केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अस्थित है। शिखर के पूर्व अलकनंदा के सुरम्य तट पर बदरीनारायण अवस्थित हैं और पश्चिम में मंदाकिनी के किनारे श्रीकेदार नाथ विराजमान हैं।
यह स्थान हरिद्बार से लगभग 15० मील और ऋषिकेश से 132 मील उत्तर है। भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने भरतखंड के बदरिकाश्रम में तप किया था। वे नित्य पार्थिव शिवलिंग की पूजा किया करते थे और भगवान शिव नित्य ही उस अर्चालिंग में आते थे।
यह भी पढ़े- केदारनाथ धाम में पूजन-अर्चन से मिलती है अटल शिवभक्ति
कालान्तर में आशुतोष भगवान भूतभावन शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्होंने नर-नारायण से कहा कि मैं आपकी आराधना से प्रसन्न हूं। आप अपना वांछित वर मांगे। तब नर-नारायण ने कहा कि देवेश, यदि आप प्रसन्न हैं और वर देना चाहते हैं तो आप अपने स्वरूप के साथ यहीं प्रतिष्ठित हो जाइयें।
पूजा-अर्चा को प्राप्त करते रहें और भक्तों के दुखों को दूर करते रहें। उनके इस तरह कहने पर ज्यातिर्लिंग रूप में भगवान शंकर केदार में प्रतिष्ठित हो गए। इसके बाद नर-नारायण ने उनकी अर्चना की। उसी समय से वे वहां केदारेश्वर नाम से विख्यात हो गए।
यह भी पढ़े- केदारनाथ धाम में पूजन-अर्चन से मिलती है अटल शिवभक्ति
केदारेश्वर के दर्शन-पूजन से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सत्ययुग में उपमन्यु जी ने यहीं भगवान शंकर की आराधना की थी। द्बापर में पांडवों ने यहां तपस्या की थी। केदारनाथ में भगवान शंकर का नित्य सानिध्य बताया जाता है और यहां के दर्शनों की महिमा का गान धर्म-शास्त्रों में मिलता है। यह पावन धाम भक्तों के कष्टों को हरने वाला है।
यह भी पढ़ें- अर्थ-धर्म-काम- मोक्ष सहज मिलता है श्रीओंकारेश्वर महादेव के भक्त को