दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा होती है। वेदों में इस दिन इन्द्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। द्वापर में अन्नकूट के दिन इंद्र की पूजा करके उनको छप्पन भोग अर्पित किए जाते थे लेकिन ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण के कहने पर उस प्रथा को बंद करके इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे और गोवर्धन रूप में भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने लगे।
ये मंत्र देते हैं संकटों से मुक्ति व मोक्ष
ओम कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:।। यह एक शक्तिशाली मंत्र है, जिसके जाप में पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्नानादि के बाद सुबह व शाम को इस मंत्र का 1०8 बार जाप करने से जीवन में किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता हैं, क्लेशों का नाश होता है। ओम नम: भगवते वासुदेवाय कृष्णाय क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:।। अगर कोई संकट अचानक सामने आता है तो उक्त मंत्र का जप करने से जीव तत्काल ही भय व संकट से मुक्त हो जाता है। तीसरा मंत्र है, हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।। उक्त मंत्र का जप हर समय करते रहना चाहिए, इससे मनुष्य को मुक्ति प्राप्त होती है, कलयुग के तापों से उसे मुक्ति मिलती है। उसके संकटों का नाश होता है, भक्ति व श्रद्धा से जप करने वाले साधक के लिए हरि कृपा से मुक्ति के द्बार खुल जाते हैं।
गोवर्धन पूजा कर मनाना चाहिए अन्नकूट पर्व
अन्नकूट या गोवर्धन की पूजा का आज जो विधान है, वह भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्बापर युग में ही शुरू हुआ है। उस समय लोग इन्द्र भगवान की पूजा करते थे। छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर तरह – तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाया जाता था। गाय , बैल आदि पशुओं को स्नान कराया जाता है। उनके पैर धोए जाते हैं । फूल माला , धूप , चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिष्ठान्न खिलाकर उनकी आरती करके प्रदक्षिणा ली जाती है। कई तरह के पकवानों का पहाड़ बनाकर बीच में श्री कृष्ण की मूर्ति रखकर पूजा की जाती है। कहीं – कहीं गोबर से गोवर्धन व कृष्ण की मूर्ति बनाकर भी पूजा की जाती है । तेल का दीपक जलाकर पूजा और परिक्रमा की जाती है। इस दिन सन्ध्या समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है । इस दिन बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाए जाते हैं। इसी दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी। पूजन के बाद अन्नकूट की कथा भी सुननी चाहिए ।
गोवर्धन पूजा की कथा
कथा इस तरह से है, एक समय की बात है कि भगवान श्री कृष्ण अपने सखाओं , गोप – ग्वालों के साथ गाएँ चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि हजारों गोपियाँ गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन तरह के भोजन रखे बहुत उत्साह से नाच – गा कर उत्सव मना रही थीं । श्री कृष्ण ने इस उत्सव का प्रयोजन पूछा तो गोपियाँ कहने लगी कि आज तो घर – घर में उत्सव होगा क्योंकि वृत्रासुर को मारने वाले मेघों व देवों के स्वामी इन्द्र का पूजन होगा । यदि पूजा से वे प्रसन्न हो जाएं तो ब्रज में वर्षा होती है, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण – पोषण होता है । कृष्ण बोले कि अगर देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएं, तब तो तुम्हें यह उत्सव जरूर करना चाहिए। इतना सुन गोपियां कहने लगीं कि देवराज इन्द्र की इस प्रकार निन्दा नहीं करनी चाहिए । यह तो इन्द्रोज नामक यज्ञ है । इसी के प्रभाव से अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि नहीं होती। कृष्ण बोले कि इन्द्र में क्या शक्ति है ? इससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इन्द्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करनी चाहिए। काफी वाद – विवाद के बाद श्री कृष्ण की बात ही मानी गई तथा ब्रज में इन्द्र की पूजा के स्थान पर गोवर्धन की पूजा शुरू की गई । सभी गोप – ग्वाल अपने – अपने घरों से पकवान ला – लाकर गोवर्धन की तराई में जा श्री कृष्ण की बताई विधि से पूजन करने लगे । उधर कृष्ण ने अपने आधिदैविक रूप से पर्वत में प्रवेश कर ब्रजवासियों द्बारा दिए गए सभी पदार्थों को खा लिया और उन सबको आशीर्वाद दिया। सभी गोपाल अपने यज्ञ को सफल जान कर बड़े प्रसन्न हुए । नारद मुनि इन्द्रोज – यज्ञ देखने की इच्छा से ब्रज गांव में आए तो उन्हें इन्द्रोज – यज्ञ के स्थगित होने तथा गोवर्धन – पूजा का समाचार मिला । इतना सुनते ही नारद इन्द्र लोक पहुंचे तथा उदास होकर बोले कि गोकुल के निवासी गोपों ने इन्द्रोज बन्द करके आप से बलवान गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी है। आज से यज्ञों आदि में उसका भाग तो हो ही गया । यह भी हो सकता है कि किसी दिन कृष्ण की प्रेरणा से वे तुम्हारे राज्य पर आक्रमण करके इन्द्रासन पर भी अधिकार कर लें । नारद तो अपना काम करके चले गए । अब इन्द्र क्रोधित हो गए । अधीर होकर उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय का सा दृश्य उत्पन्न कर दें। मेघ ब्रज -भूमि पर जा मूसलाधार वर्षा होने लगी । तब सब गोप – ग्वाल सहमकर भगवान कृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। गोप – गोपियों की करुण पुकार सुनकर कृष्ण बोले कि तुम सब गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो । वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप – ग्वाल पशु धन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए । श्री कृष्णा ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर छाता – सा तान दिया । गोप – ग्वाल सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए । सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं पड़ा । यह चमत्कार देखकर परमपिता ब्रह्मा जी द्बारा श्री कृष्णावतार की बात जानकर इन्द्र देव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे । श्री कृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो । तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है।
पड़वा भी कहते हैं
इस दिन को उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में पड़वा कहते हैं। इस दिन दिवाली मिलन समारोह होता है। परिवार के सभी लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं और साथ में भोजन करते हैं।
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का महत्व
अन्नकूट पर्व मनाने से मनुष्य को लंबी आयु व् आरोग्य की प्राप्ति होती है साथ ही दारिद्रय का नाश होकर मनुष्य जीवनपर्यंत सुखी और समृद्ध रहता है। ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिन कोई मनुष्य दुखी रहता है तो वह वर्ष भर दुखी ही रहेगा। इसलिए हर मनुष्य को इस दिन प्रसन्न रहकर भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय अन्नकूट उत्सव को भक्तिपूर्वक तथा आनंदपूर्वक मनाना चाहिए।