gorakhanaath ka shishy pooranabhakt ( baaba bisaah ) ne yahaan tap kiya thaहरियाणा प्रदेश के जिले गुड़गांव में मानेसर के पास में ग्राम कासन के पहाड़ पर बना हुआ यह प्राचीन मंदिर पूरणभक्त ( बाबा बिसाह ) के नाम से प्रख्यात है। ग्राम कासन दिल्ली से 50 किलोमीटर दक्षिण में पातली रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर पूर्व दिशा में है। गांव में पक्की सड़क द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। एक किंवदंती के अनुसार जहां आज मंदिर बना हुआ है, प्राचीन समय में उस स्थान पर गुरु गोरखनाथ के शिष्य चौरंगीनाथ ( पूरण भक्त ) ने तपस्या की थी। पूरणभक्त ( बाबा चौरंगीनाथ ) का जन्म स्यालकोट ( जो अब पाकिस्तान में है ) के राजपूत राजा शालवाहन के घर में हुआ था। राजकुमार पूरण जब वयस्क हुआ, तो उसकी मौसी ने उस पर झूठे आरोप लगाकर उसे जान से मरवाने का षड्यंत्र रचा, किंतु सौभाग्य से पूरण जल्लादों की नरमी के कारण मरने से बच गया। गुरु गोरखनाथ की कृपा से पूरण पूर्णरूप से स्वस्थ हो गया और गोरखनाथ का शिष्य बन गया। भ्रमण एवं विचरण करते हुए पूरण भक्त ने ग्राम कासन में पदार्पण किया।
ग्राम कासन का यह स्थान उसे रमणीय लगा, अत : पूरणभक्त ने काफी समय तक ठहर कर यहां तपस्या की। इस दौरान कुछ अद्भुत चमत्कारी घटनाएं घटीं। बनजारों की खांड का नमक बनने की घटना उस समय घटी, जब बाबा पूरणभक्त ग्राम कासन स्थित आश्रम में ठहरे हुए थे। घटना कुछ इस प्रकार बताई जाती है कि बनजारों का एक काफिला खांड को बोरों में भर करके गुजरात से दिल्ली जाते हुए इस स्थान से गुजरा। उस काफिले के सरदार ने बाबाजी के दर्शन किए। बातचीत के दौरान बाबा ने उसके व्यापार के संबंध में पूछा, तो सरदार ने इस भय से कि कहीं बाबा खांड न मांग लें, झूठ बोलते हुए कहा कि बाबा नमक की भरती है। बाबा ने सरदार के उत्तर को सुनकर कहा कि नमक है, तो नमक ही होगा। सफर करते हुए रात हो जाने पर काफिला जब आगे जाकर कहीं रुका, तो देखा कि उनकी सारी खांड नमक बन गई है।
बनजारों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। सरदार को अपनी भूल का अहसास हुआ। वह तुरंत बावाजी से क्षमायाचना के लिए वापस चल दिया। कासन आकर सरदार बाबाजी के पैरों में गिर पड़ा और अपनी खांड को नमक बताने के झूठ को क्षमा करने की प्रार्थना करने लगा। प्रसन्न होकर बाबा पूरणभक्त ने वरदान दिया कि उसका माल खांड ही रहेगा। वापस उसे आकर बनजारे ने देखा कि नमक खांड में बदल चुका है। इस बात से अभिभूत होकर बनजारों ने पहाड़ पर मंदिर बनवाया।
इसी प्रकार को एक दूसरी घटना ग्राम कासन के एक श्रद्धालु सज्जन के साथ भी घटी। बात यह हुई कि जाड़े को आधी रात को किसी महात्मा ने मंदिर में आकर शंख बजाया। यह शंखध्वनि श्रद्धालु भक्त के कान में पड़ी, तो वह तुरंत विस्तर त्यागकर मंदिर में जा पहुंचा। उसने देखा कि एक महात्मा धूनी जमाए बैठे हैं भक्त ने सादर प्रणाम के साथ निवेदन किया कि महाराज! आधी रात के समय आपने किसलिए शंख बजाया है महात्माजी ने उत्तर दिया कि यह शंख भिक्षा के निमित्त वजाया गया है, क्योंकि भूख सता रही है वह भक्त तुरंत अपने घर वापस आया और बाजरे की रोटी व सरसों का साग लेकर महात्माजी की सेवा में हाजिर हो गया। महात्माजी ने अपनी भूख मिटाई और प्रसन्न होकर भक्त को वरदान दिया कि धूनी के पास झाड़ी से प्रतिदिन एक पत्ता तोड़कर उबाल लेना, पता चांदी बन जाएगा, जिसे बेचकर अपनी जरूरत को वस्तुएं ले लेना। भक्त ऐसा ही करता रहा, लेकिन एक दिन उसे लालच आ गया कि क्यों न सारे पत्ते तोड़कर और चांदी बना लूं। उसने ऐसा ही किया। सारे पत्ते तोड़कर उबालता रहा, पर अफसोस कि घंटों उबालने के बाद भी पत्ते चांदी के नहीं बने। कारण स्पष्ट था कि उसने बाबा के वचनों का उल्लंघन किया था। यह महात्मा कोई और नहीं, बल्कि पूरणभक्त ही थे, जो अपने भक्त की परीक्षा लेने के लिए साधु रूप में आए थे।
इसी प्रकार की एक तीसरी घटना ग्राम कासन में बोने के लिए अपने पड़ोसी किसानों से मदद ली। दोपहर हो जाने पर उसने पांच – सात आदमियों के लिए चावल उबाल लिए और उनमें खांड मिला दी। जैसे ही भोजन उवाल और घटी। हुआ यूं कि एक किसान ने अपने खेत में बीज का समय आया , एक बहुत बड़ा साधु – मंडलो वहां आ गई। मंडली के बड़े साधु ने किसान से सभी संतों को भोजन कराने के लिए कहा। किसान असमंजस में पड़ गया कि थोड़े से भोजन से इतने अधिक लोगों को कैसे संतुष्ट करें? खैर, उसने अपनी श्रद्धा के अनुसार संतों को भोजन कराने का निश्चय किया। इसी बीच साधुमंडली को देखकर अन्य लोग इधर – उधर से आकर वहां जमा हो गए। संतों के गुरु ने कहा कि उपस्थित सभी लोग भोजन करेंगे और वह पांच – सात आदमियों के लिए बना हुआ भोजन सब लोगों के भोजन करने के बाद भी वैसे का वैसा ही बना रहा। उपस्थित सैकड़ों लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। यह संतों का बड़ा संत कोई और नहीं, बल्कि बाबा पूरणभक्त ही थे, जो अपने भक्त किसान की परीक्षा लेने के लिए आए थे। भोजन के उपरांत वह संत – मंडली लोगों की दृष्टि से ओझल हो गई। यहां के लोगों की आम बोलचाल में पूरणभक्त को ही बाबा विसाह के नाम से भी जाना जाता है।
प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार करते समय खुदाई के दौरान यहां भगवान विष्णु की भांति एक सुंदर तथा खंडित मूर्ति मिली है इसके साथ ही अनेक देवी – देवताओं की मूर्तियां भी मिली हैं, जिन्हें हरियाणा सरकार ने यहां से ले जाकर चंडीगढ़ शहर में अपने अजायबघर में रख लिया है ये सब मूर्तियां कला की दृष्टि से उच्चकोटि को हैं और हजारों वर्ष पुरानी लगती हैं, जिनको मुसलमान शासनकाल में धर्माध मुस्लिम राजाओं ने तुड़वाकर मंदिर को नष्ट कर दिया था। राजस्थान, गुजरात व मारवाड़ पर आक्रमणकारी मुस्लिम सेनाएं इसी गांव से होकर जाया करती थीं। अतिभव्य एवं प्राचीन मंदिर उनकी कोपदृष्टि से नहीं बच पाया। मुगलशासन के पतन के पश्चात् उसी स्थान पर एक छोटा – सा मंदिर बिना किसी मूर्ति के फिर बनाया गया। वर्ष सन् 1980 में श्रद्धालु भक्तों व दानी सज्जनों की सहायता से पुराने मंदिर का विस्तार किया गया। इसमें दुधिया संगमरमर का प्रयोग किया गया है। परिणामतः मंदिर के सौंदर्य में और भी अधिक भव्यता आ गई है।
इस भव्य मंदिर में बाबा चौरंगीनाथ की मूर्ति स्थापित है। इसके अतिरिक्त संकटमोचन हनुमान तथा माता दुर्गा के मंदिरों का भी निर्माण हो गया है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य बावली ( पानी का तालाब ) के बन जाने से और भी अधिक रमणीय हो गया है। यहां एक बारहमासी प्याऊ भी है। चूंकि मंदिर क्षेत्र 300 फुट की ऊंचाई पर है, अतः नीचे से बिजली के मोटर द्वारा पानी ऊपर ले जाया जाता है। कुल मिलाकर यह स्थान एक पवित्र तीर्थस्थल है। यहां अन्य कई चीजें भी देखने योग्य हैं।
हर वर्ष दो बार मेला
इस मंदिर पर हर वर्ष दो बार मेला लगता है। पहला मेला भाद्रपद सुदी चतुर्दशी ( अनंत चौदस ) को मुख्य रूप से होता है। एकादशी को ही ध्वजारोहण करके मेले का श्रीगणेश कर दिया जाता है। दूसरा मेला माघ सुदी चतुर्दशी को होता है। पहले मेले में आने वाले यात्रियों की संख्या कई लाख होती है। कई प्रकार की दुकानें, खेल, तमाशे भी होते हैं। मेले में रोशनी, सफाई, पीने के पानी व सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की जाती है। मेले में यात्री लोगों की भारी भीड़ का कारण बाबा के प्रति उनकी अपार भक्तिभावना है। हजारों निराश दंपतियों की पुत्र – कामना बाबा की कृपा से पूरी हुई है। सच्चे दिल से पूजा करने वाले भक्तों को नौकरी व रोजगार भी मिलता है। भक्तों की सभी कामनाएं पूरी होती हैं।