वैद्यनाथ धाम शिव और शक्ति के ऐक्य का प्रतीक हैं। यह बिजार राज्य में गिरिडीज यानी वर्तमान नाम बी देवघर जिले में स्थित है। यहां भगवान शिव के द्बादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग और 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी स्थित है। यह स्थान चिताभूमि में है। यहां देवी सती के शरीर का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जय दुर्गा और भैरव वैद्यनाथ हैं। इसे हृदय या हार्दपीठ-वैद्यनाथधाम के नाम से जाना जाता है।
शिवपुराण के अनुसार दाक्षायणी भगवती सती अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा अनुष्ठित यज्ञ में जाना चाहती थीं। बहुत अनुनय-विनय करनेके बाद भगवान शिव ने जाने की आज्ञा दे दी।
फिर वह यज्ञ के लिए चली गयीं, तब यज्ञ मंडप में पहुंचने के बाद सभी देवताओं के लिये स्थान एवं भगवान शिव के लिये स्थान न देखकर सती ने अपने पिता से कहा कि मेरे स्वामी के लिए इस यज्ञ मंडप में स्थान क्यों नहीं? तब राजा दक्ष ने कहा-
मया कृतो देवयाग: प्रेतयागो न चैव हि।
देवानां गमनं यत्र तत्र प्रेविवर्जित:।।
(शिवपुराण)
अर्थात मैंने देवयज्ञ किया है, प्रेतयज्ञ नहीं। जहाँ देवताओं का आवागमन हो वहाँ प्रेत नहीं जा सकते। तुम्हारे पति भूतादिकों के स्वामी हैं, अत: मैंने उन्हें नहीं बुलाया। यह सनुकर भगवती सती ने अपनी देह को यज्ञ कुण्ड में आहुत कर दिया।इस पर शिव क्रुद्ध हो गए, तब वीरभद्र व भद्रकाली ने यज्ञ का विध्वंश कर दिया और भगवान शंकर सती के अवशिष्ट शरीर को लेकर ब्रह्मण्ड मंडल में घूमने लगे। सभी लोकों में हाहाकार मच गया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से भगवती सती के शरी को 51 टुकड़ों में विभक्त कर दिया।
सती का ह्दयदेश वैद्यनाथधाम की पावन नगरी में गिरा था, अत: यहां के शक्तिपीठ को ‘हार्दपीठ’ या ‘ह्दयपीठ’ भी कहा जाता है-
ह्दयपीठ के समान शक्तिपीठ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मंडल में कहीं नहीं है, ऐसा पद्मपुराण का कथन है-
हार्दपीठस्य सदृशो नास्ति भूगोलमंडलले।
(पातालखण्ड)
सती को यहां ‘जयदुर्गा’ के नाम से अभिहित किया गया है। भगवान वैद्यनाथ ही उनके भैरव हैं-
ह्द्यपीठं वैद्यनाथस्तु भैरव:।
देवता जयदुर्गास्या………….।।
मत्स्यपुराण आदि में ‘आरोग्या वैद्यनाथे तु’- ऐसा भी प्रमाण मिलता है। देवी भागवत महापुराण में बगलामुखी का सर्वोत्कृष्टï स्थान वैद्यनाथधाम में बताया गया है और यहां की शक्ति को ‘आरोग्या’ नाम से अभिहित किया है।
यह भी पढ़ें- श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से प्राप्त होती है अभ्ोद दृष्टि, मिलता है रोगों से छुटकारा
आठवीं शताब्दी में जगदगुरु शंकर भगवत्पाद ने द्वादश ज्योतिर्लिगो के स्वरूप वर्णन में वैद्यनाथ को शक्तियुक्त सिद्घ किया है।
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका निधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम।
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि।।
यहां गिरिजासमेतम पदद्वारा ‘जयदुर्गा’ शक्ति को अभिहित किया गया है।
व्याकरण के अनुसार ‘शक’ धातु में ‘क्तिन’ प्रत्यय जोडऩे से ‘शक्ति’ शब्द निष्पन्न हुआ है, यह शब्द बल, योग्यता, धारिता, सामथ्र्य, ऊर्जा एवं पराक्रम के अर्थ को अभिद्योतित करता है।
शास्त्र ने शक्ति के तीन भेदों को स्वीकार किया है, जो प्रभुशक्ति, मंत्रशक्ति एवं उत्साह शक्ति के रूप में वर्णित हैं।
वैद्यनाथधाम के एक पुजारी का कहना हैं कि जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में शिव आमंत्रित नहीं किया, तो सती बिना शिव की अनुमति लेकर मायके पहुंच गई और पिता द्वारा शिव का अपमान किए जाने के कारण उन्हें मृत्यु का वरण किया। सती की मृत्यु सूचना पाकर भगवान शिव आक्रोशित हो गए।
देवताओं की प्रार्थना पर उन्मत्त शिव को शांत करने के लिए विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे। सती के अंग जिस-जिस स्थन पर गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए। यहां सती का हृदय गिरा था, जिस कारण यह स्थान ‘हार्दपीठ’ से भी जाना जाता है। इसे हृदय या हार्दपीठ-वैद्यनाथधाम के नाम से जाना जाता है।
यह भी पढ़ें – काशी विश्वनाथ की महिमा, यहां जीव के अंतकाल में भगवान शंकर तारक मंत्र का उपदेश करते हैं
यह भी पढ़ें –अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाता है महामृत्युंजय मंत्र
यह भी पढ़ें –संताप मिटते है रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से
यह भी पढ़ें – शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही क्यों करनी चाहिए ? जाने, शास्त्र मत
यह भी पढ़ें – साधना में होने वाली अनुभूतियां, ईश्वरीय बीज को जगाने में न घबराये साधक
यह भी पढ़ें – यहां हुंकार करते प्रकट हुए थे भोले शंकर, जानिए महाकाल की महिमा
यह भी पढ़ें –जानिए, रुद्राक्ष धारण करने के मंत्र
यह भी पढ़ें- जानिए, नवग्रह ध्यान का मंत्र
यह भी पढ़े- भगवती दुर्गा के 51 शक्तिपीठ, जो देते हैं भक्ति-मुक्ति, ऐसे पहुचें दर्शन को