देलवाड़ा के श्वेतांबर जैन मंदिर

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देलवाड़ा के श्वेतांबर जैन मंदिर

delavaada ke shvetaambar jain mandir देलवाड़ा के श्वेतांबर जैन मंदिर: देवलवाड़ा या देलवाड़ा के जैनमंदिर माउंट आबू में हैं, जिसका मूल नाम अर्बुदाचल है। दिल्ली – मुंबई रेलमार्ग पर माउंट आबू रोड उतरकर वहां से आसानी से बस – टैक्सी द्वारा जाया जा सकता है। अनिवर्चनीय सुषमा में विश्व की अनुपम शिल्पकला की शाश्वत थाती को देलवाड़ा जैनमंदिरों के निर्माताओं, सूत्रधारों एवं शिल्पियों ने संजोकर रखा है। उज्ज्वल धवल संगमरमर से निर्मित यहां के मंदिर एक ओर शिल्पियों की अद्भुत बारीक कारीगरी तथा दूसरी ओर वीतराग जिनमूर्तियों की सुंदरता और वैभव से आध्यात्मिक वातावरण में आगंतुक को अलौकिक सौंदर्य और शांत रस में अवगाहन कराते हुए नयनों के लिए अपूर्व रूपागार खोल देते हैं। इन मंदिरों में जैन संस्कृति के प्रत्यक्षदर्शन के साथ – साथ उस युग की हिंदू – संस्कृति , नृत्य – नाट्य कला के अद्भुत एवं चित्ताकर्षक शिल्प चित्र उत्कीर्ण हैं। शिल्प सौंदर्य की सूक्ष्मता, कोमलता, अलंकरण की विशिष्टता और गुंबदों की छतों पर स्फटिक बिंदुओं की भांति झूमते कलात्मक पिंड, मेहरावों का बारीक अलंकरण आदि अलौकिक आनंद की अनुभूति प्रदान करते हैं। शिलापट्टों पर उत्कीर्ण चित्रों, विभिन्न पशु – पक्षियों, वृक्षों, लताओं, पुष्पों आदि की आकृतियां स्वर्गीय सौंदर्य के स्वप्न हैं। यहां की वास्तुकला एवं शिल्प कौशल अद्वितीय है, जिसकी मिसाल विश्व में अन्यत्र नहीं मिलती। मंदिर का सादगीपूर्ण प्रवेश द्वार दर्शकों को सौंदर्य एवं मोहकता के दुर्लभ संसार में ले जाता है। यहां पांच श्वेतांबर जैनमंदिर हैं, जिनमें ‘ विमलवसाहि ‘ तथा ‘ लूणावसाहि ‘ के मंदिर अत्यंत ही कलात्मक एवं विशिष्ट हैं। अन्य मंदिरों में महावीर स्वामी का मंदिर, पीतलहरमंदिर तथा पार्श्वनाथ के मंदिर हैं। इस परिसर में श्री कुंथुनाथ स्वामी का दिगंबर जैनमंदिर भी है। मंदिर द्वार में प्रवेश करते ही बाईं ओर तीन मंजिला भगवान पार्श्वनाथ का चौमुखा मंदिर दिखलाई पड़ता है। इस मंदिर को अंत में देखा जाता है।

महावीर स्वामी का मंदिर

इस आधुनिकतम मंदिर का निर्माण सन् 1582 ई . में हुआ। यह सब मंदिरों से छोटा तथा बहुत ही सादा है। मंदिर में मूलनायक 24 वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी सहित 9 जिन बिंब हैं। मंदिर के बाहरी भाग की छतों पर विक्रमी संवत् 1821 ( सन् 1764 ई . ) में सिरोही के चित्रकारों द्वारा बनाए गए चित्र हैं। प्रथम छत में भगवान ऋषभदेव, अंबाजी, महादेव, श्रीकृष्ण की आकृतियां तथा चारों ओर हाथी, ऊंट, वाद्य – वादक आदि चित्रित हैं। दूसरी छत पर आठ स्त्रियां ‘ घूमर ‘ नृत्य करती हुई और आठ स्त्रियां विभिन्न प्रकार के वाद्य आदि लिए हुए अंकित हैं। तीसरी एवं चौथी छत के मध्य फूल बना हुआ है और चारों तरफ पक्षियों के चित्र हैं। पांचवीं छत पर एक बारात का दृश्य है। छठी छत पर गणेश, हनुमान, क्षेत्रपाल के चित्र तथा दीवार पर यमुना नदी के तट पर श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों के वस्त्राहरण का दृश्य है। आयरिश की यह चित्रकारी धूमिल अवस्था में है।

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