जब ग्रहण लगे तो स्नान जरूर करना चाहिए। स्नान का एक विशेष महत्व है। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण सपरिवार प्रभात में स्नान करने आए थे, प्रभास तीर्थ कटिया वाडा में है, इसी दिन कुरुक्षेत्र में भी स्नान का विशेष महत्व है, जो लोग इसी तीर्थ पर न जा सके, उन्हें निकटवर्ती गंगा या अन्य नदी में स्नान करना चाहिए। ग्रहण से पूर्व जल में स्नान करके वहां दान, पूजन, यज्ञ आदि करना चाहिए ग्रहण। समाप्त होने पर पुन: स्नान करना चाहिए। ग्रहण के पश्चात ब्राह्मणों को दान देना श्रेयस्कर माना जाता है। इस अवधि में मंत्रों का जाप करने से मंत्र सिद्ध हो जाते हैं।
चंद्र ग्रहण से एक पहर पूर्व और सूर्य ग्रहण से तीन पहर पूर्व सूतक माना जाता है। सूर्य व चंद्रमा के अस्त हो जाने से यह सूतक पुन: उदित होने तक रहता है। इस अवधि में शरीर में तेल लगाना, भोजन करना, शौच करना, केश विन्यास करना, रतिक्रीड़ा तथा दातुन करना आदि सब वॢजत होता है। इस समय ईश्वर का भजन करना चाहिए। इस अवधि में घरों में रखा हुआ जल व भोजन अपवित्र हो जाते हैं। ग्रहण के बाद बर्तन मांजने चाहिए। वस्त्र धोने चाहिए। गर्भवती को चाहिए कि वह ग्रहण न देखें, अन्यथा बच्चा अंगहीन हो सकता है।
इसके अलावा गर्भपात की संभावना भी रहती है। चंद्र ग्रहण के समय मन की शक्ति क्षीण होती है और सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र की शक्ति कमजोर पड़ती है। ग्रहण की अवधि में निषिद्ध वस्तुओं का प्रयोग करने से शरीर में विकार पैदा होते हैं।
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