daakorajee ( ranachhodajee mandir ) :darshan- poojan se bhautik sukhon kee hotee hai praaptiडाकोरजी ( रणछोड़जी ): डाकोर गुजरात का प्रसिद्ध वैष्णवतीर्थ है, जहां सुप्रसिद्ध रणछोड़जी का मंदिर है। यह स्थान आनंद से लगभग तीस किलोमीटर की दूरी पर है। गुजरात में श्रीवल्लभ और स्वामीनारायण आदि कई वैष्णव संप्रदायों के प्रसिद्ध मंदिर हैं, परंतु डाकोर के रणछोड़जी के मंदिर की यह विशेषता है कि सभी पूजा – अर्चना के लिए आते हैं। प्रभु के दर्शन व चरण स्पर्श से मन को अपार शांति प्राप्त होती है और मानव सभी भौतिक सुखों का अधिकारी हो जाता है। भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक गुजरात का डाकोर धाम, भगवान श्री कृष्ण के अद्भुत एवं अति सुंदर स्वरुप के लिए जाना जाता है। यहां रणछोड़जी का भव्य मंदिर है।
श्री कृष्ण तीर्थ की धार्मिक कथा
ऐसा कहा जाता है कि डाकोर के मंदिर की मूर्ति द्वारका से लाई गई थी। इस मूर्ति के डाकोर लाने की कथा भी बड़ी रोचक है। डाकोर में एक राजपूत था ‘ बाजेसिंह या बोडाणों ‘। वह द्वारका के रणछोड़जी का बड़ा भक्त था। वह अपने हाथ पर तुलसी का पौधा उगाया करता था और साल में दो बार द्वारका जाकर भगवान का तुलसादल अर्पित करता था। वषों तक यह क्रम चलता रहा। जब बोडाणों बूढ़ा हो गया और लंबी यात्रा करने में असमर्थ हो गया, तब भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर बताया कि तुम्हें अब बार – बार यात्रा नहीं करनी पड़ेगी, मैं स्वयं तुम्हारे साथ चलूंगा। भगवान के बताए ढंग से बोडाणों आधी रात को मंदिर के गर्भगृह में प्रविष्ट हुआ और भगवान के श्रीविग्रह को लेकर बैलगाड़ी में रखकर चल पड़ा। उधर अगले दिन जब मंदिर के अर्चक गुगली ब्राह्मणों को भगवान की प्रतिमा के चोरी हो जाने की बात मालूम पड़ी तो वे भी काबा जाति के कुछ जवान साथ लेकर, जो तीरंदाजी के लिए प्रसिद्ध थे, चल पड़े। परंतु तब तक तो बोडाणों डाकोर पहुंच चुका था। उधर पीछा करते हुए गुगली ब्राह्मण भी डाकोर आ पहुंचे। तब तक बोडाणों ने रणछोड़जी की मूर्ति उन्हीं के आदेशानुसार गोमती तालाब में छिपा दी| कुछ लोगों का कहना है कि बोडाणों को काबाओं ने तीर से मार डाला। दूसरे कुछ लोगों का कहना है कि गुगली ब्राह्मणों ने मूर्ति के लिए तालाब को छान डाला। जब वे भाले से पानी टटोल रहे थे, तो भाले की नोक रणछोड़जी की मूर्ति के बगल में लग गई। कहते हैं, अब भी उसका निशान बना हुआ है। गुगली ब्राह्मण तालाब से मूर्ति को निकाल तो लाए, परंतु अंत में समझौता हुआ कि मूर्ति को वहीं डाकोर में प्रतिष्ठित कर दिया जाए और गुगली ब्राह्मण बदले में सोना – चांदी ले लें। साथ ही भगवान ने गुगली ब्राह्मणों को स्वप्न में आदेश दिया कि द्वारका में भी ठीक वैसी ही दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठित की जाए, जो सावित्री बावड़ी में मिलेगी। इस पर ब्राह्मणों ने बोडाणों से मूर्ति के वजन का सोना लेकर लौटने का निश्चय किया। परंतु इससे भक्त बोडाणों की परेशानी और बढ़ गई। बेचारा गरीब बोडाणों इतना सोना कहां से लाता। ऐसे समय में भगवान ने उसकी सहायता की। जब मूर्ति का भार तोला जाने लगा तो मूर्ति इतनी हलकी हो गई कि बोडाणों की पत्नी के नथ के भार से ही काम चल गया। ब्राह्मण कोई चारा न देखकर, निराश होकर लौट गए। दस महीने बाद उन्होंने सावित्री बावड़ी में मिली मूर्ति की द्वारका के मंदिर में प्रतिष्ठा की। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि रणछोड़ भगवान दिन में सात पहर डाकोर में और एक पहर द्वारका में रहते हैं।
श्री कृष्ण तीर्थ के दर्शनीय स्थल
- रणछोड़जी का मंदिर : रणछोड़जी का मंदिर विशाल है और उसमें अच्छी शिल्पकला भी देखने को मिलती है। मंदिर के दो द्वार हैं , एक उत्तर की ओर और दूसरा पश्चिम की ओर। मंदिर के सामने एक विशाल चौक है। डाकोर के रणछोड़जी की मूर्ति द्वारकाधीश की मूर्ति जैसी ही है। उनके निचले बाएं हाथ में शंख और ऊपर के बाएं हाथ में चक्र है। ऊपर के दाएं हाथ में गदा है। मूर्ति काले पत्थर की है और वह खड़ी हुई मुद्रा में है|
- गोमती तालाब : मंदिर के सामने पास ही गोमती तालाब है, जिसमें मूर्ति को भक्त बोडाणों ने छिपाया था। इसके किनारे छोटे – छोटे मंदिर हैं और एक में रणछोड़राय की चरण पादुकाएं भी हैं और यहां पर इनका तुला स्थान भी है।\
- डंकनाथ महादेव मंदिर : तालाब क एक तट पर महादेव डंकनाथ का छोटा सुंदर मंदिर है।
- बोडाणों मंदिर : भक्त बोडाणों का एक छोटा सुंदर मंदिर भी इस तालाब के तट पर बना है।
यात्रा मार्ग
पश्चिम रेलवे की आनंद गोधरा लाइन व मेन लाइनों के मध्य आनंद व नाडियाड स्टेशन हैं, जहां से डाकोरजी का मंदिर लगभग 36 किलोमीटर दूर है। यहां बसों अथवा टैक्सी आदि से पहुंचा जा सकता है| बस मार्ग अति उत्तम है और गुजरात के सभी नगरों से बस सेवा डाकोरजी जाती है।