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पवित्र मन से करना चाहिए दुर्गा शप्तशती का पाठ
आदिशक्ति दुर्गा की महिमा का गुणगान जितना किया जाए, वह कम ही होगा, उनकी अद्भुत लीलाओं का महात्म अतुलनीय है। समय-समय पर भगवती दुर्गा का प्राकट्य आसुरी शक्तियों के नाश के लिए होता है, वे अजन्मा होते हुए सृष्टि के कल्याण के लिए नित जन्म लेती हैं। उन भगवती दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ, चंड-मुंड व धुम्रलोचन सरीखें असुरों का नाश किया और देवताओं की रक्षा कर चराचर जगत का कल्याण किया। ये गाथाएं और देवी का महात्म ही दुर्गा शप्तशती है, दुर्गा शप्तशती देवी पुराण से लिया गया अंश है। देवी के महात्म की अनुपम गाथाएं पढ़ने से ही जीव के संकट नष्ट हो जाते हैं, वह निर्भय हो कर संसार में रहता है।
यदि श्रद्धा व भक्ति से देवी के इस महात्म को पढ़ा जाए तो कोटि-कोटि जन्मों के पाप स्वत : नष्ट हो जाते हैं। देवी के इन चरित्रों को सुनने से संकट मिट जाते है और कल्याण की प्राप्ति होती है। उन भगवती के चरित्रों के पाठ से जो अनुभूति होती है, उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना शायद सम्भव नहीं है लेकिन मैं उस अनुभूति से इतर एक दृष्टिकोण प्रकट कर रहा हूं, उम्मीद करता हूं कि आपके विचारों को सकारात्मक दृष्टि प्रदान करेगा, महसूस किया है कि असुरों न सिर्फ इस सृष्टि में उत्पन्न होते हैं, बल्कि अंतर्मन में समय-समय पर कुविचारों व अपराधों के रूप में प्रकट होते रहते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी देवांश आत्म ज्योति को बल प्रदान कर शुम्भ-निशुम्भ, महिषासुर व चंड-मुंड स्वरूप कुविचारों का नाश करे और प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहनी चाहिए, यदि हम सच्चे हृदय से देवी के महात्म को पढ़ते- सुनते हैं तो हमारी आत्म ज्योति को बल मिलता है, जो कि हमे कल्याण की राह पर ले जाता है।
इस उत्तम भाव के साथ भगवती का ध्यान करने से मन स्वत: निर्मल हो जाता है। दुर्गा सप्तशती में सात सौ श्लोक हैं, जिनकी रचना स्वयं ब्रह्मा, विश्वामित्र और वशिष्ठ ने की है। इसी वजह से इस ग्रंथ का नाम दुर्गा सप्तशती रखा गया है। दुर्गा सप्तशती मूलत: एक जाग्रत तंत्र विज्ञान है। अर्थात इनके श्लोकों का अच्छा या बुरा असर निश्चित रूप से होता है और बहुत ही तीव्र होता है। शप्तशती के पाठ में भक्तों को पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए, न सिर्फ तन की पवित्रता आवश्यक है, बल्कि मन का पवित्र होना भी जरूरी होता है।
पाठ के फल-
दुर्गा शप्तशती के पहले अध्याय के पाठ से मनुष्य को शत्रु का भय नष्ट हो जाता है, साथ ही चिंताओं से मुक्ति मिलती है, दूसरे अध्याय के पाठ से भूमि शत्रुओं के बंधनों से मुक्त होती है, तीसरे अध्याय के पाठ से युद्ध व मुकदमों में विजय प्राप्त होती है, चौथे अध्याय के पाठ से धन, सुंदर पत्नी व ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है,पांचवें अध्याय के पाठ से भूत- प्रेत की बाधाएं समाप्त होती है, साथ ही भय व बुरे स्वप्र के फलों के निवारण के लिए पांचवें अध्याय का पाठ श्रेयस्कर होता है। छठे अध्याय के पाठ से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्त होती है। सातवें अध्याय के पाठ से मन की गुप्त इच्छाएं और विशेष कामना पूर्ण होती है। आठवें अध्याय के पाठ से सम्पत्ति और धन लाभ होता है। नौवें अध्याय के पाठ से धन- सम्पत्ति का लाभ होता है।
दसवें अध्याय के पाठ से शक्ति प्राप्त होती है और संतान का सुख प्राप्त होता है। ग्यारहवें अध्याय के पाठ से भक्ति व मुक्ति मिलती है और भविष्य को लेकर चिंताएं समाप्त होती हैं। बारहवें अध्याय के पाठ से रोगों से छुटकारा मिलता है और निर्भयता प्राप्त होती है। तेरहवें अध्याय के पाठ से इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है।
-भृगु नागर
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