सनातन धर्म में एक परम्परा है कि एक ही गोत्र में विवाह नहीं किया जाता है। इसे धर्म की दृष्टि से पाप माना जाता है, यह बात सनातन धर्म को मानने वाले स्वीकारते हैं, लेकिन अब विज्ञान ने भी इसे स्वीकार कर लिया है। इसे लेकर कई शोध किए गए हैं, जिसमें इस बात की पुष्टि हुई है कि एक गोत्र में विवाह करने से तमाम जेनेटिक रोग भावी पीढ़ी को विरासत में मिल जाते हैं, जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते हैं।
विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्बाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप इन सप्त-ऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त्य की संतानों को गोत्र कहते हैं। इस तरह से अगर दो लोगों के गोत्र एक समान होते हैं तो इसका मतलब ये होता है कि वे एक ही कुल में जन्मे हैं। इस तरह उनमें पारिवारिक रिश्ता होता है। हिन्दू धर्म एक ही परिवार में लोगों को शादी करने की इजाजत नहीं देता है। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि एक ही कुल में शादी या समान गोत्र में शादी कर लेने पर मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और उसके बच्चे चांडाल श्रेणी में पैदा होते हैं। शारीरिक व मानसिक विकृतियाँ होने की आशंका होती है।
मनु-स्मृति में उल्लेख है कि जिस कुल में सत्पुरुष न हों या विद्बान न हों और जिस गोत्र के लोगों को क्षय रोग, मिर्गी और श्वेतकुष्ठ जैसी बीमारियां हों, वहां अपने बेटे या बेटियों की शादी नहीं करनी चाहिए। साथ ही ये भी कहा गया है कि जान-बूझ कर एक ही गोत्र की लड़की से शादी करने पर जाति भ्रष्ट हो जाती है। वैदिक संस्कृति के अनुसार, एक ही गोत्र में विवाह करना वर्जित है, क्योंकि एक ही गोत्र के होने के कारण स्त्री-पुरुष भाई और बहन हो जाते हैं।
सनातन धर्म में एक परम्परा है कि एक ही गोत्र में शादी नहीं करनी चाहिए। कई शोधों में अब ये बात सामने आई है कि व्यक्ति को जेनेटिक बीमारी न हो, इसके लिए एक इलाज है ‘सेपरेशन ऑफ जींस’, अर्थात अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नहीं करना। रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नहीं हो पाते हैं और जींस से संबंधित बीमारियां जैसे कलर ब्लाईंडनेस आदि होने की संभावनाएं रहती हैं।
शायद पुराने समय में ही जींस और डीएनए के बारे खोज कर ली गई थी और इसी कारण एक गोत्र में विवाह न करने की परंपरा बनाई गई। मान्यता तो यह भी है कि एक गोत्र में विवाह करने से वंश वृद्धि भी प्रभावित होती है और शरीरिक विकृतियां भावी पीढ़ी में आती हैं।
किस गोत्र में विवाह करना चाहिए
अलग- अलग समुदायों में इसके लिए अलग-अलग प्रथा है। हिन्दू धर्म में ऐसा कहा गया है कि आदमी को तीन गोत्र छोड़ कर ही विवाह करना चाहिए। पहला स्वयं का गोत्र, दूसरा मां का गोत्र और तीसरा दादी का गोत्र। कहीं-कहीं लोग नानी का गोत्र भी देखते हैं, इसलिए उस गोत्र में भी शादी नहीं करते हैं। महान विचारक ओशो का इस बारे में कहना था कि विवाह जितनी दूर हो उतना अच्छा होता है, क्योंकि ऐसे दम्पति की संतान गुणी और प्रभावशाली होती है।