राम ने रावण पर विजय प्राप्त की। रावण का विनाश किया। रावण ब्राह्मण था और राम क्षत्रिय। अतः विद्वान् व ब्राह्मण रावण के वध के पाप से मुक्ति हेतु राम ने ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। चार दिशाओं में दक्षिण दिशा में रामेश्वरम् धाम अवस्थित है। सदियों पहले यह स्थान भारत की भूमि से जुड़ा था, पर किसी प्राकृतिक घटना के कारण इसका संबंध टूट गया और इस प्रकार यह एक द्वीप में परिवर्तित हो गया। इसे रामेश्वर द्वीप या पुराणों के अनुसार गंधमादन पर्वत कहा जाता है।
यह द्वीप बंगाल की खाड़ी व अरब सागर के संगम स्थल पर स्थित है और 25 किलोमीटर लंबा तथा 2.16 किलोमीटर चौड़ा है। भारत के मुख्य तीर्थों में इसका अधिक महत्त्व है और चूंकि इसे श्रीराम ने शिवलिंग निर्माण हेतु चुना था, अत : इसका नाम रामेश्वरम् हुआ । दक्षिण की ओर सुदूर सागरतट पर स्थित रामेश्वरम् एक प्रमुख तीर्थस्थान के साथ – साथ भारतीय शिल्पकला का एक उत्कृष्ट नमूना भी पेश करता है। पुराणों में गंधमादन पर्वत का वर्णन है। यहीं पर राम ने रामेश्वरम् की स्थापना की थी। बारह ज्योतिर्लिंगों में इस तीर्थ की गणना की जाती है।
रामेश्वरम् तीर्थ का ऐतिहासिक महत्त्व भी आस्था के लिए उद्दीपन का कार्य करता है। कहा जाता है कि विश्वकर्मा के पुत्र नल तथा नील ने अपनी शिल्पविद्या से सौ योजन लंबा तथा दस योजन चौड़ा पुल तैयार किया। सागरतट के निकट विष्णु के महाशंख की आकृति का एक द्वीप है जिसे शंखद्वीप भी कहते हैं। देवी सीता को छुड़ा लाने के लिए श्रीराम ने यहीं से लंकाधिपति रावण के विरुद्ध अभियान शुरू किया था। वहां पहुंचने के लिए रामचंद्रजी ने नल और नील के साथ अपनी वानर सेना की सहायता से सेतु का निर्माण किया थ। इसी पौराणिक कथा के आधार पर दक्षिण के इस तीर्थ को सेतुबंध रामेस्वरम कहा जाता है।
श्री रामेश्वर लिंग गंधमादन पर्वत व सेतुबंध का चिंतन करने वाला मानव समस्त पापों से मुक्त हो जाता है
श्री रामेश्वर लिंग गंधमादन पर्वत व सेतुबंध का चिंतन करने वाला मानव समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। यह तीर्थ सभी तीर्थों तथा क्षेत्रों में उत्तम है। भगवान श्रीराम द्वारा बनाया गया सेतु भी अति पवित्र है और इसके दर्शन मात्र से कायिक, वाचिक व मानसिक कर्म आदि सिद्ध हो जाते हैं। विभीषण ने श्रीराम से प्रार्थना की कि हे प्रभु, यदि यह सेतु बना रहा तो जीवन भर भारत से शत्रुता ही रहेगी। अत : इसका उचित निवारण करें। इस पर श्रीराम ने धनुष बाण से सेतु भंग कर दिया। इसी कारण इस स्थान का नाम धनुष्कोटि पड़ा। अब यह स्थान लुप्त हो चुका है, पर इसके बालू रूप में कुछ चिह्न अभी भी हैं। अत : वे पूज्य माने जाते हैं व स्थान पवित्र भी।
रामेश्वरम् मंदिर: केवल हरिद्वार से लाया गया गगाजल ही चढ़ता है
यहां श्री रामनाथ स्वामी का भव्य एवं पावन मंदिर है। चांदी के त्रिपुंड तथा श्वेत उत्तरीय के कारण इस शिवलिंग की छवि अद्भुत है। यह मंदिर लगभग हज़ार फुट लंबा, छह सौ पचास फुट चौड़ा, एक सौ पच्चीस फुट ऊंचा है। इस मंदिर के केंद्र में श्रीराम द्वारा स्थापित स्फटिक से बना हुआ अत्यंत सुंदर ज्योतिर्लिंग है, जिसकी पूजा- अचना नित्यप्रति संगीत – समारोह के साथ की जाती है। इस पर परम्परा के अनुसार केवल हरिद्वार से लाया गया गगाजल ही चढ़ता है। सागरतट पर बने इस शानदार मंदिर के चारो ओर ऊंची चहारदीवारी है। पूर्व और पश्चिम की ओर क्रमशः दस और सात मंजिले गोपुरम् हैं, जिन पर अनेक देवी – देवताओं तथा पशु – पक्षियों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। विशाल गोपुरम् दूर से ही दिखाई पड़ते हैं। इस मंदिर के चारों ओर पत्थर के कलापूर्ण स्तम्भों से बना हुआ भव्य और अद्वितीय परिक्रमा – पथ है करीब बारह सौ मीटर के घेरे वाली इस दीर्घा में कुल मिलाकर ग्यारह सौ स्तंभ हैं। यह संसार में सबसे बड़ा परिक्रमा पथ माना जाता है। मंदिर के आंतरिक द्वार के सामने सोने से मढ़ा हुआ सुंदर ध्वज – स्तंभ है। वहीं पर सफेद रंग के नंदी की करीब चार मीटर ऊंची प्रतिमा स्थित है।
रामेश्वरम् मंदिर प्रांगण के दर्शनीय स्थल
पूजा- मंदिर प्रांगण के अंदर इतने तीर्थ हैं कि सबका वर्णन संभव नहीं है कुछ मुख्य स्थलों का वर्णन निम्न है :
- भव्य नंदी मूर्ति : मंदिर के समक्ष एक स्वर्ण मंडित स्तंभ है और उसी के निकट 13 फुट ऊंची 8 फुट लंबी व 9 फुट चौड़ी श्वेत वर्ण नंदी की मूर्ति
- हनुमान मूर्ति : नंदी के बाईं ओर के सभागृह
- मंदिर आंगन : मंदिर के दक्षिण में फाटक युक्त विस्तत आँगन है, जहां पर स्थित कूप के जल से यात्री स्नान करते हैं। इसके पास ही गणेशजी व सुब्रह्मण्यम के छोटे मंदिर स्थित हैं।
- हनुमदीश्वर मंदिर : रामेश्वर मंदिर के पास ही श्री विश्वनाथ या हनुमदीश्वर मंदिर स्थापित है। यह शिवलिंग हनुमान द्वारा लाया गया था।
- गंधमादनेश्वर मंदिर : मुख्य मंदिर के पास ही यह प्राचीन मंदिर है, जो महर्षि अगस्त्य द्वारा स्थापित किया गया है।
- अत्रपूर्वम मंदिर : इसमें स्वयंभू लिंग है, जिसे अनादिसिद्ध या अन्नपूर्वम् कहा जाता है। यह भी अगस्त्य जी द्वारा पूजित स्थान है। अत : इसे अगस्त्येश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
- परिक्रमा पथ के मंदिर व अन्य स्थल : इस मंदिर का परिक्रमा पथ इतना विशाल और बड़ा है कि भारत के अन्य किसी मंदिर में ऐसा परिक्रमा पथ नहीं है । इसी पथ पर अनेक मंदिर, मूर्तियां, बावड़ी तथा अनेक पवित्र कूप स्थित हैं। इनका वर्णन करना कठिन है, पर यात्री की जानकारी हेतु प्रयास किया जा रहा है।
- संपूर्ण तीर्थ : मंदिर के भीतर व बाहर कुल मिलाकर 64 तीर्थ हैं, पर उसमें 21 मंदिर के अंदर और तीन बाहर के ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं- इसमें अग्नि तीर्थ- मंदिर के समक्ष समुद्र ही है, जब कि अगस्त्य तीर्थ समुद्र के किनारे एक छोटा सरोवर है। चक्र तीर्थ- दूसरी परिक्रमा पथ में पूर्व की ओर एक बड़ा सरोवर है, शेष 21 तीर्थ मुख्य मंदिर के परिक्रमा मार्ग में कुएं के रूप में स्थित हैं और ये हैं- सूर्य तीर्थ, चंद्र तीर्थ, गंगा तीर्थ, यमुना तीर्थ, सरस्वती तीर्थ, गया तीर्थ, शंख तीर्थ, गायत्री तीर्थ, माधव तीर्थ, नल तीर्थ, नील तीर्थ, गवय तीर्थ, गवाक्ष तीर्थ, गंधमादन तीर्थ, ब्रह्म हत्या विमोचन तीर्थ, अमृत तीर्थ, शिव तीर्थ, सावित्री तीर्थ, महालक्ष्मी तीर्थ, सर्वतीर्थ व कोटि तीर्थ।
- पवित्र कार्य शुल्क : मंदिर में शिवलिंग पर कुछ चढ़ाने हेतु निश्चित शुल्क देना पड़ता है। ये शुल्क मूर्ति पर जल चढ़ाने, दुग्धाभिषेक करने , नारियल चढ़ाने, त्रिशतार्चन, अष्टोत्तरार्चन व आभूषण दर्शन आदि हेतु हैं।
- मंदिर उत्सव : श्री रामेश्वर मंदिर में वर्ष भर कुछ न कुछ उत्सव होते ही रहते हैं, पर उनमें से मुख्य महाशिवरात्रि ही है। इसके अतिरिक्त मकर संक्रांति, चैत्रशुक्ला प्रतिपदा, पौष पूर्णिमा, बैकुंठ एकादशी, रामनवमी, बैसाख पूर्णिमा, ज्येष्ठ पूर्णिमा, नवरात्रि – उत्सव, स्कंद जनमोत्सव, आर्द्रादर्शनोत्सव, तिरुकल्याणोत्सव आदि हैं। विशेष दिवसों पर सुब्रह्मण्यम् प्रभु, रामेश्वर उत्सव मूर्ति व अम्बा जी उत्सव मूर्ति की सवारी निकाली जाती है।
यहाँ के अन्य तीर्थस्थल
- गंधमादन : श्री रामेश्वर मंदिर से डेढ़ किलोमीटर दूर एक टीला है, जहां भगवान राम के चरण चिन्ह हैं।
- जटा तीर्थ : मुख्य मंदिर से दो किलोमीटर दूर एक सरोवर है, जहां श्रीराम ने लंका विजय के पश्चात् अपनी जटाएं धोई थीं।
- सीता कुंड : पांच किलोमीटर दूर मीठे जल का कूप है, जहां सीता माता ने तपस्या की थी।
- विल्लूरणि तीर्थ : सीता कुंड के पास समुद्र के किनारे एक मीठे जल का कुंड, जो श्रीराम ने धनुष की नोक से बनाया था और जानकी माता की प्यास बुझाई थी।
- नवनायकि अम्मन : दो किलोमीटर दूर एक जलाशय, जहां से मुख्य मंदिर को जल नल द्वारा पहुंचाया जाता है। यहां एक देवी मंदिर भी है।
- कोदंडराम मंदिर : पांच किलोमीटर दूर उत्तर में रेत पर समुद्र किनारे स्थित मंदिर, जिसमें राम, जानकी, लक्ष्मण व विभीषण की मूर्तियां हैं।
- एकांत राम मंदिर : पांच किलोमीटर दूर एक राम, जानकी, लक्ष्मण की मूर्तियों युक्त मंदिर, जो जीर्ण- शीर्ण अवस्था में है।
- धनुष्कोटि : रामेश्वर मंदिर से बीस किलोमीटर दूर है व मोटर बोट द्वारा पहुंचा जा सकता है, यही पवित्र राम सेतु स्थान है, जहां पिंडदान होता है।
- विभीषण तीर्थ : समुद्र में टापू रूप में स्थित- मुख्य मंदिर से दस किलोमीटर दूर दक्षिण – पश्चिम दिशा में जहां श्रीराम ने विभीषण का राजतिलक किया था।
- दर्मशचन मंदिर : दस किलोमीटर दूर के आगे समुद्र है- यही एक मंदिर है, जिसमें भगवान राम का द्विभुज विशाल श्री विग्रह है। विभीषण की सहमति से श्रीराम ने यहां कुशों के आसन पर व्रत और प्रार्थना करते हुए लंका की ओर प्रस्थान किया था।
- देवी पत्तन : रामनाथपुर से पंद्रह किलोमीटर दूर, जहां श्रीराम ने नवग्रहों का पूजन किया था और यहीं से सेतु पुल का निर्माण प्रारंभ हुआ था।
- नवपाषाणम् स्तंभ : समुद्र के मध्य नौ पत्थर के स्तंभ, जो नवग्रह के प्रतीक माने जाते हैं और इन्हें श्रीराम ने स्थापित करके पूजा की थी।
- उप्पूर मंदिर : रामनाथ से 25 किलोमीटर दूर श्रीराम ने गणेशजी की स्थापना करके पूजन किया था।
- पुलग्राम : देवी पत्तन से पश्चिम दिशा में जहां ऋषि हेतु एक क्षीर कुंड प्रगट किया। इसके अतिरिक्त अनेक छोटे – बड़े तीर्थ स्थल हैं , जिनका भ्रमण पंडे या गाइड कराते हैं।
पर्यटन स्थल
आधुनिक समय में रामेश्वरम् को धार्मिक स्थान के साथ ही पर्यटन केंद्र के रूप में भी विकसित किया गया है, जिसके फलस्वरूप देश – विदेश के लाखों पर्यटक यहां आने लगे हैं। मुख्य मंदिर के अलावा सागरतट, मछलीपालन संस्थान और नजदीक गंधमादन पर्वत पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र हैं। रामेश्वरम् मंदिर के पास और धनुष्कोटि में सागर – स्नान का महत्त्व है । यात्रियों की सुविधा के लिए यहां धर्मशालाओं के अलावा अनेक अतिथि गृह और यात्रीनिवास हैं।
यात्रा- ठहरने के स्थान
त्रिवेंद्रम – चेन्नई आदि स्थल वायु मार्ग से जुड़े हैं। रेल द्वारा चेन्नई ( पुराना नाम मद्रास ) से 666 किलोमीटर का सीधा मार्ग है। तमिलनाडु प्रदेश में प्रसिद्ध तीर्थनगर मदुरई से पौने दो सौ किलोमीटर तक समुद्रतट के साथ – साथ रेल लाइन दक्षिण की ओर जाती है, जो भारत भूमि के दक्षिण छोर से सागर पर बने लंबे रेलपुल द्वारा मंडपम् से होती हुई पंवन और रामेश्वरम् पहुंचती है। कन्याकुमारी की ओर से मंडपम् होकर सड़क मार्ग द्वारा रामेश्वरम् पहुंचा जा सकता है। चेन्नई और त्रिवेंद्रम से पर्यटक बसें यात्रियों को लेकर यहां पहुंचती रहती हैं। जहां यात्रियों के ठहरने के लिए यहां अनेक धर्मशालाएं, होटल, लॉज, गेस्टहाउस आदि उपलब्ध हैं। यात्री अपनी सुविधा एवं सामर्थ्य के अनुसार इनमें से किसी का चयन कर सकते हैं।
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श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, यहाँ हनुमदीश्वर ज्योतिर्लिंग भी है
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