हिंदुत्व एक विचारधारा है जो विश्व कल्याण की बात करती है

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मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

आज विजयदशमी है, अर्थात असत्य पर सत्य, अन्याय पर न्याय और अधर्म पर धर्म की विजय का उत्सव मनाने का दिवस है। 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत ही नहीं वरन संसार का सबसे बड़ा गैर-राजनीतिक संगठन है। इसलिए यह सारी दुनिया के चिंतन का केन्द्रीभूत विषय बन गया है।

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विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार संघ परिवार में 80 से अधिक समविचारी या आनुषांगिक संगठन हैं, यह सम्पूर्ण विश्व के 40 देशों में सक्रीय है | इस समय संघ की 56 हजार 569 दैनिक शाखाएं है | इसके साथ ही करीब 13 हजार 847 साप्ताहिक मंडली और 9 हजार मासिक शाखाएं भी हैं | अगर हम पंजीकरण की बात करें तो इसमें पंजीकरण नहीं होता है | वहीं जानकारी देते हुए बताया गया है कि, “50 लाख से अधिक स्वयंसेवक नियमित रूप से शाखाओं में आते हैं | इसकी शाखा प्रत्येक तहसील और लगभग 55 हजार गांवों में है |”
संघ जहां धर्म, अध्यात्म, विश्व-कल्याण और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने वाले राष्ट्रभक्तों के लिए शक्तिपीठ है, वहीं वह राष्ट्रविरोधियों और सनातनद्रोहियों के मन-मस्तिष्क में भय को उत्पन्न करने वाला है और उनके हृदय को कम्पित कर देने वाला है।

आरएसएस मात्र एक संगठन नहीं है अपितु एक राष्ट्रवादी विचारधारा है जिसे समझने के लिए राष्ट्र के प्रति समर्पित भावना का होना नितांत आवश्यक है। जिसमें राष्ट्र भावना ही नहीं हो, जो राष्ट्रभाव से शून्य हो, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पावन और पवित्र राष्ट्रवादी विचारधाराओं को समझने में पूर्णतः असक्षम है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मूल उद्देश्य ही भारत को एक सुखी, सम्पन्न, समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र बनाना है। राष्ट्र निर्माण के साथ-साथ राष्ट्रवादी व्यक्तित्व का निर्माण करना भी संघ का प्रमुख उद्देश्य है। राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण, राष्ट्रवन्दन, राष्ट्र का अभिनन्दन और राष्ट्र हेतु सर्वस्व न्यौछावर करने की दृढ़ इच्छाशक्ति ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वास्तविक पहचान है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना ही इस बात की प्रथम साक्षी है-

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥ १॥

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।

अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥ २॥

 

समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।

विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥ ३॥

॥ भारत माता की जय ॥

अर्थात-

हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ।

हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम कर काँटों रहित करेंगे।

ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।

॥ भारत माता की जय॥

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए भारतभूमि पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति “हिन्दू” है इसीलिए संघ के दृष्टिकोण से भारत एक हिन्दू राष्ट्र है।
हिन्दू कोई धर्म, कोई जाति, कोई पंथ अथवा सम्प्रदाय विशेष का नाम नहीं है बल्कि “हिन्दू” तो जीवन जीने की एक कला है, एक संस्कृति है, एक परम्परा है। हिंदुत्व एक विचारधारा है जो विश्व कल्याण की बात करती है, जो कहती है- धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो। हिंदुत्व कोई संकीर्ण, संकुचित और क्षुद्र मानसिकता का परिचायक नहीं है, अपितु यह सहिष्णुता, समानता और सादगी का एक विशालकाय समुद्र है। जिसमें अनगिनत संस्कृतियों, सभ्यताओं और परम्पराओं का समावेश हो जाता है।
जो बौद्धिक है, आध्यात्मिक है और सृजनात्मक है, वही हिंदुत्व है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसी सच्चाई को पूरे विश्व के समक्ष रखने का हरसम्भव प्रयास करता है।

परन्तु जिनके लिए भारत मात्र ज़मीन का एक टुकड़ा है, हिंदु आतंकी है, और हिंदुत्व सांप्रदायिकता है। उन संकीर्ण, संकुचित और भारत विरोधी मानसिकता के लोगों को आरएसएस से नफ़रत होना स्वाभविक ही है।

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🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

विशेष नोट – उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।

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