विवाह के बंधनों में बंध्ो अधिकांश दम्पति यह नहीं जानते है कि विभिन्न अवसरों पर उनके बैठने की अवस्था क्या होनी चाहिए? आइये, हम आपको संक्ष्ोप में बताते हैं। यह छोटी-छोटी बातें हैं, लेकिन हमे जाननी अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इनका सम्बन्ध हमारे जीवन से जुड़े विभिन्न क्रियाकलापों से है।
पत्नी पति के वाम भाग यानी बायी ओर कब-कब बैठती है-
ब्राह्मणों के पैर धोते समय, अभिष्ोक के समय, सिंदूर दान, द्बिरागमन, भोजन, शयन और सेवा के समय पत्नी को पति के बायी ओर रहना चाहिए।
दाहिने ओर पत्नी को कब-कब बैठना चाहिये-
कन्या दान के समय, यज्ञ कर्म व जातकर्म के समय, नामकरण के समय, विवाह व अन्य प्राशन के शुभ अवसर पर पत्नी को पति के दाहिनी ओर बैठना चाहिए।
यह बायें और दायें का चक्कर क्यों है?-
जो कर्म स्त्री प्रधान होते हैं अथवा जो कर्म इह लौकिक होते हैं। उसमें पत्नी पुरुष के बायें ओर बैठती है। उदाहरण स्वरूप- मांग में सिंदूर भरना, सेवा, शयन इत्यादि, लेकिन यज्ञादि, कन्यादान, विवाह ये सभी कार्य पुरुष प्रधान है। इसमें पत्नी दायी ओर बैठती है।
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