गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु ही महेश्वर

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गुरु का सनातन परम्परा में हमेशा से महत्व रहा है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है। कोई भी शुभ कार्य शुरू करना हो तो गुरु का नमन जरूर करना चाहिए, जो गुरु के प्रति श्रद्धाभाव रखता है, ईश्वर उसकी मदद आवश्य करते हैं। सर्व प्रथम गुरु के चरणों का ध्यान करते हुए गुरु जी वंदन और स्तुति करनी चाहिए, क्योंकि गुरु की कृपा के फलस्वरूप ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। बिना गुरु के ज्ञान प्राप्ति असंभव है।

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गुरु ही शिष्य को वह आनंदकारी मार्ग बताते हैं, जिस पर चलकर कल्याण की प्राप्ति होती है और सुगमता से अपना लक्ष्य प्राप्त करता है, इसलिए सर्व प्रथम अपने गुरु श्री के चरणों का ध्यान करना चाहिए। दो अक्षरों से मिलकर बने ‘गुरु’ शब्द का अर्थ – प्रथम अक्षर ‘गु का अर्थ- ‘अंधकार’ होता है जबकि दूसरे अक्षर ‘रु’ का अर्थ- ‘उसको हटाने वाला’ होता है।

रामाश्रयी धारा के प्रतिनिधि गोस्वामीजी वाल्मीकि से राम के प्रति कहलवाते हैं कि- तुम तें अधिक गुरहिं जिय जानी। राम आप तो उस हृदय में वास करें- जहाँ आपसे भी गुरु के प्रति अधिक श्रद्धा हो।

गुरु और देवता में समानता के लिए एक श्लोक है-

यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरु

अर्थ-  जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

ज्ञान शास्त्र में गुरु की महिमा का वर्णन कुछ इस प्रकार है-

गुरु ब्रह्मा गुरु र्विष्णु
गुर्रुर्देवो महेश्वर:
गुरुर्साक्षात्पर ब्रह्म
तस्मै श्री गुरवे नम:।
अर्थ- गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु ही महेश्वर यानी शिवजी हैं और वे ही परब्रह्म हैं। ऐसे श्री गुरुदेव जी श्री चरणों में मेरा बारम्बर नमस्कार है।
गुरु की महिमा का वर्णन कुछ इस प्रकार है-
नित्यानन्दं परमसुखदं
केवलं ज्ञान मूर्ति।
द्बन्द्बातीतं गगन सदृशं
तत्वमस्यादि लक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलचलं
सर्वधी साक्षिभूतं।
भावातीत त्रिगुण रहितं
सद्गुरुं तं नमामि।।

गुरु की महिमा का वर्णन कुछ इस प्रकार है-
अज्ञान तिमिरान्धस्य
ज्ञानांजन शलाकया।
चुक्षुरुन्मीलितं येन
तस्मै श्री गुरवे नम:।
अर्थ- ज्ञानरूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश का अंजन लगाकर बंद नेत्रों को खोलने वाले गुरुदेव के श्री चरणों में नमस्कार है।

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