दैनिक तर्पण विधि : पितृपक्ष

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दैनिक तर्पण विधि

पितर जिस प्रसन्न होते हैं, उसका कल्याण का मार्ग स्वत: खुलता जाता है। विश्ोष तौर पर पितृपक्ष में तर्पण जरूर करना चाहिए, इससे पितर प्रसन्न होता है। आइये, जानते है,

तर्पण की विधि-

सबसे पहले तसले या थाली में पानी भर लें, फिर उसमें काला तिल, जौ और सफेद फूल या गुलाब का फूल डाल दें।
– दो कुश की पवित्री तीसरी यानी कनिष्ठा के बगल वाली उंगली में धारण कर लें।
– धोती पहने, जिसमें लांग होनी चाहिए। साथ में गमछा भी शरीर पर धारण कर लें। कम से कम यह वस्त्र शरीर में धारण करने चाहिए।
– सीधा जनेऊ रखते हुए सबसे पहले सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए। पूर्व दिशा की ओर मुह करके सूर्य भगवान को 11 बार तर्पण करना चाहिए।
तर्पण के दौरान का मंत्र- ऊॅँ सूर्याय नम:

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ऋषि, मुनि, गुरु और सप्तऋषि मंडल के ऋषियों का ध्यान करते हुए अब 11 बार बाये अंगूठे और अंगुलियों के बीच के भाग से जल अर्पित करना चाहिए।

सप्तऋषि के तर्पण का मंत्र- सप्तऋषिभ्यों नम:।

इसके बाद पितरों को 16 बार जल तर्पण करना चाहिए। इस समय क्रिया के दौरान जनेऊ उल्टा पहन लेना चाहिए।

पितरों को तर्पण का मंत्र- पितृ देवेभ्यो नम:।

इस क्रिया के दौरान उक्त मंत्र का जप करते हुए 16 बार तर्पण करें। ध्यान दे कि इस क्रिया के दौरान दहिने हाथ के अंगूठे और उंगलियों के मध्य के भाग से पितरों का तर्पण करना चाहिए।

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पितरों को जब आप तर्पण देना शुरू करें तो दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर ले। पितरों को तर्पण दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर किया जाता है। कहने का मतलब जिस स्थान पर आप खड़े होकर तर्पण कर रहे हैं, उसी स्थान पर दक्षिण की ओर मुंह कर कर खड़े हो जाए

 

ध्यानार्थ- तर्पण करते कम से कम दो वस्त्र धारण करने चाहिए। एक तो धोती, जिसमें लाँग हो, दूसरा ऊपरी शरीर के लिए गमछा हो, जिससे शरीर के ऊपरी भाग को ढका जाए।

आभार –

लेखक विष्णुकांत शास्त्री
विख्यात वैदिक ज्योतिषाचार्य और उपचार विधान विशेषज्ञ
38 अमानीगंज, अमीनाबाद लखनऊ

मोबाइल नम्बर- 99192०6484 व 9839186484

श्राद्ध और तर्पण में क्या अंतर है?

पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं

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