कौमारी में एक बार वह विस्फोट होता है तो नाभि तक दिखाई देता है। वाराही का आक्रमण मंद गति से होता है, इसलिए इसे मंथज्वर भी कहते हैं। चामुंडा के आक्रमण से रोगी की दुर्गति हो जाती है। जीभ, आंख, नाक, मुंह आदि पर पूरा प्रकोप होता है। रोगी अंधा, लूला, लंगड़ा भी हो जाता है। चामुंडा से आक्रांत रोगी सब के समान है। गधे पर सवार, हाथ में झाड़ू लिए हुए नग्न रूप धारी शीतला माता को मैं नमस्कार करता हूं।

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