लखनऊ। योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्रियों में ऐसा चेहरा बनने जा रहे है, जिन्होंने 35 साल पुराने यूपी के रिकार्ड का ध्वस्त करके लगातार दोबारा सत्ता पायी है। सत्ता लोलुप विपक्षी नेताओं ने सत्ता हासिल करने के लिए सभी तरह के षड्यंत्रों का तानाबाना बुना। सरकार को हर संभव बदनाम करने का कुचक्र रचा गया है, सत्ता विरोधी लहर को भुनाने का कुचक्र रचा, आमजन में यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि भाजपा व योगी जा रहे है, अब गोरखपुर मठ में रहेंगे, बेशर्मी का आलम यह रहा कि योगी के भगवा कपड़ों तक भी अपमान करने से नहीं विरोधी नेता नहीं चूंके, लेकिन जाग चुका हिंदू सबकुछ मौन होकर सबकुछ देखता रहा और इससे विपक्षी नेताओं का भ्रम और गलतफहमी परवान चढ़ती रही।
उन्हें लगने लगा कि सत्ता तो अब उनकी झोली में आ ही गई, लेकिन यह सब उनका राजनीतिक दिवालियापन था, जनादेश से साफ हो गया। इस सब के बीच जनता मानों ठान चुकी थी कि आएंगे तो योगी ही और हुआ भी ठीक यही। आए तो योगी ही। हारने के बाद प्रमुख विरोधी दल के नेता का जैसे गुरुर अभी तक नहीं टूटा है। उसे यह समझ नहीं आया कि जनादेश से स्पष्ट है कि अब हिदू सात साल पहले वाला हिंदू नहीं है, जो जातियों-उपजातियों में बंटा हुआ है। अब हिंदू न ब्राह्मण है और न क्षत्रीय, न वैश्य और न शुद्र ही है। हिद अब सिर्फ हिंदू है। हालांकि जातिगत विद्बेष से ग्रसित नेताओं से यह बात इतनी आसानी से समझ नहीं आयी है। उन्हें लगता है कि उनका वोट प्रतिशत व सीटें बढ़ी है, लेकिन यह भी उनकी समझ का ही फेर है, क्योंकि वह अपने वोट बैंक की बढ़त का आंकलन 2०17 से कर रहे है, जबकि उन्हें अपने वोट बैंक की तुलना 2०12 से करनी चाहिए, जिससे तुलना करने पर उन्हें अपने रसातल में जाने की सच्चाई का भान हो जाएंगे, मजे की बात यह कि वहीं विपक्षी नेता भाजपा की सीटों की तुलना उनके द्बारा प्राप्त मैक्सिमन नम्बर से कर रहे है। अजब सोच है, इन विपक्षी नेताओं के दंभ भरी सोच की।
मोनों लगता है कि उनकी सोच को ही लकवा मार गया है। योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ के अटल बिहारी वाजपेयी स्टेडियम में एक मेगा कार्यक्रम में दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। ऐसा पहली बार हुआ है कि जब किसी ने दूसरी बार यूपी की सियासी बागडोर को अपने हाथों में लिया है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में दोबारा सत्ता हासिल करना इतना भी आसान नहीं है। प्रदेश में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने का कीर्तिमान सीएम योगी ने जनता के विश्वास से ही स्थापित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कई अन्य सीएम, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और कई हस्तियां उपस्थित थीं। दो उपमुख्यमंत्रियों (केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक), 16 कैबिनेट मंत्रियों और 34 राज्य मंत्रियों सहित कुल 52 नेताओं ने भी मंत्री के रूप में शपथ ली। एक मुस्लिम चेहरे ने भी मंत्रिपरिषद में जगह बनाई।
नई कैबिनेट में करीब 24 पूर्व मंत्रियों को हटा दिया गया है। 11 पूर्व मंत्री विधानसभा चुनाव हार गए थे। 49 वर्षीय सीएम के नए मंत्रिमंडल में मोदी-शाह की स्पष्ट छाप दिखी और ये कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि योगी 2.0 कैबिनेट में गुजरात मॉडल की झलक दिख रही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पीएम नरेंद्र मोदी ने इस बार के मंत्रिमंडल को 2024 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बनाने के सुझाव दिए। उन्होंने कहा है कि ये यूपी की फ्यूचर कैबिनेट हो, जो अगले 15 साल तक काम कर सके। सिविल सेवकों, युवा चेहरों और एक संतुलित जाति मिश्रण को शामिल किया गया। योगी कैबिनट में सीएम सहित 21 सवर्ण समुदाय को जगह मिली है तो 20 ओबीसी जातियों के नेताओं को मंत्री बनाया गया है। इसके अलावा दलित समुदाय के 9 मंत्री बनाए गए हैं तो एक मुस्लिम, एक सिख और एक पंजाबी को जगह मिली है। इसके अलावा यादव समुदाय को भी प्रतिनिधित्व दिया गया है। योगी सरकार के 21 सवर्ण मंत्रियों में 8 ठाकुर, 7 ब्राह्मण, बाकी वैस्य, कास्यथ, भूमिहार जाति को प्रतिनिधित्व मिला है। 9 दलित मंत्री और 20 ओबीसी मंत्री बनाए गए हैं।
इसके अलावा मुस्लिम, सिख और पंजाबी समुदाय को भी भागीदारी मिली है। राज्य में भाजपा की जीत के पीछे महिला मतदाता एक महत्वपूर्ण कारक थीं, इसलिए पार्टी ने कैबिनेट में चार महिला मंत्रियों बेबी रानी मौर्य, विजय लक्ष्मी गौतम, प्रतिभा शुक्ला और रजनी तिवारी को शामिल किया है। पिछली विधानसभा में उपाध्यक्ष चुने गए लोकप्रिय वैश्य नेता नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को उनके पिता के भाजपा के समर्थन के कारण राज्य मंत्री बनाया गया है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह, जो राजपूत चेहरा हैं, को भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जे.पी.एस. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमटेक और पश्चिमी यूपी के प्रभारी राठौर, जहां पार्टी ने किसानों के आंदोलन के बावजूद अच्छा प्रदर्शन किया, मंत्रिपरिषद में एक और नया चेहरा हैं। दानिश आजाद अंसारी राज्य में अकेले मुस्लिम मंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ सरकार का हिस्सा बन गए हैं। उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया है। 32 वर्षीय राजनेता 2011 से भाजपा से जुड़े हुए हैं। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक हैं। बलिया नेता ने मोहसिन रजा की जगह ली है।
योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में नहीं मिली दिनेश शर्मा को जगह
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में दोबारा सरकार का गठन किया, लेकिन पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे डॉक्टर दिनेश शर्मा समेत कई दिग्गजों को वर्तमान मंत्रिमंडल में मौका नहीं मिल सका है। डॉक्टर दिनेश शर्मा को इस बार सरकार में शामिल नहीं किया गया है। ब्राह्मण समाज से आने वाले शर्मा की जगह इस बार ब्रजेश पाठक उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं। छात्र राजनीति से उभरे पाठक को भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्रमुख ब्राह्मण चेहरे के रूप में आगे किया था।
ओबीसी चेहरे के रूप में केशव प्रसाद मौर्य और स्वतंत्र देव सिंह
मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से जाटव के अलगाव और भाजपा को समर्थन को देखते हुए, बेबी रानी मौर्य को कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल करना केंद्रीय नेतृत्व का एक स्पष्ट निर्णय था। इस बार भाजपा गठबंधन में 19 जाटव विधायक जीते। चुनाव से पहले, पीएम मोदी के सुझाव पर, मौर्य को उत्तर प्रदेश की दलित राजधानी आगरा से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। सिराथू से विधानसभा चुनाव में उनकी हार के बावजूद, भाजपा आलाकमान ने केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम के रूप में समायोजित किया है, यह ध्यान में रखते हुए कि वह पार्टी का एक घरेलू ओबीसी चेहरा हैं। यह कदम भाजपा अध्यक्ष के रूप में अपने 2014-20 के कार्यकाल के दौरान अमित शाह द्वारा बनाए गए नए सामाजिक गठबंधन के संतुलन को कायम का प्रयास है। सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी चुनावी हार को नैतिक हार से ज्यादा अहम मानते हैं। इस तरह पुष्कर सिंह धामी ने भी उत्तराखंड में अपना मुख्यमंत्री पद बरकरार रखा। उत्तर प्रदेश की राजनीति में मौर्यों की काफी (5-6 फीसदी) उपस्थिति है और इस चुनाव में समुदाय के 12 विधायक जीते हैं। हालांकि, यह मौर्य-सैनी बहुल पूर्वी यूपी था जहां अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) ने बेहतर प्रदर्शन किया है। ऐसे में यादव ने राज्य में अधिक विपक्षी भूमिका पर ध्यान केंद्रित करने के लिए लोकसभा छोड़ दी है, भाजपा आलाकमान अपने ही ओबीसी चेहरों को भी सक्रिय और मुख्य भूमिका में रखना चाहती है।