घर आप निर्माण करा रहे हैं तो आपको वास्तु सम्बन्धित कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए। इससे आपके घर में सकारात्मकता का वास रहता है। घर में सुख व सम्पन्नता बनी रहती है। वास्तु से जुड़ी ये बातें है तो सामान्य, मगर घर में खुशहाली के लिए इन्हें काफी महत्वपूर्ण माना जा सकता है। इस दृष्टि से आपको अपना घर बनाते या ठीक कराते समय इन बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए।
– चारदीवारी के अन्दर सबसे ज्यादा खला स्थान पूर्व में रखना चाहिये, क्योंकि सूर्योदय के समय सूर्य से विटामिन डी की प्राप्ति होती है, जो शरीर की ऊर्ज़ा को बढ़ाता है। सूरज घड़ी के अनुसार पूरब से उदय होकर दोपहर दक्षिण और सायं में पश्चिम की ओर अस्त होता है। पूरब से कम स्थान उत्तर में, उससे कम स्थान पश्चिम में और सबसे कम स्थान दक्षिण में छोड़ना चाहिये। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में और सबसे कम पूर्व दिशा में होनी चाहिये।
– आयताकार, वृत्ताकार व गोमुख भूखण्ड गृह – निर्माण के लिये शुभ होता है। वृत्ताकार भूखण्ड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिये।
– घर में भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके ही करना चाहिये।
– सीढ़ियों के नीचे पूजाघर, शौचालय व रसोई घर का निर्माण नहीं कराना चाहिये। घर में सीढ़ियों की संख्या विषम ( 3 – 5 – 7 ) में होनी चाहिए एवं घड़ी की दिशा में घुमाव होना चाहिए।
– धन की तिजोरी का मुख उत्तर दिशा में रखना चाहिये।
– भूखंड का ढलान उत्तर व पूर्व में और छत की ढलान ईशान में शुभ होता है।
– भूखण्ड के उत्तर , पूर्व या ईशान में भूमिगत जलस्रोत, कुआँ, तालाब व बावड़ी शुभ होती है।
– घर की उत्तर दिशा में कुआँ, तालाब, बगीचा पूजाघर, तहखाना, स्वागतकक्ष, कोषागार व लिविग रूम बनाये जा सकते हैं।
– घर का हल्का सामान उत्तर या पूर्व या ईशान में रखना चाहिये।
– घर के नैर्ऋत्य कोण में किरायेदार या अतिथियों को नहीं ठहराना चाहिये।
– सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिये या मतान्तर से अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिये।
– सिहमुखी भूखण्ड व्यावसायिक भवन दृष्टि से शुभ होता है।
– भूखण्ड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ होता है।
– भूखण्ड के उत्तर या पूर्व में मार्ग शुभ होता है। दक्षिण या पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल के लिये शुभ होते हैं।
– यदि आवासीय परिसर में बेसमेन्ट का निर्माण कराना हो तो उसे उत्तर या पूर्व में ब्रह्मस्थान को बचाते हुये बनाना चाहिये। बेसमेन्ट की ऊंचाई कम से कम 9 फीट होनी चाहिये और वह तल से 3 फीट ऊपर होना चाहिये, जिससे उसमें प्रकाश व हवा का निर्बाध रूप से आवागमन हो सके।
– कुआं , बोरिग व भूमिगत टंकी उत्तर , पूर्व या ईशानकोण में बनानी चाहिये ।
– भवन के प्रत्येक मंजिल के छत की ऊंचाई 12 फीट होनी चाहिये, लेकिन यह 10 फीट से कम कदापि नहीं होनी चाहिये।
– भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊंचा होना चाहिये और पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊँचा होना चाहिये। भवन में नैऋत्य सबसे ऊंचा व ईशान सबसे नीचा होना चाहिये।
– खिड़कियाँ घर के उत्तर या पूर्व में अधिक और दक्षिण या पश्चिम में कम संख्या में होनी चाहिये।
– घर के ब्रह्मस्थान ( पर का मध्य भाग ) को खुला , साफ तथा हवादार होना चाहिये।
– घर के ईशान कोण में पूजा घर, कुआँ, बोरिग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविग रूम, ड्राइंग रूम या फिर बेसमेन्ट बनाना शुभ होता है।
– घर के पूजा स्थान में बड़ी मूर्तियां नहीं होनी चाहिय।
– घर में दो शिवलिग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्यदेव की प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमतीचक्र व दो शालिग्राम नहीं रखना चाहिये।
– घर की पूर्व दिशा में बरामदा, कुआँ, बगीचा व पूजाघर बनाया जा सकता है। घर के आग्नेय कोण में रसोईघर, बिजली के मीटर, जेनरेटर, इन्वर्टर व मेन स्विच लगाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में मुख्य शयनकक्ष, भण्डार – गृह, सीढ़ियाँ व ऊंचे वृक्ष लगाये जा सकते हैं। घर के नैऋत्य कोण में शयनकक्ष, भारी व कम उपयोग के सामान का स्टोर, सीढ़ियाँ, ओवरहेड वाटर टैंक, शौचालय व ऊंचे वृक्ष लगाये जा सकते हैं।
– घर के वायव्य कोण में अतिथि घर, कुंआरी कन्याओं का शयनकक्ष, रोदन कक्ष, लिविग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियाँ, अन्नभण्डार कक्ष व शौचालय बनाये जा सकते हैं।