Chitrakoot is Rammay धर्म नगरी चित्रकूट भगवान श्री राम की तपोभूमि होने के कारण विश्व के करोङो हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है।
रामायण की रचना कर भगवान श्रीराम के आदर्श और चरित्र की गौरवगाथा को जन -जन तक पहुँचाने वाले आदि कवि महर्षि बाल्मीकि ने यहां आश्रम में रहकर रामायण की रचना की थी । चित्रकूट का पूरा इलाका ही राम और उनसे संबंधित किंवदंतियों से भरा है। इस इलाके में घोर निर्जन वन तथा अनेक पहाड़ी स्थल हैं। कभी इनमें अनेक मंदिर तथा आश्रम आदि स्थित थे, पर जीर्णोद्धार न होने के कारण लगभग सभी लुप्त हो चुके हैं। चित्रकूट सांस्कृतिक गौरव का केंद्र रहा है। यह पुराणों, रामायण, काव्यों एवं महाकाव्यों का महत्त्वपूर्ण विषय रहा है। राम – कथा पर आधारित यहां के शैलचित्र भी इसके साक्षी हैं। यहां के शैल शिखरों, विमुग्ध करने वाली रहस्यमय गुफाओं तथा प्राचीन प्राकृतिक कंदराओं का जितना भी वर्णन किया जाए, कम होगा। ‘ ऋग्वेद ‘, ‘ पद्मपुराण ‘, ‘ स्कंदपुराण ‘, ‘ महाभारत ‘, ‘ रामायण ‘, ‘ रामचरितमानस ‘, ‘ मेघदूत ‘ और ‘ आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ‘ चित्रकूट का वर्णन है। कहा जाता है कि चित्रकूट के दर्शन का ही प्रभाव है कि मनुष्य कल्याणमार्ग पर चलता रहता है। ‘ महाभारत ‘ में उल्लेख मिलता है कि चित्रकूट में युधिष्ठिर ने विधिवत् तपस्या की। महाराजा नल – दमयंती ने इसी क्षेत्र की कृपा से दुर्भाग्य नाश किया तथा खोया हुआ राज्य पाया। भगवान राम, कपिल, वाल्मीकि, अगस्त्य, अत्रि, तुलसी की साधनास्थली हैं।
चित्रकूट कर्करेखा के समीप
चित्रकूट समुद्रतल से 1800 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। कर्करेखा के समीप होने के कारण इस चट्टानी भू – भाग का तापमान हमेशा परिवर्तित होता रहता है। यात्रियों को यह पवित्र तीर्थस्थल असाधारण अध्यात्मभाव, ज्ञान और वैराग्य की ओजस्विता प्रदान करता है।
पवित्र नदियां चित्रकूट की गोद में अवतरित
देवनदी मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, सरयू एवं वर्ष में कभी – कभार प्रकट होने वाली पयस्वनी जैसी पवित्र नदियां चित्रकूट की गोद में अवतरित होकर यहां की महिमा में चार चांद लगा रही हैं।
संतों के अखाड़े
संतों के अखाड़े और स्थान भी यहां भरे हुए हैं। अखिल भारतीय निर्मोही अखाड़ा रत्नावली मार्ग पर है। दिगंबर अखाड़ा रामघाट भरतमंदिर के नाम से विख्यात है। इसके पास ही निर्वाणी अखाड़ा है। संतोषी अखाड़ा कामदगिरि मार्ग पर है।
दर्शनीय स्थल
- रामघाट : वनवासकाल में राम, लक्ष्मण एवं सीताजी ने यहां स्नान किया था। इसी परम पावन स्थान पर तुलसीदास को भगवान राम ने दर्शन दिए थे। यहां घाट के ऊपर ऊंची फ्लड लाइटों के नीचे तुलसीदास की विशाल मूर्ति बनी हुई है। कहते हैं, यहीं तुलसीदास ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को चंदन लगाया था। इस स्थान को मंदाकिनी आरती – स्थल भी कहते हैं। यहां प्रतिदिन शाम को वैदिकमंत्रों के साथ मंदाकिनी की आरती की जाती है।यहीं तुलसीदास की कुटी एवं पीपल का वह पेड़ आज भी विद्यमान है। इस वृक्ष के संबंध कहा जाता है कि इसके ऊपर तोते के रूप में हनुमानजी रहते थे और उन्होंने ही तुलसीदास का परिचय रामचंद्रजी से कराया था। यहीं रहकर भक्त कवि तुलसीदास रामकथा सुनाया करते थे।
- मत्तगजेंद्र नाथ मंदिर : यह शिव मंदिर रामघाट के पास ही है और इसमें शिव की अनादिकालीन चारलिंकृति मूर्तियां हैं। प्राचीन विवरण के अनुसार ब्रह्माजी ने अपने यज्ञ की रक्षा हेतु यह मंदिर बनवाया था।
- बड़ा मठ : रामानुज संप्रदाय संबंधित तथा पन्ना नरेश का निजी आवास रहा मठ चित्रकूट का प्रमुख मठ है। कहते हैं, पन्ना नरेश के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, सिवाय एक संतान के। भगवान की कृपा से यहां पूजा – अर्चना करने के बाद उन्हें पुत्ररत्न प्राप्त हुआ, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने यहां 565 मंदिर बनवाए।
- मंदाकिनी : पयस्वनी – गायत्री संगम – राघव प्रयाग, इस पवित्र स्थल पर उपरोक्त तीन नदियों का संगम है और इसे राघव घाट भी कहते हैं। इस घाट पर श्रीराम ने अपने पिता दशरथजी का पिंडदान किया था।
- बालाजी मंदिर : यालाजी मंदिर सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है। औरंगजेय द्वारा 16 जून सन् 1688 को निर्मित यह बालाजी हनुमान का मंदिर है। इस मंदिर के नाम से बादशाह के द्वारा लिखी गई एक सनद है, जिसमें मंदिर को 350 बीघा भूमि प्रदान की गई है। आज भी यहां के अखाड़ों एवं मंदिरों में गौशाला आदि हैं, जिसमें हाथी भी रहते हैं।
- विजावर मंदिर : यह मंदिर नदी के उस पार तट पर बना है, जिसे बिजावर रियासत मध्य प्रदेश की महारानी ने बनवाया था। इसमें भगवान राम की मूर्ति शोभायमान है।
- कामदगिरि परिक्रमा : अब चित्रकूट के सबसे प्रमुख स्थल कामदगिरि की परिक्रमा करते हैं। पांच किलोमीटर की परिधि के इस पर्वत को पुराणों में कुलपर्वत कहा गया है। ‘ देवीभागवत ‘ के अनुसार यह देवी का शक्तिपीठ है। कामदगिरि परिक्रमा मनुष्य की समस्त कामनाओं को पूरा करने वाली कही गई है। यह परिक्रमा साढ़े चार किलोमीटर की है। परिक्रमा करने का मार्ग पूरा पक्का है। परिक्रमा में एक स्थान है- चरणपादुका। यहीं राम से भरत मिले थे, जब राम को मनाने गए थे। राम – भरत के मिलाप से जड़ – चेतन दोनों अनुप्राणित हो द्रवित हो उठे थे।
- प्रमोद वन : अनेक वनवास काल में श्री राम, श्री लक्ष्मण व सीता माता इसी वन में आमोद प्रमोद करते थे। आज भी यह स्थान सुंदर वृक्ष, लताओं, पुष्प – पादपों व फलदायी वृक्षों से आच्छादित हैं। इसकी महिमा एवं प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन वाल्मीकि से लेकर कालिदास तक ने किया है। यहां पर पुत्र जीवा ( पुत्र प्राप्ति का वृक्ष ) वृक्ष आज भी है।
- जानकी कुंड, सिरसा वन व स्फटिक शिला : प्रमोद वन के पास ही एक जानकी कुंड है। यहां की शिलाओं पर सीतामाता के चरणचिह्न बने हुए हैं। इसके पास ही स्फटिक शिला है। कहते हैं जयंत के दुर्व्यवहार की कहानी यहां के प्राचीन शिलालेख में उद्धृत है। इसी शिला पर एक दिन रामजी ने सीताजी को सजाया था। मंदाकिनी के किनारे यह शिला परम मनोहर है। इसके ठीक सामने सीर सावन है। इसी शिला पर जयंत की कथा भी चित्र रूप में उकेरी गई है। आज भी कौए के आकार के इस पत्थर में आंख का स्थान फूटा हुआ है। यहां मंदाकिनी के अंदर बड़ी मछलियां हैं, जिन्हें भक्त दाना आदि डालते हैं।
- सती अनुसूया आश्रम : रामघाट से 19 किलोमीटर की दूरी पर यह आश्रम स्थित है। इसमें श्री अत्रि ऋषि अपनी पत्नी महासती अनुसूया के साथ निवास करते थे। प्राचीन विवरण के अनुसार, इस क्षेत्र में 10 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई व अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई। उस समय महासती अनुसूया ने अपनी कठोर तपस्या के बल पर मंदाकिनी की धारा प्रवाहित कर सभी जनों को संकट से उबारा। आज भी यहां पर्वत श्रेणी गर्भ से अनेक जलस्रोत निरंतर बहते रहते हैं, जो कुंड में विलीन होकर आगे मंदाकिनी नदी का रूप धारण कर प्रवाहित होते हैं।
- गुप्त गोदावरी : गुप्त गोदावरी स्फटिक शिला से 17 किलोमीटर दक्षिण – पश्चिम में अवस्थित पर्वतश्रेणी पर दो प्राकृतिक गुफाएं हैं। प्रागैतिहासिक युग की इन सुंदरतम् गुफाओं से जलधारा प्रवाहित होती है। इसे गोदावरी कहा जाता है। रामायण में कहा गया है कि यहां नित्य अप्सराएं नृत्य – गान करती थीं। रामजी यहां ऋषि मुनियों के साथ बैठकर विभिन्न तरह की समस्याओं को सुलझाते थे। गुफा के अंदर की गई प्राकृतिक नक्काशी को देखकर हैरानी होती है। गुफा के अंदर एक कुंड बना हुआ है। कहते हैं – जनक नंदिनी यहां स्नान करती थीं। धनुष कुंड के नाम से प्रसिद्ध यह धनुषाकार गुफा है। यहां की दूसरी गुफा में प्रवेश करने से पहले दोनों गुफा के मध्य अनादिकालीन पंचमुखी शिव के दर्शन होते हैं। कहते हैं कि पंचमुद्राओं वाले इस महत्त्वपूर्ण महादेव की स्थापना पांचों पांडवों ने अपने वनवासकाल में की थी। यहीं शिवलिंग छबीलदास हैं। अपनी तरह का विश्व में यह तीसरा शिवलिंग है। इस शिवलिंग को भी औरंगजेब के द्वारा खंडित करने का प्रयास किया गया था। गुफा से बाहर आते ही दो शेर, शिवलिंग पर चढ़े चांदी के नागदेवता और मौनव्रत धारण किए एक मौनी महात्मा के दर्शन होते हैं। नालियों से काफी तेज जलधारा निकलती है। ग्यारह कुंडों में गोदावरी जाते – जाते गुप्त हो जाती है, इसलिए इसे गुप्त गोदावरी भी कहते हैं।
- श्री हनुमान धारा : रामघाट से लगभग 5 किलोमीटर ऊपर पर्वत श्रेणी पर यह स्थान है। यहां तक पहुंचने हेतु लगभग 360 सीढ़ियां हैं। उसके पश्चात् हनुमानजी की मूर्ति की वाम भुजा पर अविरल जलधारा प्रवाहित होती रहती है। इसका जल दो कुंडों में एकत्र होता है और अत्यंत शीतल तथा मृदु हैं। ये जलधारायें कहां से प्रवाहित होती हैं और कुंड के पश्चात् कहां लुप्त हो जाती हैं, पूर्णतया अस्पष्ट है।
- नवीन मंदिर : कुछ समाज सेवी नागरिकों व संस्थाओं ने चित्रकूट में अनेक विशाल मंदिर निर्मित करवाए हैं, जो दर्शनीय हैं। इसमें रामदर्शन मंदिर में राम कथा को मूर्तियों द्वारा ( 3 आयामों में ) प्रदर्शित कर एक सुंदर चित्ताकर्षक कार्य किया है। इसके बगीचे में प्रत्येक राशि के पृथक् – पृथक् वृक्ष भी रोपित हैं। यहां पर एक आरोग्य धाम भी आधुनिक ढंग से बनाया गया है, जिसमें जड़ी – बूटियों की जानकारी व रोगों का निदान भी किया जाता है। कांच का मंदिर भी प्रमोद वन के पास है। यह कांच के छोटे – छोटे टुकड़ों से अत्यन्त सुंदर नयनाभिराम रूप में सजाया गया है। संगमरमर का बना गोयनका धाम भी प्रमोद वन के पास है, जिसमें फव्वारों तथा विद्युत मालिकाओं से सज्जित किया है। सन् 1990 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा ग्रामोदय विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है, जिसमें लगभग 2000 छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं।
चित्रकूट दूरस्थ दर्शनीय स्थल
- भरत कूप : यह बांदा – इलाहाबाद राजमार्ग पर स्थित है। रामचरित मानस के अनुसार श्री भरत जी, श्री राम को मनाने हेतु यहां पधारे थे, पर वे इस कार्य में सफल नहीं हुए। अपने साथ समस्त तीर्थों का जो जल वे लाए थे, उसे वहीं एक कूप में प्रवाहित कर वापस अयोध्या चले गए। मकर संक्रांति के पर्व पर यात्री इसी कूप के जल से स्नान करते हैं।
- मांडवा आश्रम : भरत कूप से नौ किलोमीटर की दूरी पर मांडवा ऋषि की तपस्थली होने के कारण यह स्थान पवित्र पावन माना जाता है।
- तुलसी तीर्थ : चित्रकूट से उत्तर में लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर है। इसे तुलसीदासजी का जन्म स्थान माना जाता है। इसी कारण यह पवित्र स्थल हो गया है।
- वाल्मीकि आश्रम : चित्रकूट से 32 किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी स्थान पर यह स्थित है। इस आश्रम में वाल्मीकि की मूर्ति भी है। चूंकि वाल्मीकि जी ‘ रामायण ‘ के रचियता थे, अत : यह स्थान भी पवित्र माना जाता है। उपरोक्त सभी स्थलों के अतिरिक्त अन्य बहुत से धार्मिक स्थल चित्रकूट के आस – पास स्थित हैं
यात्रा मार्ग
इलाहाबाद से चित्रकूट लगभग 130 किलोमीटर है। चित्रकूट का मुख्य स्टेशन चित्रकूट धाम कर्वी है, जहां से चित्रकूट नगर कुछ किलोमीटर पर स्थित है।
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