giranaar : paalitaana ke baad jainiyon ka doosara pramukh teerth गुजरात प्रदेश के प्रसिद्ध नगर जूनागढ़ से 16 किलोमीटर पूर्व में हैं, ये पहाड़ियां। जूनागढ़ शहर के पास गिरनार पर्वत है। यह शहर तथा पर्वत दोनों अनेक दृष्टिकोणों से बहुत महत्त्वपूर्ण है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से आज तक गिरनार के कई नाम प्रचलित रहे, जैसे – उज्जयंत, मणिपुर, चंद्रकेतुपुर, रैवतनगर, पुरातनपुर, गिरिवर और अंत में गिरनार।
गुजरात – प्रदेश के काठियावाड़ क्षेत्र की ये पवित्र पहाड़ियां औसतन 3500 फुट पर हैं और चोटियों की संख्या अनेक हैं। चोटियों में अंबामाता, गोरखनाथ, औघड़शिखर, गुरु दत्तात्रेय और कालिका प्रमुख हैं। सर्वोच्च चोटी गोरखनाथ 3666 फुट ऊंची है। ये पहाड़ियां ऐतिहासिक मंदिरों, राजाओं के शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी की तलहटी में एक बृहद् चट्टान पर अशोक के मुख्य 14 धर्मलेख उत्कीर्ण हैं। इसी चट्टान पर क्षत्रप रुद्रदामन का लगभग 120 ई ० का प्रसिद्ध संस्कृत अभिलेख है। इसमें सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य तथा परवर्ती राजाओं द्वारा जीर्णोद्धार किए गए सुदर्शन तडाग और विष्णु मंदिर का सुंदर वर्णन है।
पालिताणा के बाद यह जैनियों का द्वितीय प्रमुख तीर्थ है। प्राचीनतम गिरिशिखर ‘ महाभारत ‘ में उल्लेखित रैवत पर्वत. के क्रोड़ में बसा प्राचीन तीर्थस्थान है। पहाड़ की चोटी पर, कई जैनमंदिर हैं। यहां तक पहुंचने का मार्ग बड़ा दुर्गम तथा बीहड़ है। गिरि शिखर तक पहुंचने के लिए 7000 सीढ़ियां हैं। इन मंदिरों में सर्वप्राचीन मंदिर गुजरात नरेश कुमारपाल के समय का बना हुआ है। दूसरा वस्तुपाल और तेजपाल नामक भाइयों ने बनवाया था। इसे तीर्थकर मल्लिनाथ का मंदिर कहते हैं। तीसरा मंदिर नेमिनाथ का है – यह सबसे विशाल और भव्य है।
जैनग्रंथों में मिलता है कि 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ का विवाह जूनागढ़ की राजकुमारी राजुल के साथ तय हुआ। बारात राजकुमारी के द्वार के पास पहुंची, तो पास में बहुत से पशुओं को बंधा देखकर नेमिनाथ ने इसके बारे में पूछा, तब ज्ञात हुआ कि कई मांसभक्षी राजाओं के लिए इनका मांस बनाया जाएगा। यह सुनकर नेमिनाथ को वैराग्य हो गया और वे गिरनार पर तपस्या करने चले गए। यहीं उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।
भगवान शिवालय से गिरनार की चढ़ाई शुरू होती है। ज्यों – ज्यों आगे बढ़ते जाते हैं, देव – देवियों के नए – नए स्थान आते जाते हैं, जो क्रमश : इस तरह हैं – भर्तृहरि की गुफा, सोरठ का महल, जैनस्थानक श्रीनेमिनाथ का मंदिर ( जैनी गिरनार को नेमिनाथ का पर्वत कहते हैं )। यहां भीमकुंड तथा सूर्यकुंड भी हैं। यहां से एक रास्ता दूसरी दिशा से पुन : नीचे की ओर जाता है, जहां सोपान ( सीढ़ियां ) नहीं हैं, लेकिन मार्ग सरल है। यह रास्ता भैरव घाटी होते हुए शेषावन (सीतावन ) होकर भरतवन को जाता है।
नेमिनाथ से ऊपर बढ़ने पर गोमुखी कुंड आता है, जिसमें हमेशा झरने से पानी आता रहता है। यहां भी एक साधारण मंदिर है। इससे आगे 3330 फुट की ऊंचाई पर अंबाजी का मंदिर है। अंबामाता का मंदिर, अंबामाता नामक चोटी पर है। गोमुखा, हनुमान धारा और कमंडल नामक तीन कुंड यहां स्थित है। प्राचीनकाल में यह पहाड़ियां अघोरी संतों की भूमि थी। यह गिरनार का प्रथम शिखर माना जाता है। इसके बाद गोरखचोटी है। गोरख चोटी से सोपान (सीढ़ियां) नीचे की ओर है। आगे चलकर पुनः ऊपर को चढ़ना पड़ता है। सीधा चढ़ाई के बाद सबसे ऊपर दत्तात्रेय का शिखर है। दत्तात्रेय पर्वत पर दत्तात्रेय मंदिर और गोमुखी गंगा है। यात्री यहां स्नान भी करते हैं।
प्रत्येक कार्तिक पूर्णिमा को गिरनार की परिक्रमा होती है। इस परिक्रमा में गिर के भव्य जंगल के दर्शन होते हैं। परिक्रमा में कई तीर्थ हैं। पूरे गिरनार क्षेत्र को जैनो सिद्धक्षेत्र मानते हैं। यहां से नेमिनाथ और 72 करोड़ सात सौ मुनि मोक्ष को प्राप्त हुए हैं।
अन्य स्थल
नेमिनाथ शिखर : दत्तशिखरों से पहले इस शिखर पर जाते हैं। इस पर रंगीनियां नहीं हैं। इस पर काले पत्थर की मूर्ति है।
दत्तशिखर : यह माना जाता है कि यह नेमिनाथजी का निर्वाण – स्थल है।
सहसावन : यहां नेमिनाथजी ने वस्त्राभूषण त्यागकर शिक्षा ग्रहण की थी।