सज्जन और दुर्जन दोनों की प्रकार के जीव संसार में हैं, सज्जन व्यक्ति आपके हित के लिए आगे आयेगा, निस्वार्थ भाव से आपकी यथा संभव सहायता भी आवश्य करेंगा, लेकिन दुर्जन व्यक्ति की सहायता लेना भी हितकारी नहीं होता है, क्योंकि वह कभी हितैषी नहीं हो सकता है। चाणक्यनीति में दुर्जन के विषय में कुछ यूं कहा गया है-
दुर्जन: प्रियवादी च नैतद्बिश्वासकारणम्। मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदये तु हलाहलम्।।
दुर्जन: परिहर्त्तव्यो विद्ययालंकृतोअपि सन्। मणिना भूषित: सर्प: किमसौ न भयंकर:।।
सर्प क्रूर खल: क्रूर: सर्पात् क्रूरतर: खल:। मंत्रोषधिवश: सर्प: खल: केन निवार्यते।।
भावार्थ-
दुष्ट व्यक्ति मीठी बातें करने पर भी विश्वास करने योग्य नहीं होता है, क्योंकि उसकी जीभ पर शहद के ऐसी मिठास होती है, लेकिन हृदय में हलाहल विष भरा होता है। दुष्ट व्यक्ति विद्या से भूषित होने पर भी त्यागने योग्य है। जिस सर्प के मस्तक पर मणि होती है, वह क्या भयंकर नहीं होता है। साँ निठुर होता है और दुष्ट भी निठुर होता है, तदापि दुष्ट पुरुष साँप की अपेक्षा अधिक निठुर होता है, क्योंकि साँप तो मंत्र और औषधि से वश में आ जाता है, लेकिन दुष्ट का निवारण कैसे किया जाए?
गौर करने योग्य पहलू- उक्त भावार्थ से स्पष्ट होता है, दुष्ट व्यक्ति आपका कभी भी हितैषी नहीं हो सकता है, चाहे वह विद्बान ही क्यों न हो?
दुर्जन व्यक्ति कभी आपका हितकारी नहीं हो सकता
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