वर्तमान समय में कैंसर दुनिया में तेजी से फैल रहा है। इसके उपचार के लिए अभी तमाम शोध चल रहे हैं, जो उपचार हैं, वह बहुत मंहगे हैं, लेकिन हम आपको एक ऐसा उपचार बताने जा रहे हैं, जो कि बहुत सस्ता और कारगर हैं। हमारे आयुर्वेद से जुड़ा है। आइये जानते हैं, वह कौन सा उपचार है? जिसके प्रयोग से कैंसर जैसे रोग पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। इस उपचार में गाय के मूत्र और हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन गाय का मूत्र देसी गाय का होना चाहिए।
हल्दी में एक कैमिकल होता है, उसका नाम होता है कर्कुमिन, जो कैंसर कोशिकाओं को मार सकता है। हल्दी जैसा ही कर्कुमिन एक और वस्तु में होता है, वह होता है गाय का मूत्र। यहां सीधे तौर जान लें कि गौ मूत्र का मतलब है देसी गाय से निकला हुआ सीधा-सीधा मूत्र। जिसे सूती कपड़े से छानकर लिया गया हो। देसी गाय का मूत्र आधा कप लें और आधा चम्मच हल्दी दोनों को मिलाकर गर्म करें। जब यह उबल जाए तो उसे ठंडा कर लीजिए। सामान्य तापमान में आने पर इसे रोगी को धीरे-धीरे चुस्कियां लेते हुए पिलाये। आयुर्वेद में एक अन्य औषधि भी है, जिसका नाम है पुनर्नवा। जिसको अगर इसमें आधा चम्मच मिलाएंगे तो इससे और भी बेहतर परिणाम आएंगे।
पुनर्नवा आम तौर पर आयुर्वेद की दुकानों में पाउडर या छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में मिल जाता है। इस उपचार में हमेशा एक सावधानी बरतनी आवश्यक होती है कि इसमें देसी गाय का मूत्र ही काम आता है। विदेशी गाय का मूत्र कारगर नहीं होता है। देसी गाय यदि काले या श्यामा रंग की हो तो उसका मूत्र सबसे उत्तम माना जाता है। इस औषधि को देसी गाय का मूत्र, हल्दी और पुनर्नवा सही अनुपात में मिलाकर ठंडा कर लें। फिर इसे कांच के पात्र में रख लीजिए। ध्यान रहे कि इस बोतल को कभी फ्रिज या धूप में रखे । यह औषधि कैंसर की दूसरी या तीसरी स्टेज में भी प्रभावी मानी जाती है। यदि कैंसर चौथी स्टेज में पहुंच गया हो तो उपचार कठिन हो जाता है।
विशेष बात यह है कि कैंसर रोगी की यदि कीमोथेरेपी वगैरह हो गयी हो तो इस औषधि का असर नहीं होता है। जिस रोगी की कीमोथेरेपी न हुई हो और यह औषधि निश्चित तौर पर कारगर रह सकती है। तब इस औषधि के उत्तम परिणाम सामने आते हैं। गाय का मूत्र लेते समय एक और सावधानी बरतनी चाहिए कि गाय मूत्र लेते समय गर्भवती नहीं होनी चाहिए। गाय की जो बछिया है, जो मां नहीं बनी है। उसका मूत्र आप कभी प्रयोग कर सकते हैं।