दक्षिणावर्त शंख भी दुर्लभ वस्तुओं से माना जाता है। यूं तो समुद्र के तटवर्ती प्रदेशों में यह शंख भी सुगमता से मिल जाता है, लेकिन इसके अनेक भेद हैं महाभारत काल तक शंख की बहुत प्रतिष्ठा थी और प्रत्येक योद्धा के पास अपने अपने शंख थे। अर्जुन के पास जो शंख था पर उसमें जो आवर्त और रेखाएं थीं। उसके अनुसार वह देवदत्त कोटि का था।
नवनिधि में शंख भी एक निधि है, सम्पत्ति के साकार देवता वरुण और लक्ष्मीपति के हाथ मे भी शंख है, विष्णु की पूजा में शंख अनिवार्य उपकरण रहता है, पर उत्तम कोटि का शंख मिलना भी भाग्य की बात है। मैंने अपने जीवन में ऐसे व्यक्ति देखे हैं, जो दक्षिणावर्त शंख के कारण ऐश्वर्यवान बन गये, पर प्रत्येक दक्षिणावर्त हर किसी को नहीं फलता और जो सभी को फलता है, ऐसा उत्तम शंख तो आज भी दुर्लभ है।
ऐसा शंख मिल जाये तो उसे आदर सहित लाकर स्थापित कर दें। उसका प्रतिदिन पूजन करें और उसके सामने बैठकर शंख मंत्र की एक माला जप लें।
संतान गोपाल मंत्र के जप से पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा पूर्ण करते है श्री कृष्ण
पूजा के नियम/ समय की महत्ता: नियमित पूजा करोंगे तो ईश्वर सुनेगा जरुर