हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र…

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श्री राम भगवान विष्णु के अवतार है, जिनका अवतरण त्रेता युग में हुआ था। श्री राम अविनाशी है अनंत है और भक्तवत्सल है। भगवान श्री राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान जी भी संसार का कल्याण करने के लिए कलयुग में जीवित देवता के रूप में धरा पर है। कलयुग में भगवान श्री हनुमान शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक माने जाते हैं, कलयुग में जब मनुष्य धर्म कर्म से विमुख हो गया है और होता जा रहा है । ऐसे ही में जो भक्त श्री हनुमान जी की शरण में जाता है, उसका कल्याण श्री हनुमत अवश्य करते हैं। श्री हनुमान जी उस भक्त पर अत्यंत प्रसन्न रहते हैं, जो भगवान श्री राम के श्री चरणों में परम भक्ति रखता है। हिंदू धर्म में मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा का विधान है। इस दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखा जाता है। जिस पर हनुमान जी प्रसन्न होते हैं, उसके समस्त संताप मिट जाते हैं। हनुमान भक्तों को भूत प्रेत का भय भी नहीं होता है, हनुमान चालीसा के पाठ से भूत प्रेत भाग जाते हैं। मंगलवार के दिन भगवान को लड्डू,बूंदी या सौफ प्रसाद चढ़ाने से वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं। हनुमान जी अष्ट सिद्धि वन नवनिधि के दाता हैं। हनुमान जी सेवा, समर्पण और भक्ति की पराकाष्ठा है। श्री हनुमान चालीसा में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है।

माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना मानस से पूर्व किया था। हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की।

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अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं।

हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई।

हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या-क्या बदलाव ला सकते हैं….

शुरुआत गुरु से…

हनुमान चालीसा की शुरुआत गुरु से हुई है…

श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि।

अर्थ – अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं।

गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई आगे नहीं बढ़ा सकता। गुरु ही आपको सही रास्ता दिखा सकते हैं।

इसलिए तुलसीदास ने लिखा है कि गुरु के चरणों की धूल से मन के दर्पण को साफ करता हूं। आज के दौर में गुरु हमारा मेंटोर भी हो सकता है, बॉस भी। माता-पिता को पहला गुरु ही कहा गया है।

समझने वाली बात ये है कि गुरु यानी अपने से बड़ों का सम्मान करना जरूरी है। अगर तरक्की की राह पर आगे बढ़ना है तो विनम्रता के साथ बड़ों का सम्मान करें।

ड्रेसअप का रखें ख्याल…

चालीसा की चौपाई है…………

कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुंडल कुंचित केसा।

अर्थ – आपके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है, सुवेष यानी अच्छे वस्त्र पहने हैं, कानों में कुंडल हैं और बाल संवरे हुए हैं।

आज के दौर में आपकी तरक्की इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप रहते और दिखते कैसे हैं। फर्स्ट इंप्रेशन अच्छा होना चाहिए।

अगर आप बहुत गुणवान भी हैं लेकिन अच्छे से नहीं रहते हैं तो ये बात आपके करियर को प्रभावित कर सकती है। इसलिए, रहन-सहन और ड्रेसअप हमेशा अच्छा रखें।

बिद्यावान गुनी अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर।

अर्थ – आप विद्यावान हैं, गुणों की खान हैं, चतुर भी हैं। राम के काम करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं।

आज के दौर में एक अच्छी डिग्री होना बहुत जरूरी है, लेकिन चालीसा कहती है सिर्फ डिग्री होने से आप सफल नहीं होंगे। विद्या हासिल करने के साथ आपको अपने गुणों को भी बढ़ाना पड़ेगा, बुद्धि में चतुराई भी लानी होगी। हनुमान में तीनों गुण हैं, वे सूर्य के शिष्य हैं, गुणी भी हैं और चतुर भी।

अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी

प्रभु चरित सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया।

अर्थ –आप राम चरित यानी राम की कथा सुनने में रसिक है, राम, लक्ष्मण और सीता तीनों ही आपके मन में वास करते हैं।
जो आपकी प्रायोरिटी है, जो आपका काम है, उसे लेकर सिर्फ बोलने में नहीं, सुनने में भी आपको रस आना चाहिए।

अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। अगर आपके पास सुनने की कला नहीं है तो आप कभी अच्छे लीडर नहीं बन सकते।

कैसे व्यवहार करना है ये ज्ञान जरूरी है

सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा।

अर्थ – आपने अशोक वाटिका में सीता को अपने छोटे रुप में दर्शन दिए। और लंका जलाते समय आपने बड़ा स्वरुप धारण किया।

कब, कहां, किस परिस्थिति में खुद का व्यवहार कैसा रखना है, ये कला हनुमानजी से सीखी जा सकती है।

सीता से जब अशोक वाटिका में मिले तो उनके सामने छोटे वानर के आकार में मिले, वहीं जब लंका जलाई तो पर्वताकार रुप धर लिया।

अक्सर लोग ये ही तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कब किसके सामने कैसा दिखना है।

अच्छे सलाहकार बनें

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेश्वर भए सब जग जाना।

अर्थ – विभीषण ने आपकी सलाह मानी, वे लंका के राजा बने ये सारी दुनिया जानती है।

हनुमान सीता की खोज में लंका गए तो वहां विभीषण से मिले। विभीषण को राम भक्त के रुप में देख कर उन्हें राम से मिलने की सलाह दे दी।

विभीषण ने भी उस सलाह को माना और रावण के मरने के बाद वे राम द्वारा लंका के राजा बनाए गए। किसको, कहां, क्या सलाह देनी चाहिए, इसकी समझ बहुत आवश्यक है। सही समय पर सही इंसान को दी गई सलाह सिर्फ उसका ही फायदा नहीं करती, आपको भी कहीं ना कहीं फायदा पहुंचाती है।

आत्मविश्वास की कमी ना हो

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।

अर्थ – राम नाम की अंगुठी अपने मुख में रखकर आपने समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई अचरज नहीं है।

अगर आपमें खुद पर और अपने परमात्मा पर पूरा भरोसा है तो आप कोई भी मुश्किल से मुश्किल टॉस्क को आसानी से पूरा कर सकते हैं।

आज के युवाओं में एक कमी ये भी है कि उनका भरोसा बहुत टूट जाता है। आत्मविश्वास की कमी भी बहुत है। प्रतिस्पर्धा के दौर में आत्मविश्वास की कमी होना खतरनाक है। अपनेआप पर पूरा भरोसा रखे।

  • हनुमान जी वायुदेव की उपासना के प्रभाव से केसरी नामक वानर की धर्मपत्नी अंजनी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, इसलिए हनुमान जी पवन तनय कहलाए। केसरी व अंजनी के पुत्र थे, इसलिए केसरी नंदन और अंजनी सुत कहलाये। हनुमान जी के लौकिक पिता केसरी थे, इसलिए भी केसरी नंदन नाम विख्यात हुआ। चूंकि हनुमान जी रुद्र के अवतार थे, इसलिए शंकर शुवन अर्थात शंकर जी के पुत्र कहलाये।

भगवान राम के पुत्र लव जन्मे तो कुश से इसलिए बने थे कुश

जाने, कहां जन्म हुआ था हनुमान जी का, मध्य प्रदेश के टिहरका या फिर आंजन में जन्में बजरंगबली

बजरंगबली को हनुमान कह कर क्यों पुकारते हैं

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