“हनुमानजी: पहले लीडर, फिर भगवान!”

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भगवान हनुमानजी इस कलियुग में महान शक्ति हैं, सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले इष्ट हैं, जो अष्ट सिद्धि और नव निधि के देने वाले हैं। इसलिए उनकी विश्वासपूर्वक जो पूजा करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। हनुमानजी को हिन्दू देवताओं में सबसे शक्तिशाली माना गया है, वे रामायण जैसे महाग्रंथ के सह पात्र थे। वे भगवान शिव के ग्यारवें रूद्र अवतार थे, जो श्रीराम की सेवा करने और उनका साथ देने त्रेता युग में अवतरित हुए थे। उनको बजरंग बलि, मारुतिनंदन, पवनपुत्र, केशरीनंदन आदि अनेकों नामों से पुकारा जाता है। उनका एक नाम वायुपुत्र भी है, उन्हें वातात्मज भी कहा गया है अर्थात् वायु से उत्पन्न होने वाला। इन्हें सात चिरंजीवियो में से एक माना जाता है। वे सभी कलाओं में सिद्धहस्त एवं माहिर थे। वीरो में वीर, बुद्धिजीवियों में सबसे विद्वान। वे साहस, भक्ति, और शक्ति के प्रतीक हैं, जो भगवान श्रीराम के परम भक्त और प्रिय हैं।

मंगलवार को हनुमानजी का जन्म हुआ, ऐसा माना जाता है। भिन्न-भिन्न लोगों ने इस महान् आत्मा का मूल्यांकन भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से किया है। हनुमान का चरित्र एक लोकनायक का चरित्र है और उनके इसी चरित्र ने उन्हें सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक लोकप्रियता प्रदान की है। उनके चरित्र ने जाति, धर्म और सम्प्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया है। हनुमानजी का चरित्र बहुआयामी हैं क्योंकि उन्होंने संसार और संन्यास दोनों को जीया। वे एक महान योगी एवं तपस्वी हैं और इससे भी आगे वे रामभक्त हैं। हनुमान-भक्ति भोगवादी मनोवृत्ति के विरुद्ध एक प्रेरणा है संयम की, पवित्रता की, समर्पण की। यह भक्ति एक बदलाव की प्रक्रिया है। यह भक्ति प्रदर्शन नहीं, आत्मा के अभ्युदय का उपक्रम है और जीवन-विकास का आयाम है।

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प्रभु हनुमानजी की अनेक विशेषताएं एवं विलक्षणताएं हैं, वे अदम्य साहस और शक्ति के प्रतीक हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी डटे रहते हैं। वे भगवान श्रीराम के प्रति पूरी तरह समर्पित थे और उनके हर कार्य को निष्ठा से पूरा करते थे। हनुमानजी शक्तिशाली होने के बावजूद विनम्र थे और सभी के साथ अच्छा व्यवहार करते थे। वे ज्ञान और बुद्धि से भरपूर थे और हर कार्य को कुशलता एवं निपुणता से करते थे, चाहे वह समुद्र को पार करना हो या लंका को जलाना। हनुमानजी को चिरंजीवी माना जाता है, यानी वे अमर हैं, वे एक आदर्श ब्रह्मचारी थे। हनुमानजी के चेहरे पर कभी चिंता, निराशा या शोक नहीं दिखता था, वे हर हाल में मस्त रहते थे। हनुमानजी से मन, कर्म और वाणी पर संतुलन रखना सीखा जा सकता है। वे एक कुशल प्रबंधक थे और उनके जीवन से प्रबंधन के कई गुण सीखे जा सकते हैं। वे कुशल राजनीतिज्ञ भी हैं, जिनसे आदर्श राजनीति के गुण सीखे जा सकते हैं।

 

रुद्रावतार हनुमानजी कुशल योजनाकार, कुशाग्र और दूरदर्शी थे। बालि से सताए सुग्रीव जंगल में छिपकर जीवन बिता रहे थे, इस बीच जब जंगल में हनुमानजी भगवान श्रीराम और लक्ष्मण से मिले तो उन्होंने भविष्य को भांप लिया और प्रभु श्रीराम एवं सुग्रीव की मित्रता कराई, जिससे दोनों को लाभ हुआ। हनुमानजी जो भी काम करते थे तन्मयता से करते थे। हनुमानजी ने सेना से लेकर समुद्र को पार करने तक जो कार्य कुशलता और बुद्धि परिचय दिया, वह प्रबंधन के गुणों को दर्शाता है। हनुमानजी अच्छे नेतृत्वकर्ता थे, उनकी कम्युनिकेशन स्किल अच्छी थी। उनमें कुशल राजनय के सभी गुण थे। इसलिए जब सीता का पता लगाने के लिए अनजान प्रदेश में किसी को भेजने की बात आई तो बजरंगबली को चुना गया। वहां न सिर्फ उन्होंने माता सीता का पता लगाया, आगे बढ़कर कम्युनिकेशन स्किल और डिप्लोमेसी के बल पर सीताजी को आश्वश्त किया और लंका में श्रीराम की सेना का खौफ भर दिया।

 

शुद्ध आचार, विचार और व्यवहार से जुड़ी हनुमानजी की ऐसी अनेक चारित्रिक व्याख्याएं हैं जिनमें जीवन और दर्शन का सही दृष्टिकोण सिमटा हुआ है। हनुमानजी विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ हैं। वाल्मीकि रामायण में उनको महाबलशाली घोषित करते हुए ‘बुद्धिमतां वरिष्ठं’ कहना पूर्ण युक्ति संगत है। ‘रामचरितमानस’ में भी उनके लिए ‘अतुलित बलधामं’ तथा ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम’ इन दोनों विशेषणों का प्रयोग द्रष्टव्य है। ब्रह्मचारी हनुमानजी महान् संगीतज्ञ और गायक भी थे। इनके मधुर गायन को सुनकर पशु-पक्षी एवं सृष्टि का कण-कण मुग्ध हो जाता था। उनकी विद्वता के साथ-साथ तर्क-शक्ति अत्यंत उच्च कोटि की थी। ऐसे अनेक प्रसंग है जब उन्होंने अपनी तर्क-शक्ति से अनेक जटिल स्थितियों को सहज बना दिया। उनकी अलौकिक साधना एवं नैसर्गिक दिव्यता का ही परिणाम था कि वे भय और आशंका से भरे वातावरण में भी निःशंक और निर्भीक बने रहते थे। संकट की घड़ी में भी शांतचित्त होकर अपने आसन्न कर्तव्य का निश्चय करना उत्तम प्रज्ञा का प्रमाण है। हनुमान इस सर्वोत्कृष्ट प्रज्ञा से युक्त थे। संपूर्ण विद्याओं के ज्ञान में उनकी तुलना देवताओं के गुरु बृहस्पति से की गयी है। महर्षि अगस्त्य के अनुसार हनुमानजी नवों व्याकरणों के अधिकारी विद्वान थे। नोबेल पुरस्कार विजेता आक्टाभियो पाज का भी यह सुनिश्चित मत है कि हनुमान ने व्याकरण शास्त्र की रचना की थी।

 

भारत ही नहीं, विश्व के इतिहास में किसी ऐसे मानव का उल्लेख नहीं मिलता, जिसमें शारीरिक बल भावनात्मकता और मानसिक शक्ति का एक साथ इतना अधिक विकास हुआ हो जितना हनुमानजी में हुआ था। प्राचीन भारत में ब्रह्मतेज से युक्त अनेक महामानव हुए। इसी प्रकार इस पावनभूमि में ऐसे विशिष्ट व्यक्ति भी हुए जो शारीरिक बल में बहुत बलशाली थे, परन्तु ब्रह्मतेज के साथ-साथ शास्त्र-बल का जो आश्चर्यजनक योग हनुमान में प्रकट हुआ, वह अन्यत्र दिखाई नहीं पड़ता। हनुमानजी अदम्य साहसी थे और विपरीत परिस्थितियों से विचलित नहीं होते थे। रावण को सीख देते समय उनकी निर्भीकता, दृढ़ता, स्पष्टता और निश्चिंतता अप्रतिम है। जब समुद्र में रामनाम लिखा पत्थर डालना था तो हनुमानजी भी इस काम में जुट गए और इस समय उनमें उत्साह देखते ही बनता था। इससे पहले लंका में अशोक वाटिका के फल खाते वक्त भी उनकी मस्ती मंत्रमुग्ध करती है।

 

पंच देवों के तेज पुंज श्री हनुमानजी हैं। माता अन्जनी के गर्भ से प्रकट हनुमानजी में पांच देवताओं का तेज समाहित हैं। अजर, अमर, गुणनिधि, सुत होहु- यह वरदान माता जानकीजी ने हनुमानजी को अशोक वाटिका में दिया था। स्वयं भगवान् श्रीराम ने कहा था कि- ‘सुनु कपि तोहि समान उपकारी, नहिं कोउ सुर नर मुनि तनु धारी।’ बल और बुद्धि के प्रतीक हनुमानजी श्रीराम और जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। वे सभी कलाओं में सिद्धहस्त एवं माहिर थे। इन्होंने अपने पराक्रम और विद्या से अनेकों कार्य चुटकीभर समय में पूर्ण कर दिए है। वे शौर्य, साहस और नेतृत्व के भी प्रतीक हैं। समर्पण एवं भक्ति उनका सर्वाधिक लोकप्रिय गुण है। वे ज्योतिष के भी प्रकांड विद्वान थे। वे हर युग में अपने भक्तों को अपने स्वरूप का दर्शन कराते हैं और उनके दुःखों को हरते हैं। वे मंगलकर्त्ता एवं विघ्नहर्त्ता हैं।

 

त्रेतायुग के सर्वाधिक शक्तिशाली मानव हनुमान जिन्हें भ्रमवश अनेक देशी-विदेशी विद्वान पेड़ों पर उछल-कूद करनेवाला साधारण वानर मानते रहे हैं, लेकिन वे अपने अलौकिक गुणों और आश्चर्यजनक कार्यों के बल पर कोटि-कोटि लोगों के आराध्य बन गये। हनुमानजी पूरे भारतवर्ष में सर्वाधिक पूजे जाते हैं और जन-जन के आराध्य देव हैं। बिना भेदभाव के सभी हनुमान अर्चना के अधिकारी हैं। अतुलनीय बलशाली होने के फलस्वरूप इन्हें बालाजी की संज्ञा दी गई है। हनुमान की भक्ति या उनको पाने के लिये इंसान को इंसान बनना जरूरी है। जब तक भक्ति की धारा बाहर की ओर प्रवाहित रहेगी तब तक भगवान अलग रहेंगे और भक्त अलग रहेगा। हनुमान भक्ति के लिये जरूरी है उनके जीवन से दिशाबोध ग्रहण करो और अपने में डूबकर उसे प्राप्त करो। ‘जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ’- यही है सच्ची हनुमान भक्ति की भूमिका। भक्ति का असली रूप पहचानना जरूरी है, तभी मंजिल पर पहुंचेंगे, अन्यथा संसार की मरुभूमि में ही भटकते रह जायेंगे।

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