लखनऊ से आगे बढ़ने पर नदी बाराबंकी, सुल्तानपुर तथा जौनपुर ज़िलों से होकर बहती है। इसकी चौड़ाई भी 200 फुट से 600 फुट तक है। जौनपुर के आगे इस नदी में प्रसिद्ध सई नदी मिलती है, फिर नदी वाराणसी से 20 मील उत्तर, पटना गाँव के पास गंगा नदी से मिलती है। सुल्तानपुर में प्रवेश करने के बाद से यह नदी वहाँ से 22 मील तक अर्थात् कैथी में गंगा से संगम होने तक ज़िले की उत्तरी सरहद बनाती है। गोमती नदी अपनी सहायक नदियों के साथ 7500 वर्ग क्षेत्र को लाभान्वित करती है। वास्तव में गोमती नदी गंगा नदी की एक प्रमुख उपनदी है।
भागवत पुराण के अनुसार यह पाँच दिव्य नदियों में से एक है। गोमती उत्तर प्रदेश के पीलीभीत ज़िले के माधोटांडा ग्राम के समीप स्थित फुल्हर झील(गोमत ताल) में शुरू होती है। 960 कि॰मी॰ (600 मील) का मार्ग तय करने के बाद यह गाज़ीपुर ज़िला में सैदपुर के समीप गंगा जी में विलय हो जाती है। नदी का बहाव उत्तर प्रदेश में 900 किमी तक है। यह वाराणसी के निकट सैदपुर के पास कैथी नामक स्थान पर गंगा में मिल जाती है, पुराणों के अनुसार गोमती ब्रह्मर्षि वशिष्ठ की पुत्री हैं तथा एकादशी को इस नदी में स्नान करने से संपूर्ण पाप धुल जाते हैं।
हिन्दू ग्रन्थ श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार गोमती भारत की उन पवित्र नदियों में से है जो मोक्ष प्राप्ति का मार्ग हैं। पौराणिक मान्यता ये भी है कि रावण वध के पश्चात “ब्रह्महत्या” के पाप से मुक्ति पाने के लिये भगवान श्री राम ने भी अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार इसी पवित्र पावन आदि-गंगा गोमती नदी में स्नान किया था एवं अपने धनुष को भी यहीं पर धोया था और स्वयं को ब्राह्मण की हत्या के पाप से मुक्त किया था, आज यह स्थान सुल्तानपुर जिले की लम्भुआ तहसील में स्थित है एवं धोपाप नाम से सुविख्यात है। लोगों का मानना है कि जो भी व्यक्ति गंगा दशहरा के अवसर पर यहाँ स्नान करता है, उसके सभी पाप आदिगंगा गोमती नदी में धुल जाते हैं। सम्पूर्ण अवध क्षेत्र में गोमती तट पर स्थित “धोपाप” के महत्व को कुछ इस तरह से कहा गया है-
ग्रहणे काशी, मकरे प्रयाग। चैत्र नवमी अयोध्या, दशहरा धोपाप॥
भावार्थ- अगर वर्ष भर में ग्रहण का स्नान काशी में, मकर संक्रान्ति स्नान प्रयाग में, चैत्र मास नवमी तिथि का स्नान अयोध्या में और ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशहरा तिथि का स्नान “धोपाप” में कर लिया जाय तो अन्य किसी जगह जाने की आवश्यकता ही नहीं है।
उद्गम स्थल
इसका उद्गम पीलीभीत जनपद के माधोटान्डा कस्बे में होता है। माधोटान्डा पीलीभीत नगर से लगभग 30 कि.मी. पूर्व में स्थित है। कस्बे के मध्य से करीब 1 किमी दक्षिण-पश्चिम में फुलहर झील है जिसे “पन्गैली फुल्हर ताल” या “गोमत ताल” कहते हैं, वहीं इस नदी का स्रोत्र है। इस ताल से यह नदी मात्र एक पतली धारा की तरह बहती है। इसके उपरान्त लगभग 20 किमी के सफ़र के बाद इससे एक सहायक नदी “गैहाई” मिलती है।
लगभग 100 किमी के सफ़र के पश्चात यह लखीमपुर खीरी जनपद की मोहम्मदी खीरी तहसील पहुँचती है जहाँ इसमें सहायक नदियाँ जैसे सुखेता, छोहा,कठिना तथा आंध्र छोहा मिलती हैं और इसके बाद यह एक पूर्ण नदी का रूप ले लेती है। गोमती और गंगा के संगम में प्रसिद्ध मार्कण्डेय महादेव मंदिर स्थित है। लखनऊ, लखीमपुर खीरी, सुल्तानपुर और जौनपुर गोमती के किनारे पर स्थित हैं और इसके जलग्रहण क्षेत्र में स्थित 15 शहर में से सबसे प्रमुख हैं।
नदी जौनपुर शहर को एवं सुल्तानपुर जिले को लगभग दो बराबर भागों में विभाजित करती है और जौनपुर में व्यापक हो जाती है। गंगा और गोमती के संगम पर मार्कंडेय महादेव जी का मंदिर है। गोमती के किनारे जो नगर बसे हैं, उनमें लखनऊ, सुल्तानपुर, तथा जौनपुर प्रमुख हैं। गोमती नदी का पुराणों में भी उल्लेख है। पौराणिक युग में यह विश्वास था कि वाराणसी क्षेत्र की सीमा गोमती से बरना तक थी। वाराणसी में पहुंचने के पहले गोमती का पाट सई नदी के मिलने से बढ़ जाता है।
सहायक नदियाँ
सई, कठना, सरायन, छोहा व सुखेता।