हिंदुओं को बांटने का राहुल का प्लान फेल

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लखनऊ।जातिगत जनगणना को लेकर हिंदुओं को विभाजित करने की साजिश रच रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी का दांव उल्टा पड़ गया है। अब राहुल गांधी को अपनी जाति बतानी होगी। हालांकि उनकी जाति की हकीकत को पूरा देश जानता है । पिता पारसी और माता क्रिश्चियन है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को भी जाति पूछने को लेकर का बहुत मलाल है। लेकिन विडंबना यह है कि यह वही राहुल गांधी हैं जो आज तक प्रधानमंत्री से लेकर तमाम आला अफसर की जाति का ब्योरा जेब में लिए घूम रहे थे। कांग्रेस के नेता भी तिलमिलाए हुए हैं। अब सवाल यह है कि राहुल को अपनी जाति बताने में कष्ट क्या है? और कांग्रेसी नेताओं के पेट में मरोड़ क्यों हो रहा है?

कांग्रेस पार्टी की जातिगत राजनीति को अक्सर भारत में सामाजिक विभाजन और तनाव फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। कुछ आलोचकों का तर्क है कि जाति-आधारित वोट बैंक बनाने के उद्देश्य से कांग्रेस द्वारा जाति की राजनीति को बढ़ावा दिया गया है, जिससे समुदायों के बीच प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष को बढ़ावा मिला है।

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कांग्रेस पार्टी ने ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) जैसे हाशिए के समुदायों के अधिकारों की वकालत की है। हालांकि, कुछ लोगों द्वारा इस वकालत की आलोचना की गई है कि यह “जाति की राजनीति” को बढ़ावा देती है, जिसमें पार्टी विभिन्न जाति समूहों के वोट हासिल करने के लिए जाति की पहचान का उपयोग करती है।

जाति की राजनीति से जुड़े जोखिमों में सामाजिक ध्रुवीकरण, सांप्रदायिक हिंसा और लोकतंत्र का क्षरण शामिल है। जब राजनीतिक दल वोट जीतने के लिए जातिगत पहचान को उकसाते हैं, तो इससे समुदायों के बीच तनाव और अविश्वास पैदा हो सकता है। इससे हिंसा और भेदभाव हो सकता है, जिससे समाज में विभाजन और दरार पैदा होती है।

भारत में, कांग्रेस पार्टी के अलावा, अन्य राजनीतिक दलों ने भी अपनी राजनीतिक रणनीतियों में जाति की पहचान का उपयोग किया है। इसने एक प्रतिस्पर्धी राजनीतिक माहौल बनाया है जहां राजनीतिक दल जाति-आधारित गठबंधन बनाने और विभिन्न जाति समूहों से समर्थन प्राप्त करने के लिए होड़ करते हैं।

जातिगत राजनीति के संभावित लाभों में हाशिए के समुदायों के अधिकारों और चिंताओं के लिए ध्यान आकर्षित करना शामिल है। यह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों के लिए अवसर पैदा करने में मदद कर सकता है। हालाँकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जाति की राजनीति का उपयोग नकारात्मक उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है, जैसे समुदायों को विभाजित करना और राजनीतिक लाभ हासिल करना।

अंततः, जातिगत राजनीति के जोखिम और लाभ एक जटिल मुद्दा है जिसमें विभिन्न दृष्टिकोण और व्याख्याएं हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जाति की राजनीति हमेशा नकारात्मक नहीं होती है, लेकिन जब इसका उपयोग समुदायों को विभाजित करने और सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है, तो यह खतरनाक हो सकता है।

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