गंगा जल तांबे के बर्तन में ही रखना चाहिए। रात्रि में मंत्र जाप व पूजन तो किया जा सकता है, लेकिन मूर्तियों को छूना नहीं चाहिए।
– सोने के समय सदा पूर्व अथवा दक्षिण दिशा की ओर सिर रखना चाहिये।
– पूजाघर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र और दो शालिग्राम का पूजन नही करना चाहिये।
– पूर्व , उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सबके लिये अत्यंत लाभप्रद होती है। अन्य दिशाओं में नीची भूमि सबके लिये हानिकारक होती है।
– घर के उत्तर प्लक्ष ( पाकड़ ), पूर्व में वटवृक्ष, दक्षिण में गुलर और पश्चिम में पीपल का वृक्ष शुभप्रद होता है। पेड़ की छाया घर पर नहीं पड़नी चाहिये।
-घर में 9 इंच ( 22 सेंटीमीटर ) से छोटी देव प्रतिमा पानी चाहिये । इससे बड़ी प्रतिमा घर में शुभ नही होती है, उसे मंदिर में रखना चाहिये ।
यह भी पढ़ें- मंत्र जप माला विधान व वर्जनाएं
-परिक्रमा देवी की एक बार , सूर्य की सात बार, गणेश की तीन बार, विष्णु की चार बार और शिव की आधी परिक्रमा करनी चाहिए।
– आरती करत समय भगवान विष्णु के समक्ष बारह बार, सूर्य के समक्ष सात, दुर्गा के समक्ष 9, शंकर के समक्ष ग्यारह और गणेश के समक्ष चार बार आरती घुमानी चाहिए।
– शिलान्यास सर्वप्रथम आग्नेय दिशा में होना चाहिये । शेष निर्माण प्रदक्षिण – क्रम से करना चाहिये। मध्याह , मध्य रात्रि और सन्ध्याकाल में नीव न रखें ।
– ईंट, लोहा, पत्थर, मिट्टी और लकड़ी, ये नये मकान में नये ही लगाने चाहिये । एक मकान की सामग्री को दूसरे मकान में लगाना अत्यंत हानिकारक है ।
– प्रतिदिन माथे पर तिलक, चंदन लगाकर ही कार्य के लिये निकलें ।
– पूजा करते समय केवल भूमि पर न बैठे । आसन जरूर बिछावें ।
यह भी पढ़ें- जानिए, मंत्र जप करने के लिए आसन कैसा हो
सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें।
सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।