गायत्री मंत्र की अद्भुत महिमा है। इसके नियमित जप से आत्मज्योति जागृत होती है। साधक के हृदय में निर्मल भाव आने लगते हैं और वह आत्म कल्याण के पथ पर आगे बढ़ने लगता है।
हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके नियमित पाठ से
जीव का उद्धार हो जाता है और उसे अद्भुत तेज और बल की प्राप्ति होती है। दिव्यता की अनुभूति होने लगती है, लेकिन आवश्यक है, उचित गुरु के मार्गदर्शन कर नियम पूर्वक पाठ व उसका उच्चारण किया जाए। गायत्री मंत्र के पाठ में उच्चारण और बैठने का तरीका भी महत्वपूर्ण होता है। इसके अभाव में पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती है।
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गायत्री मंत्र में पहला अक्षर है ऊॅँ, दूसरा अक्षर है भू:, तीसरा अक्षर है भुव:, चौथा अक्षर है स्व:, पाचवां अक्षर है तत्, छठा अक्षर है सवितु, सातवां अक्षर है वरेण्यं, आठवां अक्षर है भर्गो और नौवां अक्षर है देवस्य। इन नामों में भगवान की स्तुति की गई है। दसवां अक्षर है धीमहि। यह भगवान की उपासना है। ग्यारहवां अक्षर धियो यो न: प्रचोदयात् है, इसमें प्रार्थना है।
गायन्तं त्रायते तस्माद् गायत्रीतिहि प्रोच्यते। अर्थात गायन करने वाले वाले को संसार से तार देती हैं, इसलिए इसका नाम गायत्री है।
मंत्र है- ऊॅँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
भावार्थ: हम उस प्राण स्वरूप, दुख: विनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पाप नाशक, प्रेरक और देवस्वरूप परमात्मा को अपनी अंतरात्मा में धारण करें और वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
गायन्तं त्रायते तस्माद्
गायत्री तिहि प्राच्यते
अर्थात गायत्री मंत्र, गायन करने वाले को संसार सागर से तार देती हैं, इसलिए इनका नाम गायत्री है।
जानिए, अन्य प्रमुख गायत्री जप मंत्र
श्री राम गायत्री मंत्र-
ऊॅँं दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि।
तन्नो: राम प्रचोदयात।
सीता गायत्री मंत्र-
ऊॅँ जनक नन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि।
तन: सीता: प्रचोदयात्।
लक्ष्मण गायत्री मंत्र-
ऊॅँ दशरथाय विद्महे उर्मिला प्रियाय धीमहि।
तन्नो लक्ष्मण: प्रचोदयात्।
हनुमान गायत्री मंत्र-
ऊॅँ अंजनी सुताय विद्महे वायु पुत्राय धीमहि।
तन्नो हनुमान: प्रचोदयात्।
कृष्ण गायत्री मंत्र-
ऊॅँ देवकी नन्दनाय विद्महे वायुदेवाय धीमहि।
तन: कृष्ण: प्रचोदयात।
राधा गायत्री मंत्र-
ऊॅँ वृषभानुजायै विद्महे कृष्ण प्रियायै धीमहि।
तन्नौ राधा: प्रचोदयात।
नारायण गायत्री मंत्र-
ऊॅँ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो नारायण: प्रचोदयता।
गोपाल गायत्री मंत्र-
ऊॅँ गोपाल विद्महे गोपीजन वल्लभाय धीमहि।
तन्नो गोपाल: प्रचोदयात।
हयग्रीव गायत्री मंत्र-
ऊॅँ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि।
तन्नो हस: प्रचोदयता।
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लक्ष्मी गायत्री मंत्र-
ऊॅँ महांलक्ष्म्यै विद्महे विष्णु प्रियाय धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात।
नृसिंह गायत्री मंत्र-
ऊॅँ उग्रनृसिंहाय विद्महे वज्र नखाय धीमहि।
तन्नो नृसिंह प्रचोदयात।
गरुड़ गायत्री मंत्र-
ऊॅँ तत्वपुरुषाय विद्महे स्वर्ण पक्षाय: धीमहि।
तन्नो गरुड़ प्रचोदयात्।
परशुराम गायत्री मंत्र-
ऊॅँ जमदग्नियै विद्महे महावीराय धीमहि।
तन: परशुराम: प्रचोदयात्।
गुरु गायत्री मंत्र-
ऊॅँ परमब्रह्माण विद्महे गुरुदेवाय धीमहि।
तन्नो गुरु प्रचोदयात्।
अग्नि गायत्री मंत्र-
ऊॅँ महाज्वलाय विद्महे अग्नि देवाय धीमहि।
तन्नो अग्नि: प्रचोदयात्।
तुलसी गायत्री मंत्र-
ैऊॅँ तुल्सयै विद्महे विष्णु प्रियायै धीमहि।
तन्नो तुलसी: प्रचोदयात्।
सरस्वती गायत्री मंत्र-
ऊॅँ सरस्वतीयै विद्महे ब्रह्म शक्तिये धीमहि।
तन्नो शारदा प्रचोदयात्।
शिव गायत्री मंत्र-
ऊॅँ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन: शिव: प्रचोदयात्।
गौरी गायत्री मंत्र-
ऊॅँ गिरीजायै विद्महे शिव प्रियायै धीमहि।
तन्नो गौरी प्रचोदयात्।
सूर्य गायत्री मंत्र-
ऊॅँ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि।
तन्नो सूर्यो: प्रचोदयात्।
चंद्र गायत्री मंत्र-
ऊॅँ क्षीर पुत्राय अमृत तत्वाय धीमहि।
तन: श्चन्द प्रचोदयात्।
राहु गायत्री मंत्र-
ऊॅँ शिरोरुपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि।
तन्नो राहु: प्रचोदयात्।
मंत्र का तीन से पांच माला जप नियमपूर्वक प्रतिदिन करना चाहिए। इससे राहु देव प्रसन्न होते हैं। सिद्ध राहु यंत्र स्थापित करके जप करना चाहिये।
केतु गायत्री मंत्र-
ऊॅँ परमपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि।
तन्नो केतु: प्रचोदयात्।
मंत्र का तीन से पांच माला जप नियमपूर्वक करना चाहिए। इससे केतु देव प्रसन्न होते हैं। मंत्र का सिद्ध केतु यंत्र स्थपित करके जप करना चाहिए।
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शनि गायत्री मंत्र-
ऊॅँ भगभवाय विद्महे मृत्युरुपाय धीमहि।
तन्नो शनैश्चर: प्रचोदयात्।
मंत्र का पांच माला जप नियमपूर्वक प्रतिदिन करना चाहिए। इससे शनि देव प्रसन्न होते हैं। सिद्ध शनि यंत्र स्थापित करके जप करें।
शुक्र गायत्री मंत्र-
ॅऊॅ भृगुजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि।
तन्नो शुक्र: प्रचोदयात्।
मंत्र का पांच माला जप नियमपूर्वक करना चाहिए। इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।
बृहस्पति गायत्री मंत्र-
ऊॅँ आंगिरसाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि।
तन्नो जीव: प्रचोदयात्।
मंत्र का तीन से पांच माला जप नियमपूर्वक करना चाहिए। इससे बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं।
बुध गायत्री मंत्र-
ऊँ चन्द्रपुत्राय विदमहे रोहिणी प्रियाय धीमहि।
तन्नो बुध: प्रचोदयात् ।
मंत्र का पांच माला जप नियमपूर्वक करना चाहिए। इससे बुध देव प्रसन्न होते हैं।
मंगल गायत्री मंत्र-
ऊॅँ अंगारकाय विद्महे शक्ति हस्ताय धीमहि।
तन्नो भौम: प्रचोदयात्।
मंत्र का तीन माला जप नियमपूर्वक करना चाहिए। इससे मंगल देव प्रसन्न होते हैं। जिस स्थान पर इस मंत्र का जप करें, उस स्थान पर सिद्ध मंगल यंत्र स्थापित करें।
चंद्र गायत्री मंत्र-
ऊॅँ अमृतांगाय विद्महे कलारुपाय धीमहि।
तन्नो सोम: प्रचोदयात्।
मंत्र का तीन से पांच माला जप नियमपूर्वक करना चाहिए। इससे चंद्र देव प्रसन्न होते हैं।
सूर्य गायत्री मंत्र-
ऊॅँ आदित्याय विद्महे प्रभाकराय धीमहि।
तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
मंत्र का तीन से पांच माला जप नियमपूर्वक करना चाहिए। इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।
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