देवताओं के दर्प को दूर करने वाला भगवती का यह प्रसंग शिव पुराण में उल्लेखित है। जिसमें भगवती उमा ने देवताओं के अभिमान को दूर किया था। पूर्व काल की बात है, मद में चूर दैत्यों और देवताओं के बीच भयंकर संग्राम हुआ। यह विस्मयकारी युद्ध था, जो वर्षों चलता रहा था। उस समय देवताओं पर भगवती कृपालु थी, इसलिए उनकी इस महासंग्राम में विजय हुई। दानव पराजित होकर पाताल लोक को चले गए। दैत्यों के पराजित होने पर देवता विजय के मद में चूर होकर सर्वत्र अपने पराक्रम का गुणगान करने लगे।
देवताओं के अंहकार को नष्ट करने के लिए भगवती आदि शक्ति उमा उनके समक्ष यक्ष के रूप में प्रकट हुईं। उनका विग्रह करोड़ों सूर्य के समान प्रकाशवान था। देवराज इंद्र ने अग्नि को उस तेजस्वी यक्ष का परिचय जानने के लिए भ्ोजा। अग्नि देव इंद्र के आदेश से देवराज इंद्र के पास पहुंचे। यक्ष ने अग्नि से कहा कि मेरा परिचय जानने से पूर्व तुम अपना परिचय दो। इस पर अग्नि देव बोले कि मैं जातवेदा अग्नि देव हूं। अखिल विश्व को जला देने की शक्ति मुझमें है।
अग्नि के इस प्रकार कहने पर यक्ष ने उनके सामने एक तृण रख दिया और कहा कि यदि विश्व को जला डालने की तुममें शक्ति है तो पहले इस तृण को जलाकर दिखाओ। अग्निदेव ने उस तृण को भस्म करने के लिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी, लेकिन भस्म नहीं कर सके। अंत मंे वे लज्जित होकर इंद्र के पास लौट गए और सारा वृतांत कह सुनाया। तदंतर देवराज इंद्र ने वायु देव को बुलाया और कहा कि हे वायु देव, तुमसे यह सारा जगत ओतप्रोत है। तुम ही प्राणवायु होकर अखिल प्राणियों का संचालन करते हो, अत: अब तुम ही जाकर यक्ष का पता लगाओ।
इंद्र को अपनी प्रशंसा करते देखकर वायुदेव अभिमान में भर गए। वे तत्काल ही यक्ष के निकट पहुंचे। उन्होंने यक्ष से कहा कि मैं मातरिश्वा वायुदेव हूं। मेरी चेष्टा से ही जगत के सम्पूर्ण व्यापार चलते हैं। यक्ष ने उनसे भी एक तृण को उड़ाने के लिए कहा, लेकिन वायुदेव तृण को हिला भी नहीं पाये और लज्जित होकर इंद्र के पास लौट आए। तब सम्पूर्ण देवताओं ने इंद्र से कहा कि देवराज, आप हमलोगों के स्वामी हैं, इसलिए यक्ष के सम्बन्ध में सारी जानकारी प्राप्त करने के लिए आप ही प्रयत्न करें।
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अंत में देवराज इंद्र अभिमान से यक्ष के निकट गए, लेकिन तेजस्वी यक्ष उसी क्षण अंतध्र्यान हो गए। देवराज इंद्र इस घटना को देखकर लज्जा में डूब गए। उनका अभिमान नष्ट हो गया। तदनन्तर भगवती उमा ने उन्हंे दर्शन दिए, तब इंद्र ने करुण स्वर में भगवती की नाना प्रकार से स्तुति की और यक्ष का परिचय बताने की प्रार्थना भगवती से की। तब भगवती उमा ने इंद्र से कहा कि देवराज, मेरी ही शक्ति से तुम लोगों ने दैत्यों पर विजय प्राप्त की है। अभिमानवश तुम्हारी बुद्धि अहंकार में चूर हो गयी थी।
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इसलिए तुम पर अनुग्रह करने के लिए मेरा ही अनुत्तम तेज यक्ष रूप में प्रकट हुआ था। वस्तुत: वह मेरा ही रूप था। तुम लोग अब अभिमान त्यागकर के मुझ सच्चिदानंद स्वरूपणी की शरण में आ जाओं। इस तरह से इंद्र को शिक्षा देकर और देवताओं से पूजित होकर आदि शक्ति उमा वहीं अंतध्र्यान हो गईं। देवताओं को भी इससे अपनी भूल का भान हो गया।
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