निषेवते प्रशस्तानि, निन्दितानी न सेवते |
अनास्तिक: श्रद्धान् एतत् पण्डित लक्षणम् ||
भावार्थ:- सद्गुण ,शुभ कर्म, भगवान के प्रति श्रद्धा और विश्वास, यज्ञ, दान और जनकल्याण आदि, ये सब ज्ञानी जन के शुभ लक्षण होते हैं ||
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सिष्य सखा सेवक सचिव
सुतिय सिखावन साँच।
सुनि समुझिअ पुनि परिहरिअ
पर मन रंजन पाँच।।
भावार्थ:- यदि जब बात सुनने में आये कि अपना शिष्य, मित्र, नौकर, मन्त्री और सुन्दरी स्त्री यह पाँचो मुझको छोड़कर दूसरे के मन को प्रसन्न करने लगे हैं तो पहले तो इसकी जाँच करनी चाहिये और ( जाँच करने पर यदि बात सत्य निकले तो ) फिर इन्हे छोड़ देना चाहिये।
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