हिंदू धर्म में हाथ जोड़ कर नमस्कार करने की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। यह प्रथा आज भी जीवन्त है, लेकिन चलन जरूरत कम हो गया है। वह भी पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से कम हुआ है, क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हाथ मिलाने का चलन बढ़ गया है। इससे कीटाणु एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाते हैं। इसका नकारात्मक पहलू है, जबकि हाथ जोड़ कर नमस्कार से हमारे मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस परंपरा का वैज्ञानिक तर्क यह है नमस्ते करते समय सभी अंगुलियों के शीर्ष आपस में एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं और इससे उन पर दबाव पड़ता है। हाथों की अंगुलियों की नसों का संबंध शरीर के सभी प्रमुख अंगों से होता है। इसी वजह से जब अंगुलियों पर दबाव पड़ता है तो इस एक्यूप्रेशर (दबाव) का सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है। ऐसे अभिवादन करने से हमारी स्मरण शक्ति में वह व्यक्ति लम्बे समय तक रहता है।
ऐसे अभिवादन करने से शारीरिक पवित्रता भी बनी रहती है, क्योंकि हम प्रतिदिन हम सैकड़ों लोगों से मिलते है, ऐसे में आपको इस अंदाजा भी नहीं होता है, सामने हाथ वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा हैं। स्वच्छता को लेकर उदासीन है या फिर गंभीर रहता है। बहरहाल हाथ जोड़कर नमस्कार हर दृष्टि से हमारे लिए उचित ही प्रतीत होता है।
Very nice knowledge