सिंह राशि ( Leo ) की सामान्य विशेषताएं, स्वभाव व परिचय

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आपकी राशि सिंह कालचक्र की पांचवी राशि है। यह राशि अग्नि तत्त्व, सतोगुण, स्थिर स्वभाव एवं सूर्य ग्रह से प्रभावित होती है। आपकी राशि का प्रतीक चिह्न सिंह न्याय एवं शक्ति का परिचायक है।

आपका स्वभाव एवं व्यक्तित्त्व
अगर आप पुरुष हैं तो……

आप स्वाभिमानी,स्वतन्त्रता प्रेमी, स्पष्टवादी, उदार एवं आत्मविश्वासी हैं। आपकी प्रकृति गम्भीर है तथा अपने उत्तरदायित्व
एवं कर्त्तव्य का गम्भीरता से निर्वाह करते हैं। आप प्रभुत्वशाली हैं तथा नेतृत्त्व के बिना जी नहीं सकते। आप परिश्रमी एवं संघर्षशील होने के कारण स्वयं को परिस्थिति के अनुसार ढाल लेते हैं। आप अपनी बातों से दूसरों को प्रभावित करने में पूर्ण सक्षम हैं।आप स्वार्थी अवश्य हैं, किन्तु सुख-दुःख में सहयोगी भी बन पड़ते हैं। आपकी प्रवृत्ति अधिकार, शक्ति
एवं वैभव की ओर रहती है। दूसरों पर अधिकार एवं उन सबको अपना समझ बैठना आपके दुःख का कारण है। आपके जीवन में विद्या का योग मध्यम स्तरीय होगा किन्तु बौद्धिक प्रतिभा विलक्षण होने के कारण उच्च और बौद्धिक वर्ग में विशेष सम्मान पा सकेंगे। स्वजनों से विरोध एवं वाद-विवाद की अनेकानेक स्थितियां बनेंगी जिससे यदाकदा अपमान, मनस्ताप एवं शारीरिक कष्ट होगा। आप बाधाओं व परेशानियों की परवाह नहीं करते, अपितु दृढ़ता से उनका मुकाबला करके उनको दूर करके लक्ष्य पाने को तत्पर रहते हैं। यदि रात्रि में जन्म है तो सामाजिक कार्यों को करने में रुचि रखेंगे व धन का अधिकांश भाग इन्हीं कार्यों में व्यय करेंगे। यदि दिन का जन्म है तो कुल का नाम रोशन करेंगे और प्रत्येक प्रकार
के सुख-ऐश्वर्य के साधनों से युक्त एवं उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच कर ही दम लेने की प्रवृत्ति
होगी।

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अगर आप स्त्री हैं तो…..

आप संघर्षशील, अनुशासन प्रिय, अच्छी मित्र एवं गृहकार्य में दक्ष होती हैं। पति और पुत्र पर अंकुश रखकर उन्हें स्वेच्छानुसार चलाती हैं। आप सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में अंग्रणीय रहती हैं। आपके बताए बिना ‘कोई आपके मन की बात नहीं जान सकता है। आपकी भावुकता, शंकालु स्वभाव एवं खुलकर खर्च करने की आदत से अनेक समस्याएं आपके सम्मुख आती हैं, जिन पर आप संघर्ष के बावजूद काबू पा लेती हैं। आप दयालु, स्वाभिमानी, वाकपटु एवं स्वतन्त्रता प्रेमी होती हैं। आप जीवन को कलात्मक ढंग से जीना चाहती हैं। आपको जितनी जल्दी क्रोध आता है उतनी जल्दी उतर भी जाता है। शान-शौकत और मर्यादा के लिए मर-मिटना आपकी आदत है। आप दृढ़ निश्चयी एवं परिश्रम
के बल पर सफलता पा ही लेती हैं।

 

आपके प्रेम एवं सैक्स सम्बन्ध कैसे होंगे?
आप प्रेम के क्षेत्र में सन्देह के कारण असफल रहते हैं। आपकी स्त्री वर्ग से प्रतिकूलता रहती है। लेकिन फिर भी आपनी भोग प्रवृत्ति के साधन जुटा लेते हैं। आपकी ओर विपरीत लिंगी अधिक आकर्षित होता है और आपके प्रेम जाल मे फंस जाता है। आप रोमांस के क्षेत्र में अधिक क्रियाशील रहते हैं और पूर्ण तृप्ति की आकांक्षा रखते हैं। फलतः एक प्रेम-पात्र को छोड़कर दूसरे की ओर बढ़ते रहते हैं, इसीलिए सफल प्रेमी नहीं बन पाते हैं। आप धन से अधिक प्रेम को महत्त्व
देते हैं। आपका मिथुन, तुला एवं कुंभ राशि वालों के साथ श्रेष्ठ प्रेम-संबंध बन पड़ता है। वृष, कन्या एवं मकर राशि वालों के साथ अच्छा निर्वाह होता है। मेष एवं धनु राशि वालों के साथ सामान्य संबंध बन पड़ता है। आपका कर्क, वृश्चिक एवं मीन राशि वालों से विरोध रहता है, इनसे मधुर संबंध नहीं बन पाते हैं।

 

आपकी व्यवसाय एवं कार्य रुचियां कैसी होंगी?
आप नेतृत्त्व-प्रधान कार्यों में विशेष सफल हो सकेंगे। आप चाहे नौकरी करें  या व्यवसाय जो भी करेंगे उच्च स्तर में ही करेंगे। आप छोटे पद से उच्च पद तक पहुंचने को तत्पर रहेंगे। आप कपड़ा, कृषि या कृषि संबंधी वस्तुएं, स्टेशनरी,
चाय, कागज, अनाज, तम्बाकू, फल, चिकित्सक, कैमिस्ट, पुलिस, तान्त्रिक, विद्युत, सलाहकार, वकालत, जवाहारात, प्रशासक, नेता, सैन्य या राज्य विभाग, विज्ञान, ट्रांसपोर्ट, मन्त्री, राजकीय सेवा, सिगरेट कम्पनी, कैन्टीन, पशुपालन, कसाईखाना, खांडसारी, सिनेमा, फोटोग्राफी, टी.वी., वाद्य यन्त्र, आवास निर्माण, राजनीतिज्ञ, शेयर ब्रोकर, इंजीनियर,  लेखक, निदेशक, प्रशासक, शिक्षक, प्रिंसिपल, उत्पादक, सेल्समैन आदि कार्यों को करके धन और ख्याति अर्जित कर सकेंगे। प्रत्येक कार्य में आप रचनात्मकता एवं नूतनता को विशेष महत्त्व देंगे तो लाभ और नए-नए संबंध बनेंगे
जिससे व्यवसायिक उन्नति होगी।

 

स्वास्थ्य कैसा रहेगा?
आप स्वस्थ शरीर होने के कारण बीमार कम पड़ते हैं। सूर्य के निर्बल होने पर शरीर में पित्त विकार, अपस्पार(मिर्गी), उष्ण ज्वर, शरीर में जलन, हृदय रोग, नेत्र विकार, चर्म विकार, रक्त विकार, क्षय, अतिसार, चित्त में व्याकुलता, सिर दर्द,
अग्नि, शस्त्र एवं काष्ठ से चोट, विष विकार, कोख में पीड़ा, अस्थि सुति, ब्रेन हैमरेज, मियादी बुखार, पीठ दर्द, स्पन्दन, नाड़ी रोग, घुटनों में सूजन या दर्द कालरा, पागलपन, भ्रान्ति आदि रोगों के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं। आपको क्रोध,
शक्ति से अत्यधिक कार्य और भावुकता में बहने से मूर्छा और सिर या सीने में दर्द होता है जो शीघ्र दूर भी हो जाता है। आपको स्वास्थ्य के लिए नशीले पदार्थों के सेवन व असंतुलित भोजन से बचना चाहिए। रक्त की शुद्धता और सहज रक्त-
प्रवाह पर विशेष ध्यान देना चाहिए। नित्य नियम से व्यायाम करें। सन्तुलित आहार लें। क्रोध एवं तनाव की स्थिति से बचें। विटामिन्स ‘ए’ व ‘डी’ युक्त ताजी सब्जियां, ड्राई फ्रूट, नींबू, सन्तरा, शहद, मक्खन और पालक आदि खाद्य पदार्थों का सेवन स्वास्थ्यवर्धक है। छूत की बीमारियों से बचकर रहें।

 

सफलता के लिए अवश्य ध्यान दें!
आपको अत्यधिक क्रोध से बचना चाहिए। आपकी शंकालु प्रवृत्ति आप आपको बहुत बड़ी हानि कराती है। आप स्पष्टवादी तो बनें परन्तु बात को इस ढंग से कहें कि दूसरों को अप्रिय न लगे। व्यर्थ का जोखिम न लें व दुस्साहस दिखाना ठीक नहीं है। जिद्दी न बनें, व्यर्थ में अड़ना ठीक नहीं है। स्वतन्त्र विचारों के पोषक बनें, लेकिन स्वेच्छाचारिता को कतई प्रश्रय न दें। आपकी वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर एवं कुम्भ राशि वालों से अच्छी निभती है। मेष एवं धनु राशि वालोंसे सामान्य संबंध रहते हैं। कर्क, वृश्चिक एवं मीन राशि से सदैव विरोध रहता है। आपके लिए रविवार, सोमवार, मंगलवार एवं गुरुवार शुभ दिन हैं। सुनहरी पीला एवं लाल रंग शुभ हैं।

सवा पांच रत्ती का माणिक्य सोने या तांबे में जड़वाकर अनामिका अंगुली में शुक्लपक्ष के रविवार में सूर्योदय से प्रथम घंटे के भीतर सूर्य मन्त्र से अभिमन्त्रित करके धारण करना लाभप्रद है। सूर्य को तांबे के लोटे में जल में रोली, चावल एवं गुड़ डालकर अर्पण करते हुए 12 बार सूर्य मन्त्र उच्चारित करने से लाभ होता है। रविवार का व्रत सदैव लाभप्रद है। हनुमान जी की उपासना लाभप्रद है। रविवार को गेहूं, गुड़, लाल पुष्प, लाल चन्दन, तांबा एवं लाल वस्तुओं
का दान उत्तम फलप्रद है। लाल रूमाल सदैव पॉकिट में रखें।

 

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः…… मन्त्र का 7,000 जाप करना मनोकांक्षा पूर्ति में सहायक है। आपके
लिए 2, 3, 9 अंक शुभ, 5 अंक सामान्य एवं 4, 6, 7 व 8 अंक अशुभ फलदायी हैं। यदि आप इन अंकों की शुभाशुभता को ध्यान में रखकर कार्य करेंगे तो लाभ होगा। आप शंकालु प्रवृत्ति त्याज्य कर एवं क्रोध से बचकर श्रेष्ठ कार्य करने के
लिए तत्पर हो जाईए, उन्नति के द्वार स्वतः खुलते चले जाएंगे।

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