श्राद्ध पक्ष की अमावस्या में ये करें, मिलेगा पितरों का आर्शीवाद

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श्राद्ध पक्ष में अमवस्या का दिन बहुत ही महत्चपूर्ण माना जाता है। हमारे सनातन के धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में सर्व पितृ अमावस्या पर सभी भूले मृत परिजनों और पूर्णिमा, अमावस्या के दिन के मृतकों का श्राद्ध, पिंडदान तर्पण किया जाता है।
मान्यता है कि भूले-बिसरे पितरों का इस दिन श्राद्ध करना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन सभी पितर यहां अदृश्य रूप में मौजूद रहते हैं। साथ ही अच्छे कर्म करने वाले वंशजों को आशीर्वाद देकर पितृ लोक लौटते हैं। ऐसे पितरों की प्रसन्नता के लिए गरुण पुराण में सर्व पितृ अमावस्या के 5 उपाय बताए गए हैं, महालया अमावस्या के ये उपाय पितरों का आशीर्वाद पाने में सहायक होता है और इससे धन दौलत से घर भर जाता है।

1- पंचबलि कर्म
गरुण पुराण के अनुसार सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करें और श्राद्ध न कर सकें तो पंचबलि कर्म यानी गोबलि, श्वानबलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि बलि कर्म जरूर करें।

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पंचबलि कर्म, श्राद्ध पक्ष में किया जाने वाला एक प्राचीन वैदिक अनुष्ठान है। इसमें पांच अलग-अलग जगहों पर पांच अलग-अलग जीवों को भोजन खिलाया जाता है। इस कर्म को करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और व्यक्ति को सभी दोषों से मुक्ति मिलती है. पंचबलि कर्म से जुड़ी कुछ और बातें जानिए-
पंचबलि शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – पंच और बलि. पंच का मतलब पांच और बलि का मतलब भेंट चढ़ाना या बलिदान देना।
पंचबलि में पांच तरह के जीवों को भोग लगाया जाता है-

  • पहला भोग गाय को, जिसे गो बलि कहा जाता है। इसके तहत घर के पश्चिम दिशा में देशी गाय को महुआ या पलाश के पत्ते पर भोजन दिया जाता है। इस दौरान गौभ्यो नम: कहकर प्रणाम किया जाता है।
  • दूसरा भोग कुत्ते को, जिसे कुक्कुर बलि कहा जाता है।
  • तीसरा भोग कौए को, जिसे काक बलि कहा जाता है। कौए को घरों की छत पर या भूमि पर ही भोजन रखकर खाने के लिए बुलाया जाता है, ताकि वे अग्रासन स्वीकार करें।
  • चौथा भोग देवताओं को, जिसे देव बलि कहा जाता है। इसके तहत पत्ते या थाली पर देवताओं के लिए भोजन निकाला जाता है। बाद में इसे घर से बाहर कर दिया जाता है, ताकि इसे पक्षी, चींटी आदि खा सकें। मान्यता है कि यह आहार देवताओं को प्राप्त होता है।
  • पांचवां भोग चीटियों को, जिसे पिपीलिकादि बलि कहा जाता है। चींटी कीड़े मकोड़ों की बिल के सामने भी खाद्य सामग्री को चूरा कर रखा जाता है ताकि वे खा सकें। इसे पिपिलिकादि बलि कहते हैं।
  • पंचबलि कर्म में पांच लोगों के लिए भोजन रखा जाता है – देवता, पूर्वज, आत्माएं, मनुष्य और ब्राह्मण।
    पंचबलि कर्म से दैवीय, पैतृक, प्राकृतिक, सामाजिक और बौद्धिक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच तत्वों को कृतज्ञता जताई जाती है।
  • पंचबलि कर्म में घर से अलग-अलग पांच स्थानों पर पत्तल में भोजन रखा जाता है।
  • पंचबलि कर्म में हाथ में जल, रोली, अक्षत पुष्प आदि लेकर संकल्प लिया जाता है।
  • आखिर में चींटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालने के बाद ही ब्राह्मण के लिए भोजन परोसें। साथ ही जमाई, भांजे, मामा, नाती और कुल खानदान के सभी लोगों को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा जरूर दें।

2- तर्पण और पिंडदान
सर्वपितृ अवमावस्या पर तर्पण और पिंडदान का खासा महत्व है। सामान्य विधि के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है। पिंडदान के साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है। पिंड बनाने के बाद हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद इस मंत्र को पढ़े? अद्य श्रुति स्मृति पुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देव ऋषि मनुष्य पितृ तर्पणम च अहं करिष्ये।।’ तर्पण की आसान प्रक्रिया के बारे में वीडियों हमारे चैनल में है, जिसका लिंक नीचे हमारे चैनल बाक्स में मिल जाएगा।

3- गीता या गरुण पुराण का पाठ
गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। इसीलिए यह पुराण मृतक को सुनाया जाता है, क्योंकि मान्यता है कि मृत्यु के कुछ दिन बाद तक आत्मा अपने घर के आसपास रहती है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन गरुढ़ पुराण के कुछ खास अध्यायों का पाठ करें या गीता का पाठ जरूर करें या घर में ही करवाएं। आप चाहे तो संपूर्ण गीता का पाठ करें या सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए और उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाने के लिए गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ करें।

4- दान कर्म
इस दिन गरीबों को यथाशक्ति दान देना चाहिए, यह कुछ भी हो सकता है जैसे छाता दान, जूते-चप्पल दान, पलंग दान, कंबल दान, सिरहाना दान, दर्पण कंघा दान, टोपी दान, औषध दान, भूमिदान, भवन दान, धान्य दान, तिलदान, वस्त्र दान, स्वर्ण दान, घृत दान, नमक दान, गुड़ दान, रजन दान, अन्नदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान आदि।

5- सोलह ब्राह्मणों को भोजन कराना
सर्वपितृ अमावस्या पर पंचबलि कर्म के साथ ही बटुक ब्राह्मण भोज कराया जाता है। बटुक यानी वे बच्चे जो वेद अध्ययन कर रहे हैं या ब्राह्मणों के छोटे बच्चों को भोजन कराया जाता है। इस दिन सभी को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण का निर्व्यसनी होना जरूरी है और ब्राह्मण नहीं हो तो अपने ही रिश्तों के निर्व्यसनी और शाकाहारी लोगों को भोजन कराएं। ब्राह्मण नहीं मिले तो भांजा, जमाई या मित्र को भोजन कराएं।

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