छिन्नमस्ता सिद्धपीठ झारखंड : तांत्रिकपीठ के रूप में प्रसिद्ध

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chhinnamasta siddhapeeth jhaarakhand : taantrikapeeth ke roop mein prasiddhछिन्नमस्ता एक विख्यात सिद्धपीठ मानी जाती है, जिसका झारखंड प्रदेश में अत्यधिक महत्व है। कुछ भक्तगण इसे शक्तिपीठ भी मानते हैं। हालाँकि 51 शक्तिपीठ में इसे मान्यता नहीं है । यह तांत्रिकपीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है और पूजा – अर्चना बंगाल की तारापीठ के समान ही की जाती है।

छिन्नमस्ता सिद्धपीठ की पृष्ठभूमि

मां छिन्नमस्ता का सिर कटा है। उनके गले से दोनों ओर से बहती रक्तधार दो महाविद्याएं ग्रहण करती हुई दिखाई गई हैं। मां के पांव के नीचे कमलदल पर लेटे कामदेव व रति हैं। प्रतिमा कितनी पुरानी है, ज्ञात नहीं है। मां का प्राचीन मंदिर नष्ट हो गया था, अत : नया मंदिर बनाया गया, किंतु प्राचीन प्रतिमा वहां आज भी अवस्थित है। मंदिर अति भव्य है तथा इसके ऊपर गोल शिखर है, जिस पर अति सुंदर नक्काशी की गई है। इसके पास ही कुछ अन्य छोटे मंदिर भी निर्मित हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार,  दामोदर भैरवी नदी के संगम पर इस पीठ को शक्तिपीठ माना जाता है। दामोदर को शिव व भैरवी को शक्ति माना गया है। यहां भैरवी नदी का प्रवाह निम्नतर है तथा दामोदर ऊपर से बहती हुई भैरवी पर गिरती है। यहां दोनों धाराओं का संगम होता है, तब उसे भेड़ नदी कहा जाता है तथा स्थान रजरप्पा कहलाता है। इस मंदिर के पास नौ महाविद्याओं के छोटे मंदिर भी स्थित हैं। यहां आज भी बकरे की बलि दी जाती है।

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यात्रा मार्ग

यहां पहुंचने हेतु निकटस्थ रेलवे स्टेशन रांची है। निकटतम हवाई अड्डा भी रांची में है। रांची, हजारीबाग, बांका तथा धनबाद से रजरप्पा हेतु बसें चलती हैं। मंदिर के पास वन विभाग व पर्यटन विभाग द्वारा स्थापित अतिथिगृह हैं, जहां कुछ गिने – चुने लोग ही रुक सकते हैं।

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